छत्तीसगढ़ के कांकेड़ जिले के कोलियाबेड़ा इलाके में दो बीएसएफ कैंपों के खुलने के विरोध में यहां पंचायत के करीब 50 प्रतिनिधियों ने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने वालों में 38 सरपंच हैं। ये लोग बीते बुधवार से ही बीएसएफ कैंपों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे।
कांकेड़ के 103 गांवों में रहने वाले हजारों लोग इन कैंपों को हटाए जाने की मांग कर रहे हैं। यहां रहने वाले आदिवासी समुदाय का कहना है कि यह इलाका पंचायल एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज (PESA) ऐक्ट के अंतर्गत आता है और इन कैंपों को बनाने से पहले ग्राम पंचायत की मंजूरी नहीं ली गई। उनका कहना है कि कैंपों को बनाने में स्थानीय आदिवासियों के देवताओं के स्थान पर भी अतिक्रमण किया गया है।
एक आदिवासी नेता टिल्लू राम उसेंदी ने हमारे सहयोगी हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया, ‘बुधवार से, हम यहां प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन अभी तक कोई अच्छी खबर नहीं आई है। वरिष्ठ अधिकारी बातचीत के लिए आए लेकिन उन्होंने कोई आश्वासन नहीं दिया। रविवार को करीब 38 सरपंचों, सात जनपद पंचायत सदस्यों, एक उपसरपंच और एक जिला पंचायत सदस्य ने अपना इस्तीफा सौंपते हुए कार्रवाई की मांग की है।’
गांव वालों का कहना है कि उन्हें इन कैंपों से परेशानी नहीं है लेकिन ये उस जगह बनाए गए हैं जहां उनके देवी-देवता बसते हैं। इन कैंपों को हटाने के लिए गांव वासियों ने राज्यपाल और स्थानीय प्रशासन को ज्ञापन भी सौंपा है।
दूसरी तरफ बस्तर पुलिस का कहना है कि अपनी जमीन खोते देख अब माओवादी भोले-भाले आदिवासियों को बरगला कर उनसे बीएसएफ कैंपों के खिलाफ प्रदर्शन करवा रहे हैं।
वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि साल 2020 में सरकार ने ऐसे इलाकों में 16 नए बेस कैंप बनाए जो पहले कभी माओवादियों के गढ़ माने जाते थे। कटगांव और कामदेड़ा के बीएसएफ कैंप इन्हीं में से हैं। ये बेस कैंप इस इलाके में शांति और विकास को लेकर गेम चेंजर साबित हो सकते हैं।
कांकेड़ के कलेक्टर चंदन कुमार का कहना है कि यह मुद्दा जल्द सुलझा लिया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि पहली नजर में ऐसा लग रहा है कि गांव वाले ‘हिंसक तत्वों’ के दबाव में आकर यह प्रदर्शन कर रहे हैं।