नई दिल्ली । ला नीना की वजह से उत्तर भारत में इस साल ज्यादा दिनों तक कड़ाके की ठंड पड़ने की उम्मीद है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने कहा कि विभिन्न मौसम संबंधी मापदंडों से मिले संकेत के मुताबिक फिलहाल ला नीना अपने चरम पर है। यह सितंबर से शुरू हुआ है और अगली गर्मियों तक ही अपनी स्वाभाविक स्थिति में लौटेगा। इतना ही नहीं वैज्ञानिकों ने कहा कि अगले साल मई, जून और जुलाई के साथ ही मॉनसून पर भी इसका असर पड़ेगा।
पूर्वानुमान करना जल्दबाजी
मौसम विज्ञान विभाग, पुणे के वरिष्ठ वैज्ञानिक डीएस पाई ने कहा कि जैसा कि हमने पहले ही कहा था कि इस साल उत्तर-पश्चिम भारत में तापमान सामान्य से नीचे रहने की उम्मीद है। उन्होंने इस बार अधिक सर्दी और ज्यादा शीत लहर चलने की संभावना भी व्यक्त की थी। उन्होंने कहा कि आमतौर पर ला नीना भारतीय मानसून की मदद करता है। इसका मतलब यह हुआ कि सामान्य बारिश से ऊपर की उम्मीद, लेकिन फिलहाल मानसून पूर्वानुमान करना बहुत जल्दी होगी।
तापमान में उतार-चढ़ाव रहेगा
भारतीय मौसम विभाग ने पहले ही उत्तर भारत में रात का तापमान सामान्य से कम रहने और दिन का तापमान सामान्य से अधिक रहने की संभावना व्यक्त की थी। दिन और रात के तापमान में उतार-चढ़ाव रहने के बारे में भी बताया था। उसने कहा था कि पश्चिमी तट और दक्षिण भारत में सामान्य तापमान न्यूनतम तापमान से अधिक रहेगा। प्रशांत महासागर के भूमध्यरेखीय क्षेत्र में मध्यम ला नीना की स्थिति निर्मित हो रही है। इस बात की संभावना है कि यह स्थिति सर्दियों के अंत तक बनी रह सकती है। वहीं, डब्लूएमओ ने गुरुवार को एक बयान में यह भी कहा कि यह दशक (2011-2020) सबसे गर्म है, लेकिन यह वर्ष भी ला नीना के बावजूद सबसे गर्म रहा। दुनिया के कई हिस्सों में यह पैटर्न अब अपना असर दिखा रहा है।
2016 से सर्दियों पर भविष्यवाणी
मौसम विभाग 2016 से सर्दियों को लेकर भविष्यवाणी कर रहा है। हालांकि यह पहली बार है, जब मौसम एजेंसी ने कड़ाके की सर्दी पड़ने की भविष्यवाणी की है। वहीं, स्काईमेट वेदर के मुख्य मौसम विज्ञानी महेश पलावत ने भी कहा है कि दिल्ली में इस साल नवंबर में करीब एक दशक में सबसे ज्यादा ठंड पड़ी है।
क्या होता है ला नीना प्रभाव
ला नीना प्रशांत महासागर में पानी ठंडा होने से जुड़ी एक प्राकृतिक घटना है। पूर्वी प्रशांत महासागर क्षेत्र के सतह पर निम्न हवा का दबाव होने पर यह स्थिति पैदा होती है। इससे समुद्री सतह का तापमान काफी नीचे चला जाता है, इसका सीधा असर दुनियाभर के तापमान पर होता है और मौसम में फेरबदल होता है।