देहरादून ।।उत्तराखंड में चमोली जिले के रेणी गांव वाले करीब दो साल पहले ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के खिलाफ उत्तराखंड हाईकोर्ट पहुंचे थे। हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर दो आदेश भी जारी किए थे, लेकिन सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। रविवार को आई त्रासदी ने दो साल पहले के उनके डर को सच कर दिया। गांव वालों के घरों से महज कुछ मीटर की दूरी पर पूरी पनबिजली परियोजना एक ग्लेशियर के फटने की वजह से अचानक आई बाढ़ में बह गई। इस आपदा में अभी तक करीब 10 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि लगभग 190 लोगों की मौत की आशंका है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि गांव को जोड़ने वाला एक मात्र पुल भी बह गया है।
2019 की गर्मियों में गांव वालों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वो पता करे कि आखिर चमोली जिले के रेणी गांव में ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना से जुड़े कंस्ट्रक्शन के काम को लेकर हो क्या रहा है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चमोली जिला अधिकारी और सदस्य सचिव, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक संयुक्त टीम गठित करने का निर्देश भी दिया था। कोर्ट ने कहा था कि ये कमेटी ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना स्थल का निरीक्षण करेगी। गांव वालों ने अपनी जनहित याचिका में कहा था कि ब्लांस्टिंग और स्टोन क्रशिंग के काम से पर्यावरण और स्थानीय लोगों के जीवन पर असर पड़ रहा है। हाईकोर्ट ने अगले आदेश तक ब्लास्टिंग के काम पर रोक भी लगा दी थी।
इसी इलाके से शुरू हुआ था चिपको आंदोलन
रेणी गांव में चल रही ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व के अंतर्गत आती है। यह नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है। चिपको आंदोलन की गौरा देवी रेणी गांव से ही थीं। इसी क्षेत्र से उन्होंने मार्च 1973 में चिपको आंदोलन की शुरुआत भी की थी। रेणी गांव के अनुसूचित जनजाति ग्रामीणों की ओर से जनहित याचिका को कुंदन सिंह ने हाईकोर्ट में दायर की थी। उन्होंने पीआईएल में आरोप लगाया था कि स्टोन क्रशिंग और ब्लास्टिंग के काम के कारण इलाके के जंगली जानवर भागकर गांव में आ जाते हैं।
नदियों पर चल रहींं कई परियोजनाएं
ऋषि गंगा पनबिजली परियोजना चमोली जिले में ऋषि गंगा नदी पर स्थित है, जो कि अलकनंदा की एक सहायक नदी है। यह प्रोजेक्ट जोशीमठ से करीब 27 किलो मीटर दूर रेणी गांव के पास स्थित है। यहां और इसके आसपास सिर्फ एक ही परियोजना नहीं चल रही है। इसके अलावा, अलकनंदा और इसकी सहायक नदियों पर ऋषिगंगा, जोशीमठ के ही पास विष्णुप्रयाग, पीपल कोटी, श्रीनगर और तपोवन विष्णुप्रयाग पनबिजली परियोजनाएं शामिल हैं।
आज की घटना हमारे लिए बस एक उदाहरण है
पीपुल्स साइंस इस्टीट्यूट के भरत झुनझुनवाला और रवि चोपड़ा जैसे पर्यावरणविदों ने उत्तराखंड में एक के बाद एक बन रहे डैम पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह गंगा और स्थानीय पारिस्थितिकी को खत्म कर रहा है। चोपड़ा कहते हैं, ‘विकास के नाम पर कोई भी पनबिजली परियोजना लेकर यहां आ सकता है और पहाड़ों को विस्फोट कर तोड़ना शुरू कर सकता है। किसी को यहां कि पारिस्थितिकी और लोगों पर पड़ने वाले असर की चिंता नहीं है।’ वे कहते हैं कि आज की घटना हमारे लिए बस एक उदाहरण है कि हमने अपनी हिल इकोलॉजी के साथ क्या किया है।
2005 में ही शुरू हो गया था काम
गांव वालों के वकील अभिनव नेगी बताते हैं कि ऋषि गंगा प्रोजेक्ट के तहत 2005 से ही पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले काम शुरू हो गए थे। स्टोन क्रशिंग और ब्लास्टिंग के कारण नंदा देवी बयोस्फीयर रिजर्व के जंगली जानवर भागकर गांव में प्रवेश करने लगे। नेगी बताते हैं कि 2019 में हाईकोर्ट की सुनवाई के दौरान इस परियोजना के कारण रेणी गांव के पास इकट्ठा हुए मलबे को हटाने का मामला भी उठा था।
नेगी कहते हैं कि गांव वालों ने बहुत पहले ही अपनी चिंताओं को जाहिर कर दिया था। कोर्ट ने दो आदेश भी जारी किए लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘मुझे रेनी गांव से मेरे याचिकाकर्ता का फोन आया कि हमें इस बात की चिंता थी कि कुछ हो सकता है, आखिरकार सच हो गया और प्रकृति ने सरकार की उदासीनता का जवाब दे दिया।’