रतन सिंह

यह मान भी लें कि कोरोना की असली तस्वीर जांच किट के आने और इंस्पेक्शन के बाद साफ होगी। देश पर जो बीतेगी, सब मिलकर सहेंगे। लेकिन कोई ऐसा क्यों कर रहा है जब और सभी सब कुछ भूलकर खुद को बचाने के साथ देश को महफूज रखने की जुगत में लगे हैं।

तबलीगी जमात को 20 मार्च के पहले कितने लोग जानते थे? मुस्लिम समाज में भी इनकी कोई ऐसी हैसियत नहीं थी और आज भी देवबंद या बरेलवी अथवा दूसरी जमात के मानने वाले इनसे ज्यादा हैं। लेकिन सबकी बातचीत का मरकज कैसे यह जमात बन गया ? यह साजिश भी है और सोची समझी रणनीति भी।

अब कह भी रहे हैं कि हमने सीएए और एनआरसी का बदला कोरोना वायरस फैलाकर लिया है। इसी को कहते हैं कि बहती गंगा में हाथ धोना। स्वार्थ की इससे बड़ी फिलासफी कुछ भी नहीं। क्या ये खुदाई फौजदार हैं जो दावा कर रहे हैं कि हमने बदला लिया है ? तो क्या यह पूरे मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं? जवाब एक कि बिल्कुल नहीं। पर हां ये नेतृत्व हथियाने की कोशिश जरूर है। वायरस से खुद तो संक्रमित हो गए तो खुदा की राह में ये बयान भी देकर हीरो बनने कोशिश से बाज नहीं आ रहे।

शर्मनाक तो ये है कि महामारी फैलाने का पाप करने के साथ इलाज करने वाले डाक्टरों से हर वो गलीज हरकत की जा रही है, जो सभ्य कहलाने वाले को धरती में समाने पर बाध्य कर देगा। मौलाना साद की बात करें तो पहले सरकारों को धोखे में रखा और फिर जब मरकज खाली कराया जा रहा था तो पलायित हो गया। अब रूपोश होकर वीडियो जारी करते हुए सफाई दे रहा है। सरकार से सहयोग की दलील फरमा रहा। जितने भी जमाती हैं, ये अपनी जान बचाने की फिक्र छोड़ नफरत फैलाने में लगे हैं। पांचों वक्त की नमाज जिसकी राह में फर्ज है, वह भी इसे कुबूल नहीं करेगा।

किसी भी मजहब में यदि ईश्वर से नाफरमानी की व्यवस्था है तो दिखा दे कोई। आप मानें या न मानें, उस प्रकृति की सत्ता विद्यमान रही है और रहेगी। हिन्दू धर्म में नास्तिक भी रहते हैं और उनकी अपनी दलील कई बार ठोस होती है। पर कोई उन पर थूकता नहीं। साद कुछ भी कह लें, इस पाप से बरी नहीं हो सकते कि उन्होंने भारत को परेशानी में डाल दिया है। याद रहे, कुछ हुआ तो उनका भी मुस्तक्बिल(भविष्य) महफूज नहीं रहेगा। विनाश का बीज बोने वाला उसकी फसल खुद काटने पर विवश हुआ है।

भारत में ही लॉकडाउन को फेल करने की साजिश चल रही है। सामाजिक दूरी को नाकाम करने के लिए अपने लोगों को भड़का रहे हैं। कहते रहे हैं कि हमारा निगेहबान अल्लाह है, कोरोना हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। अब जो उनकी ही जमात के लोग मर रहे हैं, उनकी बाबत क्या जवाब है?

देश में ऐसे कई टिक-टॉक वीडियो सकुर्लेट हो रहे हैं जिसमें मुस्लिमों की आबादी को धर्म के सहारे भड़काने और कोरोना से लड़ाई में भारत को हराने की साजिशें हो रही हैं। भारत में ऐसी 30 हजार से ज्यादा टिक-टॉक क्लिप्स सर्कुलेट हो रही हैं। इन वीडियोज में धर्म के आधार पर कोरोना वायरस से सावधानियां न बरतने की अपील की जा रही है। एक जनाब कहते हैं कि कोरोना से डर के मास्क मत पहनो, कोरोना से मत डरो न। वह कह रहा है डरना है तो अल्लाह से डरो, जाओ जाकर पांच वक्त की नमाज पढ़ो। नोटों को चाटकर कोरोना फैलाने की साजिश करने वाले जनाब को लीजिए। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। कह रहे थे कि लाकडाउन जमीन पर फैलाइए। पुलिस का कहना था कि गुरुवार देर रात उसने वीडियो में यह भी कहा कि महामारी अभी और फैलेगी। ऐसी सोच बहुत से महानुभावों की है। पुलिस पर थूका जा रहा इलाज मे लगे डाक्टरों पर रूकने के अलावा उनको दलील किया जा रहा है। जांच के लिए जाने वालों को के साथ हिसा की जा रही है। इस सोच का खात्मा करने का वक्त है। देश नहीं होगा तो जमात कहां रहेगी ? इस पर गौर फरमाने की जरुरत है।

वे ये क्यों नही सोचते कि देश की 110 करोड आबादी के उपासना स्थल बंद है। सनातन धर्मियो का नवसंवत्सर रहा हो या वासंतिक नवरात्र अथवा भगवान राम का अवतरण दिवस रामनवमी, सभी ने घरों में रहें कर सारे कर्मकांड किये। अष्टमी- नवमी पर कंजिका पूजन भी नहीं हूआ। इस वर्ग ने लाकडाउन को अपनी आस्था से ऊपर रखा। देश हित लोक हित का सवाल जो है।देश हित में वे भी हैं। मगर ऐसा आचरण कर रहे हैं गोया यह उनका देश नहीं। इस्लामिक विद्वानों की अपील भी इन वहाबी सोच वाले दरकिनार कर रहे हैं ।

सभय आ गया है अब इन बदमिजाजो को दूसरे तरीके से समझाने का। कल इन्दौर की उसी गली मे उनका इलाज कायदे से इसलिए हुआ कि डाक्टर बदल गये थे। ऐसे ही ” डाक्टर ” हर उस गली हर उस मस्जिद मे जाकर उनका इलाज करें और उनको कायदे से सबक सिखाएं कि कोरोना से बचाव कैसे करना है और सोशल डिस्टेन्सिग किसे कहते हैं।

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