13 फरवरी, 1986 को जब पाकिस्तान की जानी मानी गायिका इकबाल बानो ने 50,000 लोगों की भीड़ के सामने फैज अहमद फैज की मशहूर कविता ‘हम देखेंगे’ को आपनी आवाज दी, तब किसी ने नहीं सोचा था कि दशकों बाद उनकी आवाज भारत के प्रदर्शनों में गूंजती हुई सुनाई देगी। भारत में जन्मीं और पाकिस्तान में अपना पूरा जीवन व्यतीत करने वालीं इकबाल बानो की आज पुण्यतिथि है।
इकबाल बानो की पुण्यतिथि पर गजल की रानी का वो किस्सा याद करेंगे, जब उन्होंने अपने बेबाक अंदाज से पाकिस्तानी हुकूमत की तानाशाही को करारा जवाब दिया था। इकबाल बानो के बारे में बात करने से पहले हम उस शायर की बात करेंगे, जिसकी कविता ने इकबाल बानो को दुनिया भर में मशहूर कर दिया था। जी हां, हम बात कर रहे हैं मशहूर शायर फैज अहमद फैज की। फैज को एक इंकलाबी शायर के रूप में पहचाना जाता था। उन्होंने पाकिस्तानी हुक्मरान के खिलाफ अपनी कविताओं और नज्मों के जरिए नाराजगी जाहिर की। इसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
इकबाल बानो की गायिकी से उड़ गई थी पाकिस्तान के तानाशाह की नींद
जेल में सजा काटने के दौरान ही फैज ने ‘हम देखेंगे’ कविता लिखी थी। यह कविता पाकिस्तान में बैन की गई थी, क्योंकि इसमें कुछ चंद लाइन इस्लाम के खिलाफ बताई गई थीं। हालांकि, इकबाल बानो ने उनकी यह कविता अपने अंदाज में ऐसी गायी कि पाकिस्तान के तानाशाह जिया-उल-हक की नींद उड़ गई।
उन्होंने यह कविता फैज मेला के दौरान गायी थी। पाकिस्तान की तानाशाही के खिलाफ इकबाल बानो ने जब फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ गायी, तब उन्होंने काली साड़ी पहनी थी। ऐसा कर इकबाल बानो ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद जिया-उल-हक की तानाशाही के खिलाफ अपनी नाराजगी और प्रदर्शन जताया था।
जिया-उल-हक, जो कि पाकिस्तान के कट्टर तानाशाह रहे थे, उन्होंने पाकिस्तान में साड़ी पहनने पर पाबंदी लगाई हुई थी और वह इसलिए क्योंकि उनका मानना था कि साड़ी भारतीय परिधान है। भारत की हिंदू महिलाएं साड़ी पहनती हैं, इसलिए पाकिस्तान में मुस्लिम महिलाएं साड़ी नहीं पहन सकती थीं। इकबाल बानो ने जब लाहौर स्थित अल-हमरा आर्ट काउंसिल में यह कविता गायी, तब पूरा स्टेडियम झूम उठा था। इकबाल के इस परफॉर्मेंस की वीडियो रिकॉर्डिंग तो कहीं उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन ऑडियो रिकॉर्डिंग मौजूद हैं।
‘हम देखेंगे’ को लेकर भारत में मचा था बवाल
गजल की रानी की इस परफॉर्मेंस ने पाकिस्तान ही नहीं, बल्कि भारत में ही अपना एक मुकाम बनाया। बीते वर्षसिटिजन अमेंडमेंट एक्ट के खिलाफ जामिया में प्रदर्शन हुए और फिर पुलिस द्वारा कार्रवाई हुई। उसके खिलाफ आईआईटी कानपुर में प्रदर्शन हुआ। छात्रों ने अपने प्रदर्शन का नाम रखा- सोलिडैरिटरी विद जाफिया। जामिया में छात्रों के साथ पुलिस द्वारा किए गए सलूक के खिलाफ आईआईटी कानपुर के छात्रों ने अपनी नाराजगी जताते हुए प्रदर्शन किया था।
इस प्रदर्शन में ही फैज की कविता ‘हम देखेंगे’ गायी गई थी। इसे लेकर यह बहस छिड़ गई थी कि यह कविता हिंदू विरोधी है। काफी लंबे समय तक इस पर हंगामा बरपा था, लेकिन उर्दू के जानकारों ने फिर यह स्पष्ट किया था कि इसमें कहीं भी ऐसा कुछ नहीं लिखा है, जिससे यह मान लिया जाए कि ये हिंदू विरोधी है।
ऑल इंडिया रेडियो को भी दी थी इकबाल बानो ने अपनी आवाज
इकबाल बानो की आवाज में एक खनक थी। वह ट्रेडनिशनल और मॉर्डन दोनों ही रूप में बहुत ही सहजता के साथ गाना गा लेती थीं। देश के बंटवारे से पहले उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो को भी अपनी आवाज़ दी थी। जब बंटवारा हुआ तो वह अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चली गईं। यहां उन्होंने कई पाकिस्तानी फिल्मों में गाना गया। 1974 में सरकार की तरफ से उन्हें प्राइड ऑफ़ पाकिस्तान अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।