कोरोना की पहली लहर शांत होने के बाद आम लोगों से लेकर सरकार तक मान बैठी थी कि अब कोरोना का अंत हो गया है। लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने जिस कदर तबाही मचाई इससे स्वास्थ्य व्यवस्था की तो पोल खुल ही गई। साथ ही वह युवा जो इस वायरस से खुद को सुरक्षित मान रहे थे, वह भी इसकी गिरफ्त में आने लगे। वैक्सीनेशन होने के बावजूद भी आज लाखों लोग रोज कोरोना की चपेट में आ रहे हैं।

वहीं, कोरोना के साथ ही देश में हर रोज नए वायरस पैदा होने की वजह से दवाइयों की भी जरूरत पड़ रही है। वायरस के नए स्ट्रेन के ना केवल लक्षण थोड़े अलग हैं, बल्कि यह पहले स्ट्रेन से ज्यादा शक्तिशाली भी प्रतीत हो रहा है।

वहीं, “कोरोना वायरस” के प्रकोप के बीच अब “ग्लेंडर वायरस” विपदा से भी कोहराम मच सकता है। ये रोग घोड़े जैसे जानवरों में सामने आता है। हरियाणा के झज्‍जर जिले में दो घोड़े इस रोग से संक्रमित मिले हैं। पशु पालन विभाग के उप निदेशक ने बताया कि, “ग्लेंडर” एक बैक्टीरियल बीमारी है। इस बीमारी के संदर्भ में लोगों को आगाह किया जा रहा है। लोगों से जानवरों की देखरेख करने के लिए कहा जा रहा है। उन्‍होंने कहा, “हमने 143 अश्व प्रजाति के जानवरों के खून के नमूने लैब भेजे थे। जिनमें से 2 जानवरों में इस बीमारी की पुष्टि हुई।”

गौरतलब है कि, ग्लेंडर बीमारी के मामले इससे पहले गुजरात में सामने आ चुके हैं। पिछले साल यहां इस बीमारी की रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर 4 घोड़ों की जान चली गई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि, यह रोग सामान्‍यत: घोड़ों को होता है। घोड़ों से होते हुए यह इंसानों को भी संक्रमित कर सकता है। ये बैक्‍टीरिया इतना तीक्ष्ण होता है कि हवा से फैलता है और जानवर या इंसान तेजी से चपेट में आ जाते हैं। मार्च 2020 के दौरान ग्लेंडर बीमारी का मामला गुजरात में संतरामपुर के प्रतापपुरा इलाके में सामने आया था।

दरअसल, एक घोड़े की अचानक तबीयत बिगड़ी थी, जिस पर उसे अस्पताल ले जाया गया था। जहां जांच की गई तो घोड़े में ग्लेंडर की पुष्टि हुई। इलाज के दौरान ही उस घोड़े की मौत हो गई। जिसके बाद उस घोड़े के साथ रखे गए दूसरे घोड़ों की भी जांच की गई। तब सभी चार घोड़ों की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। अंत में वन विभाग की ओर से उन सभी घोड़ों को जहरीला इंजेक्शन देकर मौत की नींद सुला दिया गया। घोड़ों की लाश को रिहाइशी इलाके से दूर दफनाया गया।

वहीं ग्लेंडर वायरस के मद्देनजर स्थानीय प्रशासन अलर्ट हो गया। डॉक्‍टरों की सलाह पर लोगों के पालतू जानवरों की चेकिंग भी शुरू की गई। खुद एनिमल हसबेंडरी डिपार्टमेंट भी आस-पास के पालतू जानवरों की जांच कराने लगा, ताकि उस बीमारी को दूसरे जानवर में फैलने से रोका जा सके।

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