वाराणसी। प्रख्यात शास्त्रीय संगीत गायक और पद्म विभूषण पंडित छन्नूलाल मिश्रा को इंसाफ का इन्तजार है। अपनी बेटी की मौत के मामले में उन्होंने पीएम से लेकर सीएम से गुहार लगाई, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। लाल फीताशाही के मकड़जाल में देश के इस मशहूर कलाकार की आवाज़ दबकर रह गई। जिला प्रशासन ने उनकी बेटी की मौत के मामले में मेडविन अस्पताल को क्लीन चिट दे दी। प्रशासन के इस फैसले से छन्नू लाल मिश्रा बेहद आहत हैं। उन्होंने अब अदालत का दरवाजा खटखटाने का निश्चय किया है।
अस्पताल को क्लीनचिट
वाराणसी जिला प्रशासन के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग की पांच सदस्यीय मेडिकल बोर्ड ने जांच में कोई लापरवाही नहीं पाई है। इलाज में ज्यादा वसूली की शिकायत को खारिज किया गया है। अस्पताल में इलाज और जांच को लेकर के सभी व्यवस्थाओं को सही बताते हुए इसकी रिपोर्ट दे दी गई है। मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को सीएमओ ने जिलाधिकारी को सौंपी है। मेडिकल बोर्ड की 15 पेज के इस रिपोर्ट की कॉपी छन्नूलाल मिश्र के घर भी भिजवा दी गई है। पंडित छन्नूलाल मिश्र की बड़ी बेटी संगीता की मौत 29 अप्रैल को मेडविन हॉस्पिटल में हुई थी।
अस्पताल पर लापरवाही बरतने का आरोप
छन्नूलाल मिश्रा की गिनती देश के शीर्षस्थ कलाकारों में होती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी आवाज़ के दीवाने है। यही कारण है कि ज़ब नरेंद्र मोदी बनारस से चुनाव लड़ने आये तो उन्होंने छन्नूलाल मिश्रा को अपना प्रस्तावक बनाया लेकिन हैरानी इसी बात की है कि बीजेपी राज में ही उन्हें इंसाफ नहीं मिला। उनकी बड़ी बेटी की कोविड के चलते मौत हो गई थी। वो शहर के मेडविन अस्पताल में भर्ती थीं। आरोप है कि इलाज के दौरान लापरवाही बरती गई। उनकी छोटी बेटी का आरोप था कि इलाज के नाम पर मनमाने तरीके से पैसे वसूले गए। यही नहीं मौत के बाद बहन का चेहरा दिखाने के नाम पर भी अस्पताल कर्मचारियों ने 25 हजार रुपये वसूल लिए थे। इस बात की शिकायत उन्होंने जिला प्रशासन की थी।
जांच के बाद अस्पताल को मिली क्लीन चिट
छोटी बेटी डॉ. नम्रता मिश्रा ने मेडविन अस्पताल में इलाज में लापरवाही का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की थी। जिलाधिकारी के निर्देश पर मंडलीय अस्पताल कबीर चौरा की पांच सदस्य वाली मेडिकल बोर्ड ने अस्पताल में हुए जांच और इलाज के कागजात का मूल्यांकन और दोनों पक्षों का बयान लेने के बाद सीएमओ ने अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को भेज दी है।
इधर, मामले में जिलाधिकारी कौशल राज शर्मा ने बताया कि आमतौर पर 3 सदस्य की जांच टीम इस तरह के मामले में जांच करती है, लेकिन इस प्रकरण में 5 डॉक्टरों की टीम ने जांच की। इसमें प्रोटोकाल के तहत इलाज होना पाया गया। कहीं लापरवाही नहीं मिली है।