इस्लामाबाद: कभी मुस्लिम देशों के सबसे चहेते देश रहे पाकिस्तान की यह हालत हो चुकी है कि दो पाटों के बीच फंस कर अलग थलग पडता जा रहा है। ताजा मामला तब सामने आया जब कई दिनों की ऊहापोह के बाद उसने ऐलान किया कि वह मलेशिया की राजधानी क्वालालंपुर में हो रहे मुस्लिम सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेगा।
पाकिस्तान ने कहा कि सम्मेलन को लेकर कुछ मुद्दे हैं और वह नहीं चाहता कि मुस्लिम देशों में कोई मतभेद पैदा हो। लेकिन, पाकिस्तान के सम्मेलन से दूर रहने की वजह सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात की नाराजगी को माना जा रहा है। ये दोनों देश इस सम्मेलन का हिस्सा नहीं हैं और पाकिस्तान की आर्थिक बदहाली को कम करने में इन देशों की मदद का हाथ रहता है।
सऊदी से लौटने के बाद इमरान ने किया ऐलान
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान सऊदी अरब गए और वहां से लौटने के बाद ऐलान किया कि वह क्वालालंपुर नहीं जा रहे हैं। बाद में साफ हुआ कि पाकिस्तान से कोई नहीं जा रहा है। सऊदी अरब और यूएई को इस बात का अंदेशा है कि क्वालालंपुर में बुधवार से शुरू हुआ मुस्लिम देशों का सम्मेलन सऊदी अरब स्थित आर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन (OIC) के समानांतर एक नया संगठन खड़ा करने का प्रयास है। इसमें सऊदी अरब और यूएई से अच्छे संबंध नहीं रखने वाले ईरान, कतर और एक हद तक तुर्की की भी खास भूमिका ने इन दोनों देशों को चौकन्ना कर दिया।
पाकिस्तान पर डाला गया सम्मेलन में जाने का दबाव
सऊदी और यूएई की तरफ से पाकिस्तान पर दबाव डाला गया और आर्थिक हितों को देखते हुए उसे इन देशों की बात माननी पड़ी। खास बात यह है कि इस सम्मेलन की रूपरेखा बनाने में इमरान खान, तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगान और मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद के साथ सबसे आगे रहे थे। इमरान ने महाथिर को फोन कर आने में असमर्थता जता दी। इसका खुलासा खुद पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने किया। इमरान की जगह उन्हें ही मलेशिया जाना था जो दौरा बाद में कैंसिल हो गया। कुरैशी ने कहा कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात को क्वालालंपुर सम्मेलन को लेकर कुछ चिंताएं हैं।
‘सम्मेलन में भाग लेने की इजाजत के लिए नहीं गए थे’
कुरैशी ने कहा कि सऊदी अरब और यूएई को आशंका है कि इससे मुस्लिमों के बीच विभाजन पैदा हो सकता है और यह ओआईसी के समानांतर खड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि इन बातों के मद्देनजर यह तय किया गया था कि पाकिस्तान पहले सऊदी अरब और मलेशिया के बीच के संबंधों को बेहतर करने का प्रयास करे और अगर ऐसा न हो सके तो फिर सम्मेलन में भाग न ले। उन्होंने कहा कि इमरान की सऊदी अरब की यात्रा इन दोनों देशों के बीच रिश्तों का पुल बनाने के लिए थी न कि सम्मेलन में भाग लेने की इजाजत लेने के लिए।