नई दिल्ली। कांग्रेस ने मंगलवार को यह निर्णय जरूर किया कि राज्यसभा के उप सभापति के चुनाव के लिए विपक्ष की तरफ से साझा उम्मीदवार खड़ा करेगी और इसके लिए समान विचारधारा वाले सभी दलों को साथ लेने का प्रयास होगा। लेकिन यह प्रतीकात्मक लडाई ही होगी। उसकी जीत की संभावना दूर दूर तक नहीं है। संसद का सत्र 14 सितंबर से आरंभ हो रहा है.
समाचार एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से खबर दी कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई में हुई रणनीतिक समूह की डिजिटल बैठक में तय हुआ कि उप सभापति पद के चुनाव के लिए विपक्ष का का साझा उम्मीदवार खड़ा करने के साथ संप्रग के घटक दलों और समान विचारधारा वाले अन्य दलों को साथ लेने का प्रयास किया जाएगा।
उनके मुताबिक, उप सभापति पद के लिए विपक्ष की तरफ से किस पार्टी का उम्मीदवार होगा और कौन होगा, इस बारे में सहयोगी दलों के साथ विचार-विमर्श करने के बाद कोई निर्णय लिया जाएगा। गौरतलब है कि ऊपरी सदन में जदयू के राज्यसभा सदस्य हरिवंश का कार्यकाल समाप्त हो जाने के बाद यह पद रिक्त हो गया है. हरिवंश फिर से राज्यसभा के सदस्य चुने गए हैं।समझा जाता है कि वही एनडीए के प्रत्याशी होंगे।
कांग्रेस की बैठक में पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद, उप नेता आनंद शर्मा, लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी, दोनों सदनों के मुख्य सचेतक, पूर्व केंद्रीय मंत्री मनीष तिवारी और कुछ अन्य नेता शामिल हुए।
आजाद, शर्मा और तिवारी उन 23 नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने कांग्रेस में व्यापक संगठनात्मक बदलाव की मांग को लेकर सोनिया गांधी को पत्र लिखा था। कांग्रेस कार्य समिति की बैठक के बाद पत्र लिखने वाले इन नेताओं का पार्टी नेतृत्व से आमना-सामना हुआ है।
कांग्रेस ने भले ही उपसभापति पद के लिए विपक्ष का साझा उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है लेकिन अगर राज्यसभा के आंकड़ों को देखा जाए तो ये जीत नामुमकिन सी लग रही है।
245 सदस्यीय राज्यसभा में इस वक्त राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी NDA के पास 117 सीटे हैं। इनमें 87 अकेले बीजेपी के पास हैं। वहीं सूमचे विपक्ष के पास 127 सीटें हैं जिनमें संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन यानी यूपीए के पास 60 का आंकड़ा है। इसमें कांग्रेस के पास 40 सीटें हैं। ऐसे में अन्य दलों के पास मौजूद 67 सीटों पर असली दारोमदार होगा जो एनडीए का साथ देगी। इसलिए सीधे तौर पर एनडीए के पक्ष में बाजी ज्यादा मजबूत लग रही है। ऐसे में अगर कांग्रेस समूचे विपक्ष को एक साथ लाने का करिश्मि कर सकी तभी वो जीत के बारे में सोच सकती है।