विशेष संवाददाता

बीते दो दिनों के दौरान देश ने तीन महान हस्तियों को खो दिया। इनमे दो रजत पटल पर चमकने वाले सितारे और एक कालजयी फुटबालर था। 29 अप्रैल को हमने इरफान खान को खोया तो अगले ही दिन सुबह पौने नौ बजे ऋषि कपूर उस सफर पर निकल गये जहाँ से कोई लौट कर नहीं आता। दोनो ही जानलेवा मर्ज कैसर के शिकार हुए थे। उधर मुम्बई मे ऋषि की चंदनबाडी विद्युत श्मशान में अंत्येष्टि हो रही थी और इधर दूर कोलकाता में भारतीय फुटबाल के महानायक 82 वर्षीय चुन्नी गोस्वामी ने 14 मिनट के दौरान तीन बार दिल का दौरा पडने से शाम पांच बजे नश्वर शरीर का परित्याग कर दिया। चुन्नी दा अर्से से वृद्धावस्था जनित बिमारियों से जूझ रहे थे।

1962 जकार्ता एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता भारतीय फुटबाल टीम के कप्तान चुन्नी गोस्वामी उस ड्रीम टीम के विद्युतीय लेकिन कलात्मक फारवर्ड थे जिसे तब एशिया की ब्राजील कहा जाता था। पिछली 20 मार्च को ही दुनिया छोडने वाले पी के बनर्जी और तुलसीदास बलराम के साथ चुन्नी गोस्वामी की तिकड़ी थ्री मस्केटियर्स कही जाती थी।

बतौर एक बालक जकार्ता में एक लाख दर्शकों के बीच खेले गये उस फाइनल मुकाबले की कमेण्ट्री सुनी थी मैने। ताइवान और इजरायल को खेलों मे आमंत्रित न किए जाने की आलोचना और तत्कालीन इन्डोनेशियाई राष्रट्रपति सुकर्म के साथ भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ संबंधों मे आयी खटास का नतीजा था कि दर्शकों के लिए भारतीय टीम दुश्मन थी। लेकिन उसके तमाम विरोध के बावजूद भारत ने द कोरिया को 2-1 से हरा कर स्वर्ण पदक अपने नाम किया।

थ्री मास्केटियर्स चुन्नी गोस्वामी, पी के बनर्जी, तुलसीदास बलराम

अभेद्य चट्टान गोली अंगराज, डिफेन्डर जरनैल सिंह जो घोषित आल स्टार एशियाई टीम के कप्तान भी बनाए गए थे, ऐसों का सहयोग था चुन्नी गोस्वामी को। यही नहीं छह वर्ष पूर्व मेलबर्न ओलम्पिक खेलों के सेमीफाइनल मे पहुचने वाली एशिया की पहली भारतीय टीम के भी सदस्य रह चुके चुन्नी दा ने बाद मे एशिया कप और मर्डेका मे देश को उपजेता बनाया। महज 27 की उम्र मे चुन्नी गोस्वामी ने अंतरराष्ट्रीय फुटबाल से संन्यास ले लिया। उधर, महान कोच रहीम, जिनकी कोचिंग मे टीम ने जकार्ता में जीत हासिल की थी, नौ महीने बाद ही खुदा को प्यारे हो गये। कहा जाता है कि उनकी मौत के साथ ही भारतीय फुटबाल भी कब्र मे चली गयी। आज कहाँ हैं हम इस खेल मे, देख कर शर्म आती है।

चुन्नी गोस्वामी देश के ऐसे विरल खिलाडी थे जिन्होंने प्रथम १श्रेणी की क्रिकेट भी खेली। बंगाल और पूर्व क्षेत्र से उन्होने क्रमशः रणजी और दिलीप ट्राफी में बंगाल का प्रतिनिधित्व किया। दाएं हाथ के लेग स्पिनर चुन्नी दा के नाम 47 विकेट ही हैं। शायद उन्होने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया अन्यथा वह और भी बडी क्रिकेट खेल सकते थे। 1966मे सर्वकालिक महानतम आलराउंडर सर गैरी सोबर्स के नेतृत्व मे भारत दौरे पर आयी दुर्जेय समझी जाने वाली महाबली वेस्टइंडीज टीम को भारतीय सरजमीं पर मिली पहली शिकस्त जो महान क्रिकेटर सीके नायडू के शहर इन्दौर मे मिली, उसके सूत्रधार आठ विकेट झटकने वाले मध्य-पूर्वी क्षेत्र की संयुक्त टीम से खेल रहे चुन्नी दा थे, जिनकी गुगली ने कैरिबियाई दिग्गजों को तिगनी का नाच नचा कर रख दिया था।

फुटबाल जादूगर ब्राजीलियाई पेले के साथ चुन्नी गोस्वामी

मै और मेरा अनुज स्व राधे ( प्रो राधेश्याम शर्मा) चुन्नी गोस्वामी के मुरीद हो गये। हम दोनो ने 1969 मे उनको इंजन गार्डन मे न केवल खेलते देखा बल्कि पैवेलियन मे उनका आटोग्राफ भी लिया। अपनी कप्तानी में बंगाल को रणजी फाइनल तक ले जाने वाले इस हरफनमौला के नाम एक शतक भी है। फुटबालर होने के नाते उनकी फिटनेस गजब की थी और याद है कि इन्दौर वाले मैच मे उन्होने पीछे ओर 25-30 गज की दौड लगाते हुए जबरदस्त कैच भी लिया था।

हम दोनो भाइयों के बचपन के नायकों मे एक चुन्नी गोस्वामी का जन्म अविभाजित बंगाल के किशोरगंज ज़िले में हुआ था जो अब बांग्लादेश में है। उनका असल नाम सुबिमल गोस्वामी था मगर वो अपने छोटे नाम से ही जाने जाते रहे। वह कोलकाता के प्रख्यात मोहन बागान क्लब के लिए खेला करते थे और 1960 से 1964 तक वे टीम के कप्तान रहे। उनका बारिश से अधूरा रद एक फुटबाल मैच देखने का भी मौका मिला था। गोस्वामी ने 1956 से 1964 के बीच भारत के लिए 50 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले जिनमें 1960 का रोम ओलंपिक भी शामिल है। चुन्नी गोस्वामी को 1963 में अर्जुन पुरस्कार और 1983 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

चुन्नी गोस्वामी का नश्वर शरीर नहीं रहा । लेकिन भारतीय फुटबाल मे वो हमेशा जीवित रहेंगे। जब जब फुटबाल मे देश के स्वर्णिम अतीत का जिक्र होगा, चुन्नी गोस्वामी हमेशा गर्व के साथ याद किए जाएंगे ।

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