तेजी से बदलती दुनिया में इंसान की रोजमर्रा का जिंदगी भी काफी तेजी से बदल रही है। भागदौड़ भरी इस जीवन शैली में कई बीमारियां आज इतनी आम हो गई हैं कि हर दूसरा इंसान आज इससे जूझता दिखाई देता है। कोरोना काल में यही बीमारियां लोगों के लिये ज्यादा खतरा बन रही हैं। हम बात कर रहे हैं डायबिटीज यानी मधुमेह की।
आम हो चली इन बीमारियों में डायबिटीज रोग एक बड़ी चुनौती बन गया है। दुनिया भर में तेजी से बढ़ती इस चुनौती से जूझने और जागरुकता फैलाने के लिए हर साल 14 नवंबर को विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाता है।
वर्ल्ड डायबिटीज डे को अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1991 में शुरू किया गया था। यह दिन पहली बार 1991 में मनाना शुरू किया गया था। लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ ने दिसम्बर, 2006 में इसे अपने स्वास्थ्य कार्यक्रमों की सूची में शामिल किया। सन् 2007 से अब यह संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा यह हर साल 14 नवंबर को सर फ्रेडरिक बैंटिंग के जन्मदिन के रूप में चिह्नित किया गया, जिन्होंने 1922 में चार्ल्स बेस्ट के साथ इंसुलिन की सह-खोज की थी।
तथ्य और आंकड़े
पूरी दुनिया में 463 मिलियन वयस्क 2019 में मधुमेह के मरीज पाये गये। यह आंकड़ा 2030 तक 578 मिलियन होने की संभावना है।
हर चार में से तीन मधुमेह मरीज कम और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं।
मधुमेह से पीड़ित दो-तिहाई लोग शहरी क्षेत्रों में रहते हैं और तीन-चौथाई कामकाजी उम्र के हैं।
हर 5 में से 1 डायबिटीज पीड़ित (136 मिलियन) 65 वर्ष से अधिक उम्र के हैं।
2019 में डायबिटीज के कारण 4.2 मिलियन मौतें हुईं।
2019 में स्वास्थ्य पर होने वाले खर्च में डायबिटीज पर कम से कम 760 बिलियन डॉलर खर्च किये हुये जो कि- स्वास्थ्य पर खर्च किए गए वैश्विक कुल का 10% है।
भारत में मधुमेह
भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। बेतरतीब ढंग से खानपान की और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में मधुमेह होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरूप उभरा है जो बहुत भयावह है।
अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (आईडीएफ) के अनुसार वर्ष 2019 में 0-19 वर्ष आयु वर्ग में भारत में टाइप -1 मधुमेह के अनुमानित मामले 1,71,281 थे और 20-79 वर्ष आयु वर्ग में मधुमेह रोगियों की कुल संख्या 77.0मिलियन थी।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज रिपोर्ट 2015 के अनुसार, मधुमेह के कारण होने वाली मौतों की संख्या 2.24 लाख (वर्ष 2005 में) से बढ़कर 3.46 लाख (वर्ष 2015 में) हो गई है, इस प्रकार मृत्यु के कारण के मामले में डायबिटीज 11 वें स्थान से 7 वें स्थान पर पहुंच गया।
सरकार द्वारा की जा रही पहल
भारत में डायबिटीज के प्रति जागरूकता के लिये भारत सरकार ने यूनिसेफ के सहयोग से 30 राज्यों में वर्ष 2016 से 2018 के दौरान पहली बार व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (CNNS) आयोजित किया है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार बच्चों (1.2%) और किशोरों (0.7%) के बीच मधुमेह की व्यापकता कम थी।
भारत सरकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत जिला स्तर पर कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों और स्ट्रोक (NPCDCS) की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम लागू कर रही है।
सामान्य गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) (मधुमेह, उच्च रक्तचाप और सामान्य कैंसर अर्थात मौखिक, स्तन और गर्भाशय ग्रीवा के कैंसर) के लिए रोकथाम, नियंत्रण और स्क्रीनिंग के लिये सीमावर्ती स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की सेवाएं जैसे कि मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा) और सहायक नर्स मिडवाइव्स (एएनएम) को स्क्रीनिंग करने और एनसीडी के जोखिमों के बारे में जागरूकता उत्पन्न करने का कार्यक्रम शामिल है। यह पहल पूरे देश में 215 से अधिक जिलों में चल रही है।
आयुष्मान भारत- स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों के तहत एनसीडी के लिए स्क्रीनिंग सेवा वितरण का एक अभिन्न अंग है।
मोबाइल के जरिये जागरूकता पैदा करने, उपचार को बढ़ावा देने और आम लोगों के बीच स्वस्थ आदतों को बढ़ाने के लिए mDiabetes नामक एक एप्लिकेशन शुरू किया गया है।
सरकारी अस्पतालों में इलाज या तो मुफ्त या अत्यधिक गरीबों और ज़रूरतमंदों के लिए सब्सिडी वाला है।