सृष्टि के रचयिता आदिदेव महादेव के बसाए नगर बनारस में वक्त के साथ भव्य रूप ले रहा श्रीकाशी विश्वनाथ धाम
डा. एल एन पांडेय
वाराणसी। तीन तिरलोक से न्यारी काशी की महिमा अपरम्पार है। पौराणिक मान्यता है कि मां गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के पूर्व से अस्तित्वमान इस नगरी को विश्वनाथ ने अपने त्रिशूल ( विंध्य पर्वत की तीन छोटी पहाडियों केदारेश्वर, विश्वेश्वर, ओंकारेश्वर ) पर टांग कर बसाया है।
श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर देश के बारह ज्योतिर्लिंगों में सबसे दिव्य और प्राचीनतम है। काशी के पुरातन दस्तावेजों का अध्ययन करें तो ज्ञानवापी मस्जिद ही दरअसल असली काशी विश्वनाथ मंदिर है, जिसके निर्माण काल का कहीं उल्लेख नहीं मिलता। इतिहास इतना भर बताता है कि दो हजार साल पहले सम्राट चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था।
आजादी के बाद की तमाम सरकारों ने तुष्टीकरण और छद्म धर्म निरपेक्षता का चोला ओढ़ कर इस मुद्दे को दबा कर रखने में ही अपना हित समझा।
विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने इस मंदिर पर बार बार हमला करते हुए इसको नष्ट किया। अकबर के शासनकाल मे उनके नवरत्नों में एक राजा टोडरमल ने विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण किया था।
लेकिन अकबर के ही वंशज क्रूर और कट्टर शासक औरंगजेब ने देश में तमाम हिन्दू मंदिरों को तोड़ने की कडी में काशी का प्रभुख धार्मिक शिक्षण केंद्र बन चुके विश्वनाथ के इस भव्य मंदिर के आधे हिस्से को ढहा कर मस्जिद की शक्ल दे दी। । इस मुस्लिम आक्रांता ने जमकर पुजारियों, सनातनधर्मियों की हत्या ही नहीं की बल्कि उनकी सम्पत्तियां भी लूट ली। लेकिन मंदिर के पिछले हिस्से को छुपाया नहीं जा सका। बल्कि मंदिर के ध्वंसावशेष पर ही मस्जिद तीमार कर दी गई। जो आज भी वहां मौजूद है।
इसको लेकर सनातनी पक्ष आर्से से इस विवाद को न्यायालय में लड़ भी रहा है। मुस्लिम पक्ष इस पर आपत्ति जताता रहा है।
इधर मