अनिता चौधरी
राजनीतिक संपादक

अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर सदियों से चली आ रही लड़ाई पर अगस्त के पहले सप्ताह में पूर्णतः पूर्ण विराम लगाने जा रहा है । अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के शुभारंभ के लिए भूमिपूजन की तारीख 5 अगस्त तय की गई है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद शिलान्यास और भूमिपूजन करेंगे । जय श्री के उद्घोष के साथ ही भव्य राममंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो जाएगा । और इस तरह से सैंकड़ों की तादात में राम के नाम पर किसी चीज की परवाह किये बिना अपने प्राणों की आहुति देने वाले रामभक्तों को देश की तरफ से उनके सपनों की भेंट है ।

अनिता चौधरी के साथ पदमपति शर्मा की बेबाक बातचीत

रामलला के निर्माणाधीन इस भव्य मंदिर के साथ करोड़ों हिंदुओं की आस्था तो जुड़ी ही हुई है , श्रीराम जन्मभूमि पर बन रहा ये मंदिर सही मायने कारसेवक रूपी रामभक्तों की शहादत के लिए भावभीनी श्रद्धांजलि भी है ।

1990 में अयोध्या का वो खूनी दिन जब मुलायम सरकार में कारसेवक के रूप में राम धुन रमाये रामभक्तों का गोलियों की तड़तड़ाहट के साथ नरसंहार किया गया था । श्रीराम जन्मभूमि के विध्वंस पर बाबर के उस विवादित ढांचे के लिए 492 वर्ष के दौरान हुए 76 प्रयासों में हजारों रामभक्तों को मौत के घाट उतारा जा चुका था । वैसे मंदिर निर्माण पर विरोध आज भी है ,मगर विरोध के ये स्वर हिन्दू आस्था के सामने बौने पड़ गए हैं ।

अनिता चौधरी के साथ पदमपति शर्मा की बेबाक बातचीत

आइए सुनते है 1990 में कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरयू के रक्त स्नान की कहानी , उस खूनी मंज़र के चश्मदीद वरिष्ठ पत्रकार की पदमपति शर्मा की जुबानी।

बड़ा भयावह था दो नवम्बर 1990 का वो दिन जिसे याद कर के वरिष्ठ पत्रकार पदमपति शर्मा की आंखे आज भी भर आईं , रुँधे गले से वो बताते हैं कि तब वो बनारस में दैनिक जागरण के मे थे । उस दिन कानपुर से उनके मालिक संपादक नरेन्द्र मोहन का फ़ोन आया और उन्हें बताया गया कि कारसेवकों का जत्था अयोध्या के लिए प्रस्थान कर रहा है ,आप कवरेज की लिए जाओ । तब उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी ।

अयोध्या जाने वाली हर सड़क सील कर दी गयी थी । हर तरफ कर्फ़्यू लगा हुआ था । सड़क पर सन्नाटा पसरा था , एक भी गाड़ी आती जाती दिखाई नहीं दे रही थी । पत्रकारों को लखनऊ से सूचना विभाग से मान्यता कार्ड लेना था । उस वक़्त के दिल दहला देने वाले मंज़र को याद करते हुए पदमपति शर्मा बताते हैं कि एक्रीडेशन कार्ड लेने के बाद वो अयोध्या के लिए रवाना हुए । हालांकि सूबे के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का ये दावा था कि सुरक्षा इतनी टाइट है कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता । मगर रास्ते मे उन्हें खेतों की झुरमुट में रामभक्त भगवा कारसेवकों और संतों की आहट का साफ -साफ अहसास हो रहा था । दूसरे दिन यानी 30 अक्तूबर को ऐलान के हिसाब से कार सेवकों को अयोध्या पहुँचना था । सारे पत्रकार उनका हनुमान गढ़ी के चौराहे पर इंतज़ार कर रहे थे । प्रशासन की तरफ से किसी भी हलचल को लेकर पूरा इंतज़ाम था।

30 अक्तूबर को हुई कारसेवा ने मुलायम का अहंकार चूर चूर कर दिया था । उसी का बदला था दो नवम्बर का नरसंहार

बड़ी संख्या में बसें लगी हुई थीं कि अगर कोई भी कार सेवक आता है तो उन्हें वहीं पकड़ कर बस से जेल भेज दिया जाएगा । मगर योजनाबद्ध तरीके से अयोध्या पहुँचे काशी के उपेन्द्र विनायक सहस्त्रबुद्धे और राजू पाठक के नेतृत्व वाले राम भक्तों चे जत्थे ने मुलायम सरकार के मंसूबो को उसी वक्त पानी फेर दिया जब हनुमान गढ़ी घुसते ही वहां खड़ी बसों के पहियों को बड़े बड़े सूए से पंक्चर कर दिया और इसके साथ ही परिंदा भी पर नहीं मार सकता वाला मुलायम सिंह यादव चा दावा भी पंचर हो गया । इसके साथ ही ऐसा लगा कि अयोध्या में रामभक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा हो ,घरों से , मठों से बड़ी तादात में कर सेवक निकलने लगे । इन्हीं कर सेवकों में कोठारी बंधु भी थे । उन्होने उस दिन ढांचे की बुर्ज पर चढ कर केसरिया ध्वज लहरिया था।

