पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र स्थित मंडुआडील रेलवे स्टेशन को अब बनारस रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाएगा। काशी के सांसद व देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन की पूर्व संध्या पर वाराणसी को रेलवे से भी बड़ी सौगात मिली है। स्टेशन के प्लेटफार्म से लेकर मुख्य भवन पर बनारस के नाम का बोर्ड भी लग गया। नए बोर्ड पर हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू में बनारस लिख दिया गया है।
गौरतलब है कि, बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्रालय और रेल मंत्रालय ने वाराणसी के मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदले का फैसला किया था। इस संबंध में सरकार के कई स्तरों पर जरूरी कार्रवाई पूरी की जा रही थी। मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर वाराणसी किए जाने की मांग लंबे समय से लंबित थी, जिसपर विचार करने के बाद केंद्र सरकार ने नाम परिवर्तन को स्वीकृति दी थी।
स्टेशन का नाम मंडुवाडीह के स्थान पर बनारस करने की स्वीकृति रेलवे बोर्ड से मिलते ही नाम बदलने का काम भी कर दिया गया। अब इस स्टेशन का नाम हिन्दी में बनारस और अग्रेजी में BANARAS होगा। इस स्टेशन का कोड BSBS मिला है। इसके साथ ही काशी के विद्वत जन की मांग पर इस स्टेशन की नाम पट्टिका पर संस्कृत में भी इसका नाम (बनारसः) अंकित किया गया है। आज रात 12 बजे (15 जुलाई 2021) से इस स्टेशन से जारी होने वाले टिकटों पर भी स्टेशन का नाम बनारस एवं स्टेशन कोड BSBS अंकित होकर जारी होगा।
वाराणसी के साथ ही काशी और बनारस भी क्षेत्रीय लोकाचार की भाषा में प्रसिद्ध है। यहां पहले से वाराणसी, काशी और वाराणसी सिटी के नाम से तीन स्टेशन हैं। बनारस के नाम से कोई स्टेशन नहीं था। पिछले कुछ साल से शहर के बीच में स्थित मंडुवाडीह स्टेशन को नई साज सज्जा मिली तो इसका नाम बनारस करने की मांग उठने लगी।
एयरपोर्ट जैसा अहसास देता है यह रेलवे स्टेशन
बनारस के नजदीक स्थित मंडुआडीह रेलवे स्टेशन आपको एयरपोर्ट जैसा अहसास देता है। रेलवे देश में कई स्टेशनों को विश्वस्तरीय बनाना चाहता है। मंडुआडीह स्टेशन इसका एक नमूना है। यह न केवल बेहद खूबसूरत है बल्कि यहां उपलब्ध यात्री सुविधाएं भी बेमिसाल हैं।
यह स्टेशन एलईडी लाइटों से चकाचौंध है। वेटिंग हॉल एसी सहित आधुनिक सुविधाओं से लैस है। प्लेटफॉर्म पर चमचमाते स्टेनलेस स्टील के बेंच लगे हैं। देश के आम रेलवे स्टेशनों से यह बिल्कुल अलग दिखता है।
फाउंटेन स्टेशन की सुंदरता को बढ़ाते हैं। वेटिंग हॉल और सर्कुलेटिंग एरिया दूसरे स्टेशनों के मुकाबले बड़े हैं। इतना ही नहीं बुकिंग, रिजर्वेशन ऑफिस, कैफेटेरिया, फूड कोर्ट भी बिल्कुल आधुनिक नजर आते हैं।
यात्रियों के लिए एसी लॉन्ज, एसी और नॉन एसी रिटायरिंग रूम और डोरमेट्रीज की सुविधा उपलब्ध है। प्लेटफॉर्म पर गंदगी का नामोनिशान नहीं दिखता है। एलसीडी डिस्प्ले पैनल इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं।
पूर्व रेलराज्यमंत्री मनोज सिन्हा की पहल रंग लाई
पूर्व रेल राज्यमंत्री मनोज कुमार सिन्हा की पहल ने आखिरकार रंग ला दिया। नाम को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न होने के चलते यात्री और सैलानियों को परेशानी का सामना करना पड़ता था। सांस्कृतिक और आध्यात्मिक राजधानी काशी में होने के बावजूद अंतराष्ट्रीय पटल पर लोग मंडुवाडीह स्टेशन के नाम से अनजान थे। अमूमन नाम को लेकर भ्रमवश यात्रियों को इधर- उधर भटकना पड़ता है। ऑनलाइन रेलवे टिकट बुकिंग में भी उन्हें परेशानी होती थी। अब जनपद के समानांतर मंडुवाडीह स्टेशन का नाम बदलने से कोई कठिनाई नहीं होगी।
यूं तो मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलने की मांग समय- समय पर उठाई जाती रही है। लेकिन इसे मूर्तरूप देने का काम पूर्व केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज कुमार सिन्हा ने किया। उन्होंने वर्ष 2014- 15 में रोहनिया स्थित एढे गांव में आयोजित एक जनसभा को सम्बोधित करते हुए मंडुआडीह स्टेशन का नाम बदलने का वादा किया था। मनोज सिन्हा ने इस दिशा में मंत्रालय की स्वीकृति प्रदान करने के पश्चात राज्य और केंद्र को फ़ाइल बढ़ा दिया था। कैस बनारसी फाउंडेशन और जनजागृति समिति ने भी नाम बदलने की वकालत की थी।