नई दिल्ली (एजेंसी)। कई महिला सैन्य अधिकारियों ने उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई है कि केंद्र सरकार द्वारा पुरुष सैन्य अधिकारियों के साथ सेना की गैर-लड़ाकू सहायता इकाइयों में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन (पीसी) देने का उसका आदेश ठीक से लागू नहीं हुआ था। ऐसी ही एक याचिका एक महिला अधिकारी ने अपने वकील चित्रांगदा रस्तवारा और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अर्चना पाठक दवे के माध्यम से दायर की है। इसमें उच्चतम न्यायालय के फरवरी 2020 के आदेश को लागू करने के लिए तत्काल निर्देश देने की मांग की गई है।

महिला सैन्य अधिकारी द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर याचिका में खुलासा किया गया है कि अब तक कार्यान्वयन के प्रक्रियात्मक पहलुओं के बारे में कुछ अस्पष्टताएं हैं, जिन्हें सेना द्वारा ठीक नहीं किया गया है। रस्तवारा ने कहा कि शीर्ष अदालत ने फरवरी 2020 में अपने फैसले में स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार को सभी महिला अधिकारियों को पदोन्नति समेत स्थायी कमीशन और अन्य सभी लाभ देने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा कि ‘शीर्ष अदालत के फैसले के बावजूद, निर्णय का कार्यान्वयन केवल अच्छा दिखाने के लिए किया जाता है और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार संस्थान में महिला अधिकारियों को सेना में शामिल करने के बजाय उन्हें हटाने के लिए इस फैसले का इस्तेमाल किया जाता है।

उन्होंने कहा कि यह मामला महिला सैन्य अधिकारियों के बारे में है, जिन्हें एक दशक से अधिक की लंबी कानूनी लड़ाई के बावजूद स्थायी कमीशन के उनके अधिकार से वंचित किया जा रहा है। इसका कारण है कि महिला अधिकारियों को बिना किसी भेदभाव के स्थायी कमीशन देने के अदालत के आदेश के बाद भी सेना द्वारा इस बारे मे अपनाई गई प्रक्रिया में स्पष्ट नीति के अभाव के कारण उन्होंने यह याचिका दाखिल की है। रस्तवारा ने आरोप लगाया कि उच्चतम न्यायालय के समक्ष सेना में महिला अधिकारी अभी भी लैंगिक रूढ़ियों के खिलाफ लड़ रही हैं। फैसले के एक साल बाद भी सेना द्वारा अपने स्वयं के आदेश को लागू करने पर उन्होंने शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की मांग की।

उन्होंने कहा कि समानांतर बैच के सबसे कम ग्रेडेड अधिकारी के ऊपर स्कोरिंग का अज्ञात और मनमाना तरीका उन मापदंडों में से एक है जो अधिकारियों के लिए सामान्य मामले में कभी भी लागू नहीं किया गया है और यही इन उच्च योग्यताधारी महिला अधिकारियों के मनोबल को प्रभावित कर रहा है। हालांकि, सेना ने दावा किया कि 615 महिला अधिकारियों में से, 422 योग्य हैं और सेना में स्थायी कमीशन के लिए फिट हैं। लेकिन वास्तव में, 422 में से केवल 277 को ही स्थायी कमीशन दिया गया है और शेष संख्या यानी 145 वे अधिकारी हैं जिनका परिणाम चिकित्सा और प्रशासनिक कारणों से रोक दिया गया है। 193 अधिकारियों को स्थायी कमीशन से वंचित कर दिया गया है। रस्तवारा की याचिका के अनुसार, 422 का आंकड़ा केवल “अच्छे दिखावे” के लिए एक आंकड़ा है और वास्तविक संख्या को नहीं दिखाता है। 27 जनवरी को इन याचिकाओं पर अगली सुनवाई होने की संभावना है।

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