डॉक्टर रजनीकांत दत्ता
पूर्व विधायक, शहर दक्षिणी
वाराणसी ( यूपी )

देश को आज़ादी मिलने से पहले गाँधी जी ने अखिल भारतीय कांग्रेस की आपातकालीन बैठक बुलायी, जिसे बहुमत के आधार पर यह निश्चित करना था कि, भारत का अगला प्रधानमंत्री कौन बनेगा।कार्यसमिति के 99% सदस्यों ने सरदारवल्लभ भाई पटेल के पक्ष में मतदान किया और जवाहर लाल को सिर्फ एक वोट मिला, पर किन्हीं कारणों से गाँधी जी ने अपने मानस पुत्र जवाहरलाल के पक्ष में वीटो का उपयोग किया। यह भारत का दुर्भाग्य था कि, सरदार वल्लभ भाई पटेल की जगह गाँधी जी की पहली पसंद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बन गये।

जवाहर लाल नेहरू कथित रूप से दत्तात्रेय गोत्र के कौल ब्राह्मण थे।लेकिन उनके संस्कार और विचार अंग्रेज़ियत के गुलामों वाले थे। वह कहते भी थे कि, भारतीय सनातन धर्म अवलंबी होना, उनके जीवन की सबसे बड़ी दुर्घटना है।(I’M INDIAN HINDU BY ACCIDENT) यह उनकी प्रधानमंत्री बनने की हवस थी कि महात्मा गांधी, जो ईश्वर अल्ला तेरे नाम, वाले अखंड भारत के प्रबल पक्षधर थे और जिनका यह दृढ़संकल्प था कि, देश का विभाजन, अव्वल तो धर्म के आधार पर होगा नहीं और होगा भी तो उनकी लाश पर। वे हिन्दू और मुसलमान को भारत माता की दो आँखें और दो बाजुएं मानते थे। और किसी भी हाल में उन्हें काना और लूला भारत स्वीकार नहीं था।

फिर जवाहर लाल राजनीतिक शतरंज के वो खिलाड़ी थे जो आखिरी चाल चलने के पहले आरंभ में ही समझ लेते थे कि, उन्हें पहली चाल से ही किस रास्ते पर चलना है। इसी के तहत उन्होंने फूट डालो और भविष्य में अपना वंशवादी राजतंत्र स्थापित करो की नीति का अनुसरण शुरू कर दिया था।

इसी के तहत उन्होंने कश्मीर को भावी भारत के लिए एक समस्या बनाया और संविधान के PREAMBLE की आत्मा के विपरीत उसमे धारा 370 जोड़ी और उसी में 35(A) जोड़कर सबसे बड़ा CONSTITUTIONAL FRAUD किया, जिसके संज्ञान में आने के बाद संसद को उन पर मरणोपरान्त IMPEACHMENT और उनसे भारत रत्न छीन लेने की कार्यवाही करनी चाहिए।

बहुदलीय संसदीय प्रजातंत्र के रूप में भारत जैसे एथनिक राष्ट्र (जिसमें विभिन संस्कार की कौमें रहती हैं) को मज़हब, जाति, क्षेत्रीयता और भाषा के आधार पर बांटने की साज़िश भी की। आज जो LOC और LAC का विवाद है और तिब्बत पर चीन का कब्ज़ा और संयुक्त राष्ट्रसंघ की SECURITY COUNCIL में चीन की स्थाई सदस्यता नेहरू का गैरइरादतन देशद्रोह है।

1980 तक कश्मीर एक चर्चा का विषय ज़रूर था, मगर वहाँ शांति थी। श्रीमती इंदिरा गांधी के शासन काल में फारूक अब्दुल्ला और मुफ़्ती मुहमद सईद हाशिये पर थे।लेकिन जब 1987 वहाँ के विधानसभा चुनाव हुए तो फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस और स्वर्गीय राजीव गांधी की INC का गठबंधन एक तरफ (यहाँ यह भी बताना जरूरी है की MBBS डॉक्टर फारुख अब्दुल्ला की पत्नी ब्रिटिश मूल की नर्स है) और स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी इटालियन मूल की ब्रिटेन के रेस्त्रां में काम करने वाली वेट्रेस) और दूसरी तरफ जम्मू और कश्मीर के मुस्लिम संगठनों का ज्वॉइंट मुस्लिम फ्रंट।

