देश में हमेशा जनसंख्या वृद्धि बड़ी समस्या का कारण बताया जाता रहा है. इसके लिए समय-समय पर लोगों को जागरूक करने के लिए अभियान भी चलाए गए और परिवार नियोजन पर ध्यान देने की कोशिश की गई. चीन ने भी अपने जनसंख्या पर नियंत्रण पाने के लिए कई कदम उठाए और यहां तक कि दंडात्मक उपाय का भी प्रावधान रखा. भारत में एक सच है कि राष्ट्रीय प्रजनन दर 1950 में 6 के करीब था, जोकि गिरकर अब 2.2 हो गया है. वहीं, कुछ राज्यों में उच्च प्रजनन दर अभी भी है, जबकि अन्य ने जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पाने में काफी सफलता हासिल की है. असम और यूपी का मानना है कि बढ़ती आबादी को रोकने के लिए उन्हें दो बच्चों की नीति की जरूरत है.

प्रजनन दर उन बच्चों की औसत संख्या को इंगित करती है जिन्हें प्रत्येक महिला अपने प्रजनन वर्षों के दौरान जन्म देगी. यह माना जाता है कि किसी देश की जनसंख्या स्थिर रहने के लिए कुल प्रजनन दर 2.1 होनी चाहिए. इसका मतलब यह है कि प्रति महिला 2.1 जन्म पर एक देश की जनसंख्या एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक स्थिर रहेगी.

1950 के दशक में भारत में 5.9 की उच्च प्रजनन दर मानी गई थी और 2000 के दशक की शुरुआत में भी यह 3 से ऊपर बनी रही. हालांकि, 2010 के बाद राष्ट्रीय प्रजनन दर में काफी गिरावट देखी गई और यह 2018 में 2.2 पर आ गई. विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के लिए प्रतिस्थापन स्तर पर बने रहने के लिए यह आंकड़ा आवश्यक हो सकता है क्योंकि देश में बाल मृत्यु दर अपेक्षाकृत अधिक है.

देश में सबसे ज्यादा प्रजनन दर वाले राज्यों को देखा जाए तो उत्तर प्रदेश 2.9, बिहार में 3.3 और असम में 2.2 है. असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि कुछ हिस्सों में जनसंख्या ज्यादा है, जिसने राज्य के विकास के लिए एक वास्तविक खतरा पैदा कर दिया है.

असम में बीजेपी सरकार के लिए जनसंख्या नियंत्रण एक बड़ा फोकस रहा है और 2017 में राज्य विधानसभा ने ‘असम की जनसंख्या और महिला अधिकारिता नीति’ नाम से एक प्रस्ताव रखा था, जिसमें दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को सरकारी नौकरी पाने और अन्य सुविधाओं को रोकने का प्रस्ताव था. 2019 में राज्य सरकार ने घोषणा की थी कि 2021 से वह दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने की अनुमति नहीं देगी. सरमा ने पिछले सप्ताह कहा था कि हम सरकारी योजनाओं के लिए जनसंख्या मानदंडों को धीरे-धीरे लागू करेंगे.

प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण विधेयक के एक मसौदे के अनुसार, उत्तर प्रदेश में दो-बच्चों की नीति का उल्लंघन करने वाले को स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने, सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करने, पदोन्नति और किसी भी प्रकार की सरकारी सब्सिडी प्राप्त करने से वंचित कर दिया जाएगा. राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण एवं कल्याण) विधेयक-2021 का प्रारूप तैयार कर लिया है. उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग (यूपीएसएलसी) की वेबसाइट के अनुसार, ‘‘राज्य विधि आयोग, उप्र राज्य की जनसंख्या के नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण पर काम कर रहा है और एक विधेयक का प्रारूप तैयार किया है.’’ विधि आयोग ने इस विधेयक का प्रारूप अपनी सरकारी वेबसाइट पर अपलोड किया है और 19 जुलाई तक जनता से इस पर राय मांगी गई है. इस विधेयक के प्रारूप के अनुसार इसमें दो से अधिक बच्चे होने पर सरकारी नौकरियों में आवेदन से लेकर स्थानीय निकायों में चुनाव लड़ने पर रोक लगाने का प्रस्ताव है. इसमें सरकारी योजनाओं का भी लाभ न दिए जाने का जिक्र है.

भारत में कई राज्यों में दो बच्चों की पॉलिसी है. उदाहरण के लिए राजस्थान में दो से अधिक बच्चों वाले लोग सरकारी नौकरी के लिए पात्र नहीं हैं, जबकि राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 ऐसे लोगों को पंचायत चुनाव लड़ने पर रोक है. मध्य प्रदेश ने 2001 से यह निर्धारित किया है कि जिन लोगों की उस वर्ष के बाद तीसरी संतान है, वे सरकारी रोजगार के लिए पात्र नहीं होंगे. लेकिन, स्थानीय निकाय चुनावों में उम्मीदवारों के लिए एक समान नियम 2005 में हटा दिया गया था. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना दोनों ने पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों के लिए एक समान आवश्यकता पेश की है. 2005 के बाद से गुजरात ने पंचायत या नगर निकाय चुनाव लड़ने से दो से अधिक बच्चों वाले लोगों को अयोग्य घोषित कर दिया है. उत्तराखंड और ओडिशा में भी इसी तरह के कानून हैं. महाराष्ट्र में जिस व्यक्ति के 2005 के बाद से दो से अधिक बच्चे हैं वह सरकारी नौकरी के लिए योग्य नहीं है.

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