भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में भारतीय सैनिकों द्वारा अपने अंग्रेज अफसरों पर की गई बमबारी एवं गोलाबारी से शुरू हुआ माना जाता है। वास्तव में यह न तो आकस्मिक घटना थी,और न ही अनियोजित ही थी। इसकी शुरुआत मार्च 1857 में ही बंगाल की बैरकपुर छावनी में अपने सुपीरियर अफसर पर गोली चलाकर मंगल पांडे ने की थी। मंगल पांडे और उनके साथी को बाद में फांसी दे दी गई। सेना की राइफलों में इस्तेमाल होने वाले कारतूस के बारे में यह माना जाता था कि उसे चिकना रखने के लिए गाय और सूअर की चर्बी का इस्तेमाल किया जा रहा है। इससे भारतीय जवानों की धार्मिक भावनाओं का आहत होना स्वाभाविक ही था। इसी की प्रतिक्रिया में उत्तर भारत की सभी छावनियों में सैनिकों में घोर असंतोष व्याप्त हो गया था। 1857 की क्रांति केवल एक युद्ध नहीं था अपितु पूरे उत्तर भारत में विद्रोही की एक श्रंखला ने जन्म लिया।जिस पर काबू पाने में British forces को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी।दिल्ली, झांसी, ग्वालियर, कानपुर,बिठूर,लखनऊ बिहार मध्य प्रदेश आदि अनेक स्थानों पर पुनः नियंत्रण प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों को भारी युद्ध और रक्त पात करना पड़ा।
1857 की क्रांति का बहुत ही व्यापक प्रभाव भारत के प्रशासनिक और राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ा।ब्रिटिश पार्लियामेंट ने ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत पर राज करने के अधिकार को वापस ले लिया। भारत की सत्ता सीधे ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत आ गई। ब्रिटेन की महारानी का शासन भारत पर वायसराय के माध्यम से स्थापित हो गया, जिसका भारत की राजनीति, समाज नीति और अर्थव्यवस्था पर अत्यंत गंभीर रूप से हुआ। इस संग्राम का अंग्रेजों को एक बहुत स्पष्ट संदेश प्राप्त हुआ कि “भारत के ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र और मुसलमान संगठित रूप से अंग्रेजों का दमन करने के लिए एकत्र हो सकते हैं”।
भविष्य में भारत पर राज करने की अपनी नीति का एक अस्थाई सिद्धांत उन्होंने अपनाया जिसे हम “फूट डालो राज करो” का सिद्धांत कहते हैं। अंग्रेज शासकों ने हर संभव प्रयास कर, भारत की जातीय, सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का इस्तेमाल विभिन्न समूहों को आपस में लड़ाने के लिए किया। “फूट डालो राज करो” की उनकी नीति बहुत हद तक सफल रही।
उनकी इस नीति की सफलता से बाद के शासक वर्ग ने भी सबक लिया। आज तक इस नीति का अत्यंत परिष्कृत रूप में शासक वर्ग द्वारा प्रयोग किया जाता रहा है। भारतीय जनमानस स्वयं के बिखराव के कारण,शासक वर्ग का संगठित विरोध नहीं कर पाता है।उसकी इस कमजोरी का फायदा बड़ी आसानी से उठाते हैं।
1857 की क्रांति में सभी वर्ग एवं रियासतें अपने अपने हितों के संरक्षण के लिए लड़ रहे थे। फिर भी उनकी सामूहिक शक्ति ने ब्रिटिश एंपायर की चूलें हिला दी थी। बाद के लगभग 90 वर्ष के शासनकाल में अंग्रेजों को पुनः कभी इतने संगठित और सशस्त्र विरोध/विद्रोह का सामना नहीं करना पड़ा। और वे आसानी से अगले 90 वर्ष तक भारत पर काबिज रहे।
द्वितीय विश्वयुद्ध मैं विजय प्राप्त होने के बावजूद भी आर्थिक रुप से अंग्रेज इतने कमजोर हो गए थे कि उन्होंने भारत छोड़ने का निर्णय किया।यदि द्वितीय विश्व युद्ध ना हुआ होता तो शायद अंग्रेज आज भी भारत पर फूट डालो राज करो की नीति का अनुसरण करते हुए आराम से शासन कर रहे होते।
भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में शहीद हुए सभी सेनानियों का शत शत नमन करते हुए हम उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित करते हैं।