अपने पूर्वांचल दौरे के दूसरे दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सोनभद्र के बभनी स्थित सेवा कुंज आश्रम में विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लिया। यहां उन्होंने 250 छात्रों के लिए बने अंत्योदय छात्र कुल, बिरसा मुंडा बनवासी विद्यापीठ का लोकार्पण किया। साथ ही छात्रावास के लिए भूमि पूजन भी किया।
राष्ट्रपति कोविंद सुबह साढ़े 10 बजे सेवा कुंज आश्रम के हेलीपैड पर उतरे। यहां उन्होंने 15 मिनट विश्राम किया। इसके बाद उन्होंने आश्रम के विभिन्न पदाधिकारियों से मुलाकात की। उनका कुशल क्षेम जाना और सोनभद्र व आसपास की सीमाओं से सटे इलाकों के बारे में जानकारी ली। इसके बाद उन्होंने आश्रम का भ्रमण किया। यहां गुरुकुल पद्धति से हो रही पढ़ाई के बारे में जानकारी ली। इसके बाद उन्होंने छात्रावास के निर्माण के लिए भूमि पूजन किया फिर मंच पर पहुंचे। वहां उन्होंने रिमोट से अंत्योदय छात्र कुल बिरसा मुंडा बनवासी विद्यापीठ का लोकार्पण किया।
भगवान बिरसा मुंडा को किया याद
उन्होंने सेवा कुंज आश्रम में संबोधित करते हुए कहा कि आज मुझे भगवान बिरसा मुंडा जी का स्मरण हो रहा है। उन्होंने अंग्रेजों के शोषण से वन संपदा और वनवासी समुदाय की संस्कृति की रक्षा के लिए अनवरत युद्ध किया और शहीद हुए। उनका जीवन केवल जनजातीय समुदायों के लिए ही नहीं बल्कि सभी देशवासियों के लिए प्रेरणा और आदर्श का स्रोत रहा है। मुझे इस बात का संतोष है कि मेरी सांसद निधि की राशि का उपयोग आपके संस्थान व आश्रम के शिक्षा संबंधी प्रकल्प में हुआ है। किसी भी धनराशि का इससे बेहतर उपयोग नहीं हो सकता है। मैं आभारी हूं कि आप सबने मुझे योगदान करने का अवसर दिया और कल्याणकारी प्रकल्पों से जोड़े रखा।
वनवासियों के बिना नही हो सकता देश का समग्र विकास
उन्होंने कहा कि वनवासी समुदाय के विकास के बिना देश के समग्र विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। सही मायनों में, आप सबके विकास के बिना देश का विकास अधूरा है। देश भर के हमारे आदिवासी बेटे-बेटियां खेल-कूद, कला, और टेक्नॉलॉजी सहित अनेक क्षेत्रों में अपने परिश्रम और प्रतिभा के बल पर देश का गौरव बढ़ा रहे हैं।
सभी से की भागीदारी की अपील
राष्ट्रपति ने कहा कि आज यहां आकर मेरा यह विश्वास और दृढ़ हुआ है कि सनातन काल से चली आ रही हमारी संस्कृति के मूल तत्व हमारे जनजातीय और वनवासी भाई-बहनों के हाथों में सुरक्षित हैं। मुझे विश्वास है कि हमारे वनवासी भाई-बहनों का जीवन, प्रगति और परंपरा के समन्वय की मिसाल बनेगा। हमारा यह प्रयास होना चाहिए कि आधुनिक विकास में आप सभी वनवासी भाई-बहन भी भागीदारी करें, साथ ही आपकी सांस्कृतिक विरासत और पहचान भी संरक्षित और मजबूत बनी रहे।