वाराणसी। कोरोना महामारी ने देश में तबाही मचा रखी है। कोरोना वायरस की दूसरी लहर ने गांवों को भी अपनी चपेट में ले लिया है। इस महामारी के कहर की दिल दहलाने वाली कहानियां और खौफनाक तस्वीरें सामने आई हैं। उत्तर प्रदेश के कई ऐसे गांव हैं जो कोरोना की मार झेल रहे हैं। जहां पर कोरोना महामारी ने परिवारों को उजाड़ दिया और बच्चों के सिर से माता-पिता का साया उठ गया है।

कोरोना की दूसरी लहर न सिर्फ शहरों में बल्कि गांवों पर भी कहर बनकर टूटा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के गांवों में भी कोरोना ने तांडव मचाया। यहां एक दर्जन से अधिक ऐसे गांव हैं जहां कोरोना के चलते मरने वालों की संख्या पचास से पार चली गई है। वहीं कुछ गांव में ये आंकड़ा सौ तक पहुंच गया है। चिरईगांव ब्लॉक अंतर्गत नारायणपुर गांव में अप्रैल के दूसरे हफ्ते से शुरू हुआ मौत का सिलसिला मई के दूसरे हफ्ते तक बदस्तूर जारी रहा। हर दूसरे घर से उठती लाशें बेबसी की कहानी बयां कर रही थीं।

गांव के रहने वाले रोहित का पूरा परिवार कोरोना पीड़ित था। कोरोना के संक्रमण के चलते रोहित के भाई की पत्नी की मौत हो गई। रोहित कहते हैं कि पूरी जिंदगी में इतना बेबस और असहाय खुद को कभी नहीं पाया। कोई ऐसा दिन नहीं होता, ज़ब गांव में किसी न किसी की मौत न हो। अंतिम संस्कार का दौर लगातार जारी था। रोहित के मुताबिक पिछले एक महीने में गांव में सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। मरने वालों में अधिकांश प्रवासी श्रमिक थे। इसके अलावा पंचायत चुनाव के चलते महामारी ने भयानक रूप अख्तियार कर लिया।

धौरहरा गांव की पूनम पांडेय, अतुल चौबे ठेकेदार, रामदुलार यादव, प्रेम शर्मा की पत्नी, पलकहां गांव के पूर्व प्रधान रामबली यादव जिन्होंने मतगणना के ही दिन बुखार के चलते दम तोड़ दिया था और वह परिणाम भी नहीं देख पाए। इसी तरह कुकुढहां गांव में डॉ. नंदलाल की भी बुखार के चलते मौत हो गई। बुखार का कहर ऐसा है कि कोई गांव ऐसा नहीं जहां मौतें नहीं हुई हों। यहां बुजुर्गों का मरना तो आम बात हो गई है। इसी तरह इलाके के गौरा उपरवार, चंद्रावती, कैथी, सरसौल बलुआ, रामपुर घाटों पर शव जलाने के लिए लाइन लगी हैं। दाह संस्कार के लिए लकड़ियों की भी किल्लत हो रही है। बुखार खांसी के चलते सबसे ज्यादा प्रभावित गांव धौरहरा व सुंगुलपुर है। यहां कम से कम 10 से 15 मौतें हुई हैं। हालांकि वायरल बुखार और खांसी तेज धूप व पंचायत चुनाव में भागदौड़ के कारण ही अधिकतरों गांवों तक फैल गया।

पंचायत चुनाव खत्म होने के बाद ग्रामीण इलाकों में संक्रमण को रोक पाना स्वास्थ्य विभाग के लिए बड़ी चुनौती तो थी ही, साथ ही महकमे की नाकामी के चलते महामारी पर काबू नहीं पाया गया। वहीं मौतों का आंकड़ा भी कम नहीं हुआ। इसके पीछे कहीं न कहीं होम आइसोलेशन में रहने वालों की मॉनिटरिंग में लापरवाही है। काशी विद्यापीठ ब्लॉक में संक्रमित मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके अलावा पिंडरा, चितईपुर, चोलापुर, आराजीलाइन, सेवापुरी आदि ब्लॉक में भी संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ी है।

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