बिहार में जाति आधारित जनगणना कराने के लिए सियासत जारी है. ताजा घटनाक्रम में आरजेडी नेता और बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा है. सीएम नीतीश कुमार ने जाति जनगणना को लेकर विपक्षी दलों को पीएम मोदी से मुलाकात करने का आश्वासन दिया था. सीएम ने 4 अगस्त को पीएम को लिखा, लेकिन अभी तक समय नहीं दिया गया है. अगर अब एक हफ्ते तक यह समय नहीं दिया गया तो कहीं न कहीं यह सीएम का अपमान है.
तेजस्वी यादव ने कहा, जातिगत जनगणना को लेकर मुख्यमंत्री ने 4 तारीख को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री से समय मांगा है. आज लगभग एक हफ्ते से ज्यादा हो चुका है, लेकिन अब तक प्रधानमंत्री द्वारा हम लोगों को समय नहीं मिला. आरजेडी नेता ने कहा, हमारी ये भी मांग थी कि अगर केंद्र सरकार मना करती है तो राज्य सरकार कर्नाटक राज्य की तर्ज पर ऐलान करे कि वो जातिगत जनगणना कराएगी.
तेजस्वी यादव ने कहा, आज हमने भी प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी लिखा है. हमने इसमें समय मिलने के लिए गुहार लगाया है. एक हफ्ते से अगर समय नहीं मिल रहा है, तो कहीं न कहीं ये मुख्यमंत्री का अपमान है.
बता दें बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और लालू के छोटे पुत्र तेजस्वी प्रसाद यादव की अगुवाई में विपक्षी दलों के एक शिष्टमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से 30 जुलाई को मुलाकत कर सुझाव दिया था कि या तो विधानसभा का एक शिष्टमंडल जिसमें उनके साथ सभी दलों के सदस्य शामिल रहेंगे, मुख्यमंत्री के नेतृत्व में प्रधानमंत्री से समय लेकर उनके समक्ष अपनी इस मांग को रखें और अगर केंद्र सरकार ऐसा नहीं करती तो राज्य सरकार सभी जातियों की जनगणना करे जैसे कर्नाटक ने कुछ समय पहले किया था.
नीतीश की पार्टी जदयू केंद्र और राज्य में बीजेपी की सहयोगी है. उन्होंने ने 9 अगस्त को कहा था कि उनका लिखा पत्र प्रधानमंत्री कार्यालय को चार तारीख को प्राप्त हो चुका है. अभी तक इसका जवाब नहीं आया है. उन्होंने कहा था, ‘ हमलोग चाहते हैं कि जातीय जनगणना हो जाए, यह केंद्र सरकार पर निर्भर है. यह हम लोगों की पुरानी मांग है. हम पहले भी इस संबंध में अपनी बातों को रखते रहे हैं.’
बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने जातीय जनगणना नहीं होने पर जनगणना,2021 के बहिष्कार की धमकी दी थी. लालू ने बीते 11 अगस्त को ट्वीट कर कहा था, ” अगर 2021 जनगणना में जातियों की गणना नहीं होगी तो बिहार के अलावा देश के सभी पिछड़े और अतिपिछड़ों के साथ दलित और अल्पसंख्यक भी गणना का बहिष्कार कर सकते हैं. उन्होंने कहा था, ”जनगणना के जिन आंकड़ों से देश की बहुसंख्यक आबादी का भला नहीं होता हो तो फिर गणना के आंकड़ों का क्या हम अचार डालेंगे?”