मनहूस दो नवम्बर की सुबह परमहंस रामचंद्र दास के दिगंबर अखाड़े मे जब मै और आशीष बागची पहुंचे तब पदमपति शर्मा जी का कहना है कि कोठारी बंधु ने उन्हें और बागची को जलेबी- कचौडी का नाश्ता भी कराया । आगे बताते है कि जब उन्होंने कोठारी बंधु से पूछा कि आपको डर नहीं लग रहा कि आज कुछ हो जाएगा तो उसपर उनका जवाब था कि राम के चरणों में उनकी सेवा के लिए आये हैं कुछ हो भी जाये तो राम के नाम होगा । इतने में उमाभारती भी रामभक्तों के एक दल जे साथ आयी और विवादित स्थल से कुछ दूरी पर राम धुन गाने लगी ।

कवरेज के लिए जितने भी पत्रकार गए थे वे हनुमानगढी चौराहे पर स्थित एक छोटे से एक मंजिल के मकान की छत पर चढ़ कर पूरी घटना पर नज़र बनाये हुए थे । इतने में पुलिस का बड़ा दल आया और अचानक से आंसू गैस के गोले बरसाने लगे । आंखों में इतनी जलन हुई कि सबकी आंखें बंद सो गयी और उन बंद आंखों के बीच सुनाई दे रही थी ताबड़तोड़ चलती गोलियों की आवाज़। जब आंखे खुलीं तो सामने पड़ा था रामभक्तों की लाशों का ढेर । वो दौड़ाते हुए उन लाशों के बीच जब पहुँचे तो उन्हीं लाशों में कोठारी बंधुओं के मृत शरीर भी पड़े थे । उन लाशों के ढेर में एक शरीर जिंदा था जो जोधपुर के मेजर अरोड़ा का था उन्होंने अपनी रिवाल्वर निकाल कर मुझे दी और कहा कि किसी पुलिस वाले को देना आगे उस खूनी मंज़र को याद करते हुये पदमपति शर्मा जी ने बताया कि जब मैंने उनसे पूछा कि आपने इसका इस्तेमाल क्यों नहीं किया तो मेजर अरोड़ा के कहना था यहां तो मैं प्रेमधुन राम काज में आया था,गोली चलाने नहीं । उनका कहना था कि साल 1990 में कार्तिक पूर्णिमा का वो दिन था । अमूमन इस दिन लाखों की संख्या में लोग सरयू में स्नान करते हैं । मगर 1990 की उस कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरयू ने स्वयं रामभक्तों के रक्त से स्नान किया था। आगे बताते हैं कि हर तरफ उंसके बाद सन्नाटा पसरा हुआ था । अयोध्या की किसी भी मंदिर में उस दिन दिया नहीं जला था । भगवान के दरबार में भी मातम पसरा था और प्रभु शोकाकुल नज़र आ रहे थे । उनका कहना था कि वो रामभक्त वहां भजन कीर्तन कर रहे थे बिल्कुल शांतिपूर्ण तरीके से ऐसे में उन बेकसूर लोगों पर इस तरह से गोली बरसाना किस तरह से न्याय संगत था ?

मुलायम सिंह यादव उस दिन कठोर दिल वाले कोई क्रूर तानाशाह की तरह नज़र आये थे । आज के समय से तुलना करते हुए वरिष्ठ पत्रकार पदमपति शर्मा बताते हैं कि आज तो पुलिस के सामने बसें जला दी जाती हैं ,पत्थरो की बरसात होती है और मूक दर्शक बन कर पुलिस प्रशासन देखता रहता है।

शहीद कोठारी बंधुओं राम कुमार और शरद के चित्र पर माल्यार्पण करती बहन पूर्णिमा

हालांकि मुलायम सिंह यादव ने बाद में खुद अपनी जुबान से हाल ही में इकबालिया बयान दिया कि राष्ट्र की अखंडता के लिए वो गोलीबारी जरूरी थी । मगर सवाल फिर वही कि रामधुन में रमे रामभक्तों पर गोलियों की वो खूनी बरसात कितनी न्यायसंगत थी ।

पत्रकार पदमपति जी आगे बताते है कि बर्बरता और क्रूरता का आलम ये था कि मुलायम सिंह यादव बिल्कुल बाबर के रूप में नज़र आ रहे थे । उस दिन उनके अखबार न छपे इस लिहाज से जागरण और कुछ और अखबारों का प्रकाशन और वितरण बैन कर दिया गया था । आफिस सील कर दिया गया था । सबको नज़रबंद कर के एक तरह से रखा गया था। हम दोनो यानी बागची और मेरे खिलाफ एफआईआर तक दर्ज कर दी गयी थी । लेकिन जागरण ने पिछले दरवाजे से अखबार के खबर वाले दो पन्नो को कुछ एबीवीपि और संघ के स्वयंसेवकों की मदद से साइक्लोस्टाइल करा कर काशी के पाठकों तक पहुँचाया जिसकी लीड की हैडलाइन थी , कार्तिक पूर्णिमा के दिन सरयू ने स्वयं किया रक्तस्नान । पूरी डिटेल खबर तो पाठकों तक नहीं पहुँच पांयी मगर घटना का अंदाज़ा लोगो को दे दिया गया था ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 अगस्त को अयोध्या में शिलान्यास कर रामभक्तों के उस सपने को साकार करने जा रहे रहे। यह भूमिपूजन रामभक्तों के बलिदान पर एक श्रद्धांजलि स्वरूप होगा । वरिष्ठ पत्रकार पदमपति शर्मा ने अपील की हैं कि श्रीराम के इस भव्य मंदिर में एक शिला इन रामभक्तों के नाम भी जरूर होनी चाहिए जिसे देख कर हमारी आने वाली पीढ़ी भी इस बलिदान की अहमियत को समझ सके ।

( पूरी बातचीत के लिए वीडियो देखें )

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here