ईश्वर हर जगह मौजूद नहीं हो सकता इसलिए वो धरती पर अपने प्रतिनिधि के रूप में डॉक्टरों को भेजता है। मरीजों पर संकट आए तो एक डॉक्टर उनके लिए क्या नहीं कर सकता है। ऐसी ही एक महिला डॉक्टर ने साबित किया है सेवा डॉक्टर का पहला धर्म है, बाकी सारे बाद के कर्म हैं। यह महिला डॉक्टर अपनी शादी तोड़ चुकी, लेकिन अपने मरीजों की सेवा का धर्म नहीं छोड़ सकी। ऐसे लोग दुनिया में बहुत कम हैं। लेकिन ऐसे ही चंद लोगों की बदौलत दुनिया में उम्मीदें कायम है।
हम बात कर रहे हैं फिजीशियन के तौर पर काम कर रही अपूर्वा मंगलगिरी की। 26 अप्रैल को इनकी शादी का मुहुर्त तय था, लेकिन इनके मन में बस एक ही भय था। अगर कोरोना के इस संकट में छुट्टी लेकर शादी करने चली जाएंगी, तो अपने मरीजों की ज़रूरत पर उनके काम कैसे आएंगी? इसलिए पहले तो शादी की तारीख बढ़ाने का इरादा किया, लेकिन लड़के वालों ने ना-नुकुर ज्यादा किया। ऐसे में इन्होंने एक बड़ा फैसला किया। इन्होंने फैसला लिया कि ‘शादी नहीं की, तो भी ज़िंदगी रहेगी। सेवा नहीं की तो मरीजों की जान बचेगी? इसलिए दिमाग की नहीं, दिल की चाह सुन ली। स्वार्थ के बदले परमार्थ की राह चुन ली।’
तोड़ दी शादी
पिछले साल सितंबर की बात है। अपूर्वा मंगलगिरी जी के पिता का निधन कोरोना से हो गया था। तभी दिल को यह एहसास हो गया था, ‘पिता को नहीं बचा सकी, पिता जैसों को जरूर बचाऊंगी। हर शख़्स में अपने पिता का अक़्स पाऊंगी।’ एक कंसल्टेंट फिजीशियन होने के नाते डॉ. अपूर्वा के पास हर रोज कई फोन कॉल्स आते हैं। कुछ बेड की गुहार लगाते हैं, कुछ ऑक्सीजन की। अपूर्वी अपने पेशेंट की हर बात सुनती हैं। कोशिश करती रहती हैं उन्हें जल्दी से जल्दी ठीक करने की।
शादी का आयोजन होता, तो संक्रमण फैलता
डॉक्टर अपूर्वा को यह पता था कि शादी का आयोजन होगा, तो संक्रमण फैलेगा। वैसे ही अस्पतालों की व्यवस्था चरमराई हुई है। स्वास्थ्य सुविधाएं वेंटिलेटर्स पर आई हुई हैं। अगर शादी में 20-25 लोग संक्रमित हो जाएंगे, तो ये फिर जाकर अस्पतालों में भीड़ बढ़ाएंगे। सही मरीजों को इलाज नहीं मिलेगा। ऐसी शादी के आयोजन से फिर किसका भला हो सकेगा? इसलिए अपूर्वा ने अपना भला नहीं, सबका भला देखा। सचमुच ऐसी डॉक्टर आजकल किसी ने कब और कहां देखा!