पुणे (एजेंसी)। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने जानलेवा वायरस को खतरनाक जैविक हथियार की तरह इस्तेमाल पर चिंता जताते हुए इनसे निपटने के लिए विशेष रणनीति बनाने की जरूरत पर जोर दिया है। महाराष्ट्र के पुणे में आयोजित एक कार्यक्रम में उन्होंने क्षमता बढ़ाने और बायो डिफेंस, बायो सेफ्टी व बायो सिक्योरिटी की पुरजोर वकालत की।
डोभाल पुणे इंटरनेशनल सेंटर द्वारा आयोजित पुणे डायलाग आन नेशनल सिक्योरिटी (पीडीएनएस) 2021 को संबोधित कर रहे थे। कोरोना महामारी का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि महामारी ने दिखाया है कि खतरों को समय रहते भांपने की जरूरत है। बहुत से बायोलाजिकल शोध वैज्ञानिक नजरिये से अहम हैं, लेकिन उनका दुरुपयोग भी हो सकता है। डोभाल का खुलकर जैविक हथियारों के बारे में बोलना इस खतरे की गंभीरता को दिखाता है। वैश्विक स्तर पर सुरक्षा के क्षेत्र में आ रहे बदलावों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि अब खतरा सीमाओं से हटते हुए समाज के अंदर तक आ गया है।
डोभाल ने अपने संबोधन में जलवायु परिवर्तन और इससे जुड़े खतरों का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि पर्यावरण की बिगड़ती स्थिति और प्रदूषण आज का सच है। इंटरनेट मीडिया ने भी राष्ट्रीय सुरक्षा प्रबंधन का काम मुश्किल किया है। ऐसे में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विकास से कई खतरों से निपटना संभव हो सकता है। ग्लासगो में होने जा रहे काप-26 सम्मेलन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन से जुड़े लक्ष्य हासिल करने की दिशा में कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध है।
पुराना है जैविक हथियार का इतिहास
शत्रु राष्ट्र पर बायो वेपन यानी जैविक हथियार के रूप में घातक वायरस और बैक्टीरिया के इस्तेमाल का इतिहास सदियों पुराना है। 1763 में ब्रिटिश सेना ने अमेरिकियों पर चेचक का इस्तेमाल हथियार की तरह किया था। समय के साथ ये हथियार उन्नत होते गए। 1940 में जापान की वायुसेना ने चीन के एक क्षेत्र में बम के जरिये प्लेग फैलाया था। 1942 में जापान के 10 हजार सैनिक अपने ही जैविक हथियारों का शिकार हो गए थे।
जैविक हथियारों के इस्तेमाल पर रोक की शुरुआत 1925 में जेनेवा प्रोटोकाल से हुई थी। इसमें जैविक हथियारों को रखने या बनाने पर नहीं, लेकिन प्रयोग करने पर रोक की बात थी। 1972 में बायोलाजिकल वेपंस कन्वेंशन (बीडब्ल्यूसी) पर कदम बढ़ाए गए। इसमें जैविक हथियार बनाने व रखने पर भी रोक लगाई गई। 26 मार्च, 1975 को बीडब्ल्यूसी प्रभाव में आया था। अब तक 183 देश इससे जुड़ चुके हैं।
हाल के वर्षो में आतंकी गतिविधियों के लिए जैविक हथियारों के इस्तेमाल की भी बातें सामने आई हैं। पारंपरिक हथियारों की तुलना में जैविक हथियार बहुत सस्ते पड़ते हैं और इनसे नुकसान ज्यादा होता है। फिलहाल चीन, रूस और अमेरिका जैसे कई देश भी दबे-छिपे जैविक हथियारों को विकसित करने में लगे हैं। एक बड़ा वर्ग मानता है कि कोरोना महामारी भी चीन के ऐसे ही प्रयोग का परिणाम है।