सोमवार को कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर साल का आखिरी चंद्रग्रहण नजर आएगा। 30 नवंबर को आसमान में चंद्रग्रहण की खगोलीय घटना घटित होने जा रही है। हालांकि यह चंद्रमा के उदित हो रहा होगा तो कुछ मिनट के लिये यह उपछाया ग्रहण दिखाई देगा। भारत में जब चंद्रमा के उदित हो रहा होगा तो कुछ मिनट के लिये यह उपछाया ग्रहण दिखाई देगा। बाकी शहरों में जब चंद्रमा उदित होगा तो यह ग्रहण समाप्त हो चुका होगा।

किन राज्यों में देखा जाएगा ग्रहण

भोपाल की राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त विज्ञान प्रसारक सारिका घारू ने रविवार को इसकी जानकारी देते हुए बताया कि कोरोना संकट की बीच इस साल कार्तिक पूर्णिमा पर चौथा एवं अंतिम उपछाया चंद्रग्रहण होने जा रहा है। पूर्वी मध्यप्रदेश के अलावा भारत में यह ग्रहण असम, बिहार, उत्तराखंड, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, त्रिपुरा आदि पूर्वी प्रदेशों में देखा जा सकेगा।

भारतीय समयानुसार ग्रहण का समय

सारिका ने बताया कि इस साल भारत में चारों चंद्रग्रहण उपछाया चंद्रगहण रहे हैं। यह ग्रहण भारतीय समय के अनुसार दोपहर 1.02 बजे आरंभ होगा तथा शाम 5.23 बजे समाप्त होगा। करीब 4 घंटे 21 मिनट के इस चंदग्रहण की अधिकतम ग्रहण दोपहर 3.12 बजे होगा। भोपाल सहित सम्पूर्ण मध्यप्रदेश में अगला चंद्रगहण देखने के लिये 26 मई 2021 का इंतजार करना होगा।

कब होती है ये खगोलिय घटना

सारिका ने बताया कि जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में हो, जिससे पृथ्वी, सर्य के प्रकाश को चंद्रमा तक पहुंचने से रोक देती है तो चंद्र ग्रहण की खगोलीय घटना होती है। चंद्रग्रहण तीन प्रकार के होते हैं-पूर्ण चंद्रग्रहण, आंशिक चंद्रग्रहण और उपछाया चंद्रग्रहण।

पूर्ण चंद्रग्रहण :- जब चंद्रमा और सूर्य के बीच में पृथ्वी आ जाती है और पृथ्वी की घनी छाया चंद्रमा को पूरी तरह ढक़ लेती है, जिससे चंद्रमा चमकीला न दिखकर लाल दिखने लगता है।

आंशिक चंद्रग्रहण :- जब चंद्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी इस प्रकार आये कि पृथ्वी की छाया चंद्रमा के कुछ हिस्से पर पड़े तो इसे आंशिक चंद्रग्रहण कहते हैं। इसमें चंद्रमा की चमक कुछ कम दिखने लगती है।

उपछाया चंद्रग्रहण :- सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी के आने पर बीच में तो घनी छाया बनती है, लेकिन उसके चारों और उपछाया बनती है। जब चंद्रमा सिर्फ उपछाया वाले भाग में आता है तो इसे उपछाया चंद्रग्रहण कहते हैं। इस ग्रहण को पहचानना कठिन होता है, क्योंकि चंद्रमा की चमक कुछ ही कम होती है। केवल टेलिस्कोप द्वारा चमक का अंतर समझा जा सकता है।

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