झारखंड विधान सभा चुनाव में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है। अब इसके कारणों की पड़ताल हो रही है। पार्टी भी मंथन कर रही है कि आखिर कहां चूक हुई? क्यों सात महीनों में ही जनता का मूड बदल गया? लोकनीति-सीएसडीएस पोस्ट-पोल सर्वेक्षण के आंकड़े इस बात की ओर इशारा करते हैं कि स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों ने इस चुनाव में बड़ी भूमिका निभाई है। इस विधानसभा चुनाव में पार्टियों के केंद्रीय नेताओं, खासकर भाजपा का प्रभाव सीमित तौर पर देखा गया। यहां तक कि खुद पीएम नरेंद्र मोदी का प्रभाव भी जनता के वोटर का मूड नहीं बदल सका। आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के कामकाज से असंतुष्ट वोटरों की तादाद लगातार बढ़ती चली गई।

हालात ऐसे रहे कि पांच साल में मोदी सरकार के काम से असंतुष्ट वोटरों की संख्या ढाई गुना हो गई। 2014 के विधानसभा चुनाव के वक्त मोदी सरकार के कामकाज से पूर्णत: अंसतुष्ट लोगों की संख्या 6 फीसदी थी जो बढ़कर 2019 के लोकसभा चुनावों के वक्त 8 फीसदी हो गई लेकिन इसके सात महीने बाद ही यह आंकड़ा बढ़कर 15 फीसदी हो गया। यानी पांच साल में असंतुष्टों का आंकड़ा बढ़कर ढाई गुना हो गया जबकि सात महीनों में यह आंकड़ा करीब दोगुना हो गया।

इसका मतलब यह हुआ कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के हालिया कामों को झारखंड की जनता ने नकार दिया। बता दें कि केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को खत्म करते हुए राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया। इसके बाद इसी महीने झारखंड चुनावों के बीच केंद्र सरकार ने संसद से नागरिकता संशोधन बिल पास करवाया। इसके कानून बनने के बाद दिल्ली समेत देशभर में कई जगहों पर विरोध-प्रदर्शन हुए जिसमें 20 लोगों की मौत हो गई।

देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, आर्थिक मंदी, गिरता इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन ऐेसे राष्ट्रीय मुद्दे हैं, जिस पर नरेंद्र मोदी सरकार फिसड्डी रही है। माना जा रहा है कि ऐसे राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर झारखंड की जनता ने मोदी सरकार के कामकाज पर असंतोष जताया और उसका आंकड़ा लगातार बढ़ता चला गया। भीड़ हिंसा और धार्मिक भेदभाव भी केंद्र सरकार के खिलाफ गुस्से का एक कारण बना। मोदी सरकार के काम से पूर्णत: संतुष्टों का आंकड़ा भी पांच साल में आधा से भी कम रह गया है। कुछ-कुछ मुद्दों पर असंतुष्ट रहने वालों का आंकड़ा भी पांच साल में झारखंड में दोगुना से ज्यादा हो गया है।

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