काबुल (एजेंसी)। इतिहास गवाह है कि तालिबानियों ने हमेशा वादाखिलाफी की है। बताने की जरूरत नहीं कि अगस्त महीने के मध्य में काबुल पर कब्जा करने के बाद तालिबान ने पूर्व अफगान सरकार के सैनिकों, कर्मचारियों के लिए आम माफी का वादा किया था। लेकिन अब तकरीबन डेढ़ महीने बाद तालिबान के ये वादा महज दिखावटी ही साबित होता दिखा हैं। दरअसल बेलगाम तालिबान लड़ाके देश की गलियों में हिंसा और उत्पात मचा रहे हैं। इन लड़ाकों ने अपने प्रतिद्वंद्वियों का जीना मुहाल कर दिया है। बड़ी संख्या में पूर्ववर्ती सरकार के समर्थक लोग मौत के साए में जिंदगी गुजार रहे हैं।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक टोलो न्यूज के संवाददाता अब्दुल हक उमरी देश से बाहर निकलने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं। बीते 15 अगस्त के बाद से एक भी रात उन्होंने अपने काबुल स्थित घर पर नहीं गुजारी है। दरअसल तालिबानी लड़ाकों ने एक के बाद एक कई अपने कई विरोधियों की हत्याएं की हैं। विरोधियों को यातना अब आम बात बन चुकी है।

तालिबान नेतृवर्ग के लिए लड़ाकों का ये अत्याचार अब बड़ा सिरदर्द बन चुका है। लीडरशिप चाहती है कि दुनिया में उन्हें मान्यता मिले लेकिन जमीनी लड़ाके इन सब बातों से नावाकिफ हैं। लड़ाकों के बढ़ते अत्याचार के मद्देनजर हाल ही में देश के रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब ने चेतावनी देते हुए कहा है कि आम माफी का ऐलान किया जा चुका है इसलिए विरोधियों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बर्दाश्त नहीं की जाएंगी।

कई अफगानी पत्रकारों का कहना है कि तालिबानी लड़ाकों ने आम माफी की बात को गंभीरता से नहीं लिया है। वो बस लड़ना जानते हैं क्योंकि उन्होंने केवल यही एक बात सीखी है। कट्टरपंथी संगठन के लड़ाके अनुशासित नहीं हैं। यही कारण है कि नेतृत्व के कई बार मना करने के बावजूद जमीनी स्तर पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है।

दरअसल तालिबान के लिए ये एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। संगठन के उदारवादी चेहरे माने जाने वाले अब्दुल गनी बरादर को साइडलाइन किए जाने की खबरें पहले भी आ चुकी हैं। बरादर की बजाए सरकार में आतंकी गुट हक्कानी नेटवर्क को ज्यादा वरीयता दी जा रही है। ऐसे में सरकार की छवि पहले से बिगड़ी हुई। इस दौरान तालिबान लड़ाकों के रोज बढ़ते अत्याचारों ने नई मुसीबत खड़ी कर दी है।

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