कहते हैं कि, चुनाव के पूर्व के अनुमानों के अनुसार मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के प्रचंड बहुमत से जीतने की संभावना थी। लेकिन फारुक अब्दुल्ला और राजीव गांधी के नेतृत्व में उनके द्वारा इतनी धांधली की गयी थी कि, मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट को सिर्फ 4 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। फलस्वरूप उसके नेता यासीन मलिक, मक़बूल बट, चलौदीन और गिलानी के नेतृत्व में यह जनाक्रोश मिलिटेंसी में बदल गया। इसी वजह से कालांतर में J&K के विधानसभा पर आतंकवादी हमला किया गया था, जिसमें 40 विधायक मारे गये और फारूक अब्दुल्ला ने, जो किसी तरह बच गये थे, सदर-ए-रियासत के पद से इस्तीफा दे दिया और कश्मीर घाटी में यहीं से आतंकवाद की शुरुआत हुई। तत्पश्चात राष्ट्रपति शासन लग गया। पाकिस्तान के संरक्षण में कश्मीर का इस्लामीकरण होने लगा।

बाद में जब V.P SINGH की केंद्र में सरकार थी और मुफ़्ती मुहम्मद सईद उसमे केंद्रीय गृहमंत्री थे, तभी उनकी पुत्री रुबिया का अपहरण हुआ, जिसके एवज में कई हार्डकोर आतंकवादी छोड़ दिये गये।
ऐसी ही घटना गुलाम नबी आजाद के साथ और सैफुद्दीन सोज़ के साथ भी हुई। लोग कहते हैं कि, आतंकवाद के समर्थन की इस साजिश में इन नेताओं का भी बहुत बड़ा हाथ था।

फिर 19 जनवरी 1990 को, कश्मीरी पंडितों को इन मुस्लिम मिलिटेंट्स द्वारा मास-genecide के साथ कश्मीर से बाहर निकाल दिया गया, जो आज भी अपने ही देश मे शरणार्थी हैं।

इसके बाद जो कांग्रेस की सरकारें आयीं, उन्होंने हुर्रियत कांफ्रेंस के नेतृत्व में पलने वाले इस आतंकवाद को रोकने के बजाए और बढ़ावा दिया। हुर्रियत कांफ्रेंस एंड एन्टी-इंडियन वो पाकिस्तानी इन आतंकवादियों को पालने और संरक्षण देने में तत्कालीन भारत सरकार हमारे खून-पसीने की कमाई के tax का 100 करोड़ रुपये खर्च करती थी। और मिलिट्री एनकाउंटर में जो आतंकवादी जो मारे जाते थे, उनका शहीदों की तरह जनाज़ा उठाते थे। इसके कारण कश्मीर के कई युवाओं को आतंकवादी बनने की प्रेरणा भी मिलती थी।

आज जब भाई नरेंद्र मोदी ने तुष्टिकरण के राजनीतिक एपिसोड को छोड़कर जब एक सेक्युलर प्रधानमंत्री की तरह कार्यवाही की है और 370 और 35(A) को समाप्त कर जम्मू कश्मीर और लद्दाख को सम्पूर्ण भारत की तरह संवैधानिक दर्जा दिया है वे लोग जिनकी फूट डालो और राज करो की दुकान बंद हो रही है, वे चिल्ल-पों मचा रहे हैं। आज जरूरत है कि, देश के इन गद्दारों के काले कारनामों की सूची जनता के सामने रखी जाए। सरकार तो जो करना है वह वह करेगी ही, लेकिन जनता की अदालत इन्हें ऐसा दंड दे कि, वे भारत के खिलाफ मीर जाफर और जयचंद बनने से पहले हज़ार बार सोचें।

जय हिंद।
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