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Topic: Judicial reform need of the hour for nation
Time: Jul 11, 2021 03:00 PM India
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सन 1872 में ब्रिटिश राज के दौरान भारत पर थोपी गयी न्यायिक व्यवस्था ( ज्यूडिशियल सिस्टम ) अंग्रेजो ने अपनी सुख सुविधा के मद्देनजर लागू की थी। उम्मीद की गयी कि स्वाधीन भारत अपने हिसाब से इसमें आमूलचूल परिवर्तन करेगा। लेकिन विडम्बना यह है कि गौरांग प्रभु चले गए मगर हमारे देसी प्रभुओं ने अंग्रेज प्रदत्त न्यायिक व्यवस्था को रद करने की कौन कहे, उसको अपने गले लगा कर रखा। ज्यूडिशियल पुनर्सुधार की संस्तुति को डेढ दशक से ज्यादा समय बीत चुका है लेकिन उसको लागू करने की जहमत आज तक सरकारों ने मोल नहीं ली।

दो राय नहीं की वर्तमान एनडीए सरकार के मुखिया नरेन्द्र मोदी ने अप्रासंगिक हो चुके 1500 कानून रद कर दिए हैं। लेकिन उनका यह प्रयास नाकाफी है। जरूरत तो संपूर्ण बदलाव की है। इसी सप्ताह हुए केन्द्रीय मंत्रिमंडल विस्तार और फेरबदल के अन्तर्गत प्रोन्नत होकर कानून मंत्री बने किरण रिजिजू ने इस बाबत अपने पहले इंटरव्यू में पुनर्सुधार की उम्मीद जगाई है। देखना है वह कितने खरे उतरते हैं।

इस सबसे अहम मुद्दे पर एबी फाउंडेशन ने 11 जुलाई, रविवार को अपराह्न तीन बजे ” न्यायिक पुनर्सुधार आज देश की सबसे प्रमुख जरूरत ” विषयक वेबिनार आयोजित की है जिसमें हाई कोर्ट के बहुचर्चित पूर्व जस्टिस सहित जाने माने विशेषज्ञ बतौर वक्ता भाग ले रहे हैं।

पहले आओ पहले पाओ के आधार पर आप सभी इस वेबिनार में सादर आमंत्रित हैं।

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