के. एन. गोविंदाचार्य
चिंतक विचारक

अयोध्या जी में भव्य राममंदिर निर्माण के शुभारंभ के आल्हादकारी अवसर पर देश के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी समेत करोड़ों देशवासियों को हार्दिक बधाई|

अब मंदिर निर्माण के साथ-साथ रामराज्य की ओर सभी की यात्रा बढ़े। इस हेतु अपेक्षा एवं तदर्थ अनंत शुभकामनाएँ|
एतदर्थ रामराज्य की दिशा और स्वरूप के बारे में रामचरित मानस की कुछ पंक्तियाँ ध्यान देने योग्य है इसलिये प्रेषित है|

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।

फूलहिं फरहिं सदा तरु कानन। रहहिं एक सँग गज पंचानन॥
खग मृग सहज बयरु बिसराई। सबन्हि परस्पर प्रीति बढ़ाई॥
कूजहिं खग मृग नाना बृंदा। अभय चरहिं बन करहिं अनंदा॥
सीतल सुरभि पवन बह मंदा। गुंजत अलि लै चलि मकरंदा॥
लता बिटप मागें मधु चवहीं। मनभावतो धेनु पय स्रवहीं॥
ससि संपन्न सदा रह धरनी। त्रेताँ भइ कृतजुग कै करनी॥

प्रगटीं गिरिन्ह बिबिधि मनि खानी। जगदातमा भूप जग जानी॥
सरिता सकल बहहिं बर बारी। सीतल अमल स्वाद सुखकारी॥

सागर निज मरजादाँ रहहीं। डारहिं रत्न तटन्हि नर लहहीं॥
सरसिज संकुल सकल तड़ागा। अति प्रसन्न दस दिसा बिभागा॥

दोहा- बिधु महि पूर मयूखन्हि रबि तप जेतनेहि काज।
मागें बारिद देहिं जल रामचंद्र कें राज॥

बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन। बोले बचन भगत भव भंजन॥
सुनहु सकल पुरजन मम बानी। कहउँ न कछु ममता उर आनी॥
नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई। सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई॥
सोइ सेवक प्रियतम मम सोई। मम अनुसासन मानै जोई॥
जौं अनीति कछु भाषौं भाई। तौ मोहि बरजहु भय बिसराई॥

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