कोरोना महामारी के बीच ऑक्सीजन की भारी कमी देखी जा रही है। अस्पतालों में मरीज भर्ती हैं जिनकी जान बचाने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है। सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए राज्य सरकारों के साथ मिलकर ऑक्सीजन का इंतजाम किया है। हालांकि यह कोशिश अभी नाकाफी बताई जा रही है। अब भी कई अस्पताल सप्लाई की शिकायत कर रहे हैं। इसी आपाधापी के बीच एक चर्चा यह चल पड़ी है कि प्राणी जगत ही सिर्फ ऑक्सीजन नहीं लेता, बल्कि वाहन भी बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन सोखते हैं। इस रिपोर्ट के माध्यम से हम समझने की कोशिश करते हैं कि हमारी कार आखिर कितना ऑक्सीजन खपत करती है।
अब तक हम यही पढ़ते आए हैं कि कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) गैस पर्यावरण में निकलने से प्रदूषण फैलता है। सीओटू को ही ग्रीनहाउस गैस का सबसे बड़ा जिम्मेदार माना जाता है। लेकिन क्या कभी हमने सोचा है कि ऑक्सीजन भी कमोबेस इसी लाइन में है जो जलने के बाद सीओटू बनाती है। हमें पता है कि जीवाश्म ईंधन के जलने से कई तरह की गैसे पर्यावरण में जाती हैं जिनमें सीओटू मुख्य है। सीओटू को प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह मानी जाती है। लेकिन क्या हमें ये पता है कि ईंधन को जलाने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है।
सीओटू से प्रदूषण
कार्बन और ऑक्सीजन एक साथ मिलकर कार्बन डाईऑक्साइड या कार्बन मोनोऑक्साइड बनाते हैं। इसे समझने के लिए अपनी कार का सिस्टम देख सकते हैं। आप जितना ज्यादा कार चलाते हैं, उतना ज्यादा ईंधन की खपत होती है। लिहाजा उतना ज्यादा ऑक्सीजन की दरकार होती है। तेल में मौजूद कार्बन को जलाने के लिए ऑक्सीजन जिम्मेदार है। अंत में जो हम धुआं देखते हैं वह कार्बन डाईऑक्साइड का स्रोत बनकर बाहर निकलता है। पर्यावरण में इसे बैलेंस करने के लिए पौधे हमारी कारों के कार्बन डाईऑक्साइड को लेते हैं और पुन: वातावरण में ऑक्सीजन छोड़ते हैं। पौधे प्रकाश संश्लेषण के जरिये ये काम करते हैं।
कार को चाहिए 2038 गुना ज्यादा ओटू
एक आंकड़े के मुताबिक, कोई कार गैसोलिन की तुलना में 2038 गुना ज्यादा ऑक्सीजन जलाती है। यानी कि इस स्तर तक उसे ऑक्सीजन की जरूरत होती है ताकि वह सड़क पर चल या दौड़ सके। यह आंकड़ा किसी डेढ़ मीटर तर ऊंची कार के लिए है। कार की लंबाई, चौड़ाई और वजन के मुताबिक ऑक्सीजन खपत का हिसाब लगाया जाता है। हालांकि यह सबकुछ कार के इंजन पर निर्भर करता है क्योंकि इंजन जितना ज्यादा सक्षम होगा, वह उतना ही कम ऑक्सीजन की खपत करेगा।
6 इंसानों के बराबर कार की खपत
एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक कार 55-70 मील की दूरी तय करने में एक घंटे में तकरीबन 2 गैलन तेल खपत करती है। इस दौरान कार जितनी ऑक्सीजन लेती है, उसमें कोई व्यक्ति 6 दिन तक ऑक्सीजन का काम चला लेगा। इसका मतलब हुआ कि सामान्य आदमी जितना ऑक्सीजन कई दिनों में लेता है, कोई कार उसे कुछेक घंटे में पी जाती है। क्या इसका जवाब ये है कि हमें कार से निकली कार्बन डाईऑक्साइड गैस को ठिकाने लगाने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाने चाहिए? सामान्य भाषा में हमें ऐसा लगता होगा लेकिन वैज्ञानिक तौर पर ऐसा नहीं होता।
ज्यादा पेड़ मतलब ज्यादा ओटू नहीं
हमें बिल्कुल नहीं मानना चाहिए कि जितना पेड़ लगाएंगे, उतना कार्बन डाईऑक्साइड सोखने की क्षमता बढ़ेगी। पेड़ों की भी एक क्षमता है कि वे कितना सीओटू सोख पाएंगे। ऐसा नहीं है कि जितना भी सीओटू निकले, उसे पेड़ पूरी तरह से साफ कर देंगे। इसे देखते हुए वैज्ञानिक बस एक ही उपाय बताते हैं कि हमें कम से कम प्रदूषण करना चाहिए। कार्बन क्रेडिट इसका एक बड़ा विकल्प सामने आया है। गाड़ियां कम चलानी चाहिए ताकि धुआं कम से कम निकले। रिपोर्ट में यह भी पता चला है कि कोई चलती कार एक मिनट में जितना ऑक्सीजन फूंकती है, उतना 5 लोग एक दिन में नहीं ले पाते।
ऑक्सीजन में गिरावट
यह स्थिति तब और खतरनाक हो जाती है जब हमें ये पता चलता है कि धरती के आसपास मौजूद पर्यावरण में ऑक्सीजन का स्तर हमेशा एक जैसा नहीं होता। इसमें घट-बढ़ देखी जाती रही है। अभी स्तर में तेजी से गिरावट देखी जा रही है. पहले स्थिति इसेस बिल्कुल भिन्न थी। लगभग 2 अरब साल पहले धरती पर ऑक्सीजन का नामोनिशान नहीं था। परमियन एरा में अचानक तेजी आई और धरती पर ऑक्सीजन का स्तर 39 परसेंट तक पहुंचा। बाद में फिर इसमें कमी देखी गई. अभी इसका स्तर 21 परसेंट तक बताया जाता है। पहले की तुलना में इसे अच्छा नहीं मान सकते क्योंकि इसमें लगातार गिरावट देखी जा रही है।