कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन का आज 56वां दिन था। 41 किसान संगठनों के नेताओं की सरकार से 11वें दौर की विज्ञान भवन में बातचीत भी बेनतीजा रही । सच तो यह है कि तीनों कृषि कानून रद करने का अनावश्यक प्रत्यक्ष हठ तो किसानो का है लेकिन परोक्ष तौर पर यह वामपंथी दलों और काँग्रेस का खेल सभी की समझ मे आ गया । जब सरकार यह कह रही है कि हमें अपनी आपत्तियों की सूची दीजिए हम संशोधन के लिए तैयार हैं। फिर कानून रद करने पर अड़ना मोदी सरकार को नीचा दिखाने के अलावा और कुछ भी नहीं है।

आज तो सरकार पूरी तैयारी के साथ आई थी। सरकार ने किसानों को प्रस्ताव दिया कि डेढ साल के लिए कानूनों को निलंबित रखा जाए। साथ ही एक कमेटी का गठन किया जाए, जिसमें सरकार और किसान दोनों हो, लेकिन किसान संगठन इस प्रस्ताव पर भी नहीं राजी हुए। सरकार की ओर से ये भी अपील की गई कि इस प्रस्ताव के साथ-साथ आपको आंदोलन भी खत्म करना होगा। किसानो का कहना था कि सरकार के प्रस्ताव पर 21 जनवरी को सिन्धु बार्डर पर किसानो की बैठक होगी । जो भी निर्णय होगा सरकार को 22तारीख को 12 बजे से होने वाली बातचीत मे बता दिया जाएगा।

कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने गुरु गोविंद सिंह की जयंती के अवसर पर आज हुई बातचीत को सकारात्मक बताते हुए उम्मीद जताई कि सरकार ने जो प्रस्ताव दिया है उस पर किसान संगठन कल दिन भर आपस मे विचार विमर्श कर लें। हम इस प्रस्ताव को सुप्रीम कोर्ट को भी हलफनामे के माध्यम से सूचित करेगे।

एक पक्ष तो आज की बातचीत से संतुष्ट दिखा लेकिन किसानों का दूसरा पक्ष अब भी कानूनों को रद करने पर डटा दिखा। देखना है कि 22की बैठक में किसकी चलती है।

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, रेल मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश मीटिंग में थे।

लंच से पहले भी बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकल पाया। किसान कानून वापसी पर अड़े रहे। तो सरकार ने भी कानूनों में बदलाव की बात दोहराई। किसानों ने कहा कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर चर्चा से भाग रही है। किसान नेताओं ने आंदोलन से जुड़े लोगों को नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) की तरफ से नोटिस भेजने का भी विरोध किया। इस पर मंत्रियों ने कहा कि आप हमें बेकसूर लोगो के नाम दीजिए। किसी के भी साथ अन्याय नहीं होगा।

2 और किसानों की मौत

टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन में शामिल बुजुर्ग किसान धन्ना सिंह की बुधवार को मौत हो गई, मौत की वजह अभी पता नहीं चल पाई है। उधर, 42 साल के किसान जय भगवान राणा की भी मौत हो गई। रोहतक जिले के रहने वाले राणा ने मंगलवार को सल्फास खा ली थी। वे टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन में शामिल थे। राणा ने सुसाइड नोट में लिखा- अब यह आंदोलन नहीं रहा, बल्कि मुद्दों की लड़ाई बन गई है। किसानों की केंद्र सरकार से बातचीत में कोई हल भी नहीं निकल रहा।

एक्सपर्ट कमेटी कल किसानों से पहली मीटिंग करेगी
कृषि कानूनों के मुद्दे पर समाधान के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से बनाई गई कमेटी के 3 सदस्यों ने मंगलवार को दिल्ली में पहली बैठक की। इसमें आगे की प्रक्रिया, कब-कब मीटिंग करेंगे, कैसे सुझाव लेंगे और रिपोर्ट तैयार करने पर विचार किया गया। कमेटी के मुताबिक 21 जनवरी को समिति किसान संगठनों के साथ बैठक करेगी। जो किसान नहीं आएंगे, उनसे मिलने भी जाएंगे। ऑनलाइन सुझाव लेने के लिए पोर्टल बनाया गया है। 15 मार्च तक किसानों के सुझाव लिए जाएंगे।

इससे पहले समिति के सदस्यों की निजी राय कानूनों के पक्ष में होने का हवाला देते हुए उन्हें बदलने की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा कि किसी व्यक्ति को उसके पहले के विचारों की वजह से समिति का सदस्य होने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता।

किसानों की सरकार से पिछली 10 बैठकों में क्या हुआ?

पहला दौरः 14 अक्टूबर
क्या हुआः मीटिंग में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की जगह कृषि सचिव आए। किसान संगठनों ने मीटिंग का बायकॉट कर दिया। वो कृषि मंत्री से ही बात करना चाहते थे।

दूसरा दौरः 13 नवंबर
क्या हुआः कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और रेल मंत्री पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के साथ मीटिंग की। 7 घंटे तक बातचीत चली, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं निकला।

तीसरा दौरः 1 दिसंबर
क्या हुआः तीन घंटे बात हुई। सरकार ने एक्सपर्ट कमेटी बनाने का सुझाव दिया, लेकिन किसान संगठन तीनों कानून रद्द करने की मांग पर ही अड़े रहे।

चौथा दौरः 3 दिसंबर
क्या हुआः साढ़े 7 घंटे तक बातचीत चली। सरकार ने वादा किया कि MSP से कोई छेड़छाड़ नहीं होगी। किसानों का कहना था सरकार MSP पर गारंटी देने के साथ-साथ तीनों कानून भी रद्द करे।

5वां दौरः 5 दिसंबर
क्या हुआः सरकार MSP पर लिखित गारंटी देने को तैयार हुई, लेकिन किसानों ने साफ कहा कि कानून रद्द करने पर सरकार हां या न में जवाब दे।

6वां दौरः 8 दिसंबर
क्या हुआः भारत बंद के दिन ही गृह मंत्री अमित शाह ने बैठक की। अगले दिन सरकार ने 22 पेज का प्रस्ताव दिया, लेकिन किसान संगठनों ने इसे ठुकरा दिया।

7वां दौर: 30 दिसंबर
क्या हुआ: नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल ने किसान संगठनों के 40 प्रतिनिधियों के साथ बैठक की। दो मुद्दों पर मतभेद कायम, लेकिन दो पर रजामंदी बनी।

8वां दौर: 4 जनवरी
क्या हुआ: 4 घंटे चली बैठक में किसान कानून वापसी की मांग पर अड़े रहे। मीटिंग खत्म होने के बाद कृषि मंत्री ने कहा कि ताली दोनों हाथों से बजती है।

9वां दौर: 8 जनवरी
क्या हुआ: बातचीत बेनतीजा रही। किसानों ने बैठक में तल्ख रुख अपनाया। बैठक में किसान नेताओं ने पोस्टर भी लगाए, जिन पर गुरुमुखी में लिखा था- मरेंगे या जीतेंगे। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी माना कि 50% मुद्दों पर मामला अटका हुआ है।

10वां दौर: 15 जनवरी
क्या हुआ: मीटिंग करीब 4 घंटे चली। किसान कानून वापसी पर अड़े रहे। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने किसानों से अपील करते हुए कहा कि हमने आपकी कुछ मांगें मानी हैं। कानून वापसी की एक ही मांग पर अड़े रहने की बजाय आपको भी हमारी कुछ बातें माननी चाहिए।

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