नई दिल्ली: सीडीएस जनरल बिपिन रावत का असमय जाना देशवासियों और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अपूरणीय क्षति है।उन्होंने बेहद नाजुक दौर में चीन के साथ नियंत्रण रेखा पर टकराव की स्थिति में सूझबूझ से काम लिया और भारतीय सेना व उसकी इच्छाशक्ति का लोहा मनवाया। सेना के आधुनिकीकरण, रिफॉर्म्स की बात हो या सामरिक हितों की वे हमेशा से इन मुद्दों पर स्पष्ट रहे और राजनीतिक नेतृत्व के समकक्ष उन्होंने बेबाकी से अपनी बात रखी. जनरल रावत एक योद्धा और राष्ट्रवादी शख्स थे।
इससे पहले 3 फरवरी 2015 को भी जनरल रावत का हेलिकॉप्टर दुर्घटना का शिकार हो गया था। उस समय वे थर्ड कॉर्प्स कमांडर थे और ईस्टर्न आर्मी कमांडर से मिलने अरुणाचल प्रदेश जा रहे थे। इस दौरान दिमापुर में उनका हेलिकॉप्टर चीता क्रैश हो गया जिसमें उन्हें रीढ़ की हड्डी में चोट आई लेकिन फिर भी वे दूसरे हेलिकॉप्टर से उनसे मिलने के लिए रवाना हो गये।
कश्मीर में उरी सेक्टर में नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान के खिलाफ एक ऑपरेशन के दौरान पत्थर लगने के बाद उनका टखना टूट गया था लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी मेडिकल कैटेगरी के तहत विकलांगता भत्ते का दावा नहीं किया।
म्यांमार सर्जिकल स्ट्राइक के बाद मोदी सरकार की नजर में आए जनरल रावत
पौढ़ी गढ़वाल से आने वाले जनरल रावत पर मोदी सरकार की नजर उस वक्त पड़ी जब वे दिमापुर में कॉर्प्स के रूप में तैनात थे। इस दौरान उन्होंने विद्रोही संगठन के खिलाफ म्यांमार में जून 2015 में सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया। इससे पहले 19वें डिवीजन कमांडर के तौर पर भी उरी सेक्टर में उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ बेहतर प्रदर्शन किया।
जून 2017 में सेना प्रमुख रहते हुए उन्होंने साहस के साथ चीन से मिली चुनौती का सामना किया। सिक्किम में डोकलाम विवाद पर चीनी सेना पीएलए के आगे वे नहीं झुके। भारत और चीन के बीच इस गतिरोध को लेकर जनरल रावत को मोदी सरकार व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल से खुली छूट मिली। जिसका नतीजा यह रहा कि भारतीय सेना ने चीन की आर्मी को इस क्षेत्र में सड़क निर्माण करने से रोक दिया। सामारिक नजरिये से भारत के लिए बड़ी कामयाबी रही।
चीन चिल्लाता रहा, जनरल बिपिन रावत ने एक भी नहीं सुनी
चीन बार-बार मौखिक और शारीरिक रूप से भारत को धमकी देता रहा लेकिन जनरल रावत के साहस ने इतिहास रचा और देश ने चीन की धमकियों की परवाह नहीं की। बिपिन रावत ने सिर्फ सेना का मनोबल बढ़ाया और उन्हें हर हालात से निपटने के लिए तैयार रखा बल्कि राजनीतिक नेतृत्व, नेशनल सिक्योरिटी प्लानर्स और खुफिया विभागों के प्रमुखों के साथ भी बेहतर तालमेल के साथ काम किया।
पिछले साल अप्रैल में जब पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने आ गईं उस वक्त भी मोदी सरकार ने वर्तमान सेनाध्यक्ष मनोज मुकुंद नरवणे और जनरल रावत पर भरोसा जताया और उन्हें कमान सौंपी। जनरल रावत ने नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर और विदेश मंत्री के साथ मिलकर चीन की सेना के उकसावे से निपटने के लिए डिप्लोमेटिक और मिलिट्री टेक्लिंग के लिए एक कोर ग्रुप तैयार किया। इसका परिणाम यह हुआ कि पूर्वी लद्दाख में चीन के तेवर धीरे-धीरे नरम पड़ने लगे। दरअसल जनरल रावत नियंत्रण रेखा पर चीन की हर गतिविधियों से वाकिफ थे और उन्हें पता था भारत को ज्यादा खतरा चीन से है।
सेना के आधुनिकीकरण और थियेटर कमांड निर्मित करने के लिए पीएम मोदी ने जनरल रावत को जिम्मेदारी सौंपी। ताकि बदलते दौर में सेना के स्वभाव और हथियारों में बदलाव हो सके। इस जिम्मेदारी को भी जनरल बिपिन रावत ने बखूबी निभाया। उन्होंने मिलिट्री थियेटर कमांड का पूरा ड्राफ्ट नवंबर में तैयार करके इसे सेना के तीनों विंगों के प्रमुखों को दिया और इस पर जून 2022 तक अपनी राय सौंपने को कहा था। जनरल रावत कहते थे कि यह एक जनादेश था जो पीएम मोदी ने उन्हें दिया।
जनरल बिपिन रावत अब हमारे बीच नहीं रहे, इसलिए पीएम मोदी को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके राष्ट्र सुरक्षा को लेकर तैयार मसौदे पर तेजी से काम किया जाए।