व्योमकेश

हमेशा की तरह दंगों के बाद मीडिया मे हिला देने वाली दर्दनाक कहानियाँ, भाई-चारे और इन्सानियत की चर्चा जैसा कर्मकांड पिछले दिनो दिल्ली में हूई हिसा की समीक्षा के तौर पर मुख्य धारा के मीडिया में देखने को मिल रहा है। दंगे की वजह के तमाम कारण भी बताए जा रहे हैं। उकसाने वाले बयानों की भी चर्चा जोर शोर से की जा रही है। लेकिन मीडिया मे अभी तक इस पर कोई निष्पक्ष चर्चा या बहस पढने या देखने को नहीं मिली जिससे ‘दिल्ली क्यों जली’ का पाठक या दर्शक आकलन कर पाता, निष्कर्ष पर पहुँच पाता।

सच तो यह है कि इतने संवेदनशील मुद्दे को लेकर सिर्फ पेड के पत्ते हिलाए जा रहे है, अभी तक किसी ने जड पर प्रहार नहीं किया। जबकि इमानदारी से देखा जाय तो दिल्ली जलने का कारण आईने की तरह साफ है और वो है शाहीन बाग। लगभग पौने तीन महीने से सडक रोक कर महिलाओं और मासूम बच्चों को आगे रखते हुए  धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। कारण सीएए का विरोध। सारी दुनिया जानती है कि इससे किसी भी देशवासी का कोई नुकसान नहीं होने जा रहा है। यह बात शाहीन बाग भी जानता है। मगर राजनीतिक दल और देश तोडने का मंसूबा पालने वाले साजिशकर्ता इस बहाने देश और विदेश में अनावश्यक भ्रम फैला कर सरकार पर निशाना साधने पर जी जान से लगे हैं । 

जिस तरह की भडकाऊ तकरीर की जा रही थीं, जिस तरह से पीएम और गृह मंत्री को कोसा जा रहा था, जिस तरह के भावुकता भरे बयान मासूभ बच्चों से दिलाए जा रहे, उनसे झूठ पर झूठ बुलवाया जा रहा था। आर पार की लडाई लडने की बात कह कर देश के चोटी के राजनेता आग मे घी डालने का काम कर रहे थे। देश भर मे शाहीन बाग ले जाने की कोशिश को क्या आप सही मानेगे? 

‘छीन के लेंगे आजादी’ के नारे किसके लिए खुल कर लगाए जा रहे थे। घरों मे पत्थर और आग लगाने वाली सामग्री जुटायी जा रही थी, हथियार इकट्ठा किए जा रहे थे, आखिर किस प्रयोजन से ? क्या मीडिया ने ये सब महसूस नही किया ? जिस तरह के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे थे, जिस तरह से एक दल विशेष और संघ को कैंसर करार देकर जेहाद की बात की जा रही थी। 15 करोड बनाम सौ करोड यू ही नही कहा गया। 

मौजपुर मे अचानक आधी रात के बाद सैकडों की तादात मे बाहर निकल कर बीच सडक धरने पर बैठने  के खिलाफ यदि किसी नेता ने चेतावनी दे दी कि सडक खाली करो, हम दूसरा शाहीन बाग नहीं बनने देंगे तो उसे दंगाई करार दे दिया गया ? आखिर कोई तो सामने आता और वो आया तो जुल्म हो गया ? 

शाहीन बाग दरअसल देशद्रोह है। संसद से पारित कानून का विरोध आप झूठ बोल कर मिध्या प्रचार से नहीं कर सकते। पुलिस-प्रशासन को सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए लताड़ा भी। शाहीन बाग के साथ साथ पुलिस-प्रशासन भी दिल्ली में दंगों के लिए कम जिम्मेदार नहीं है।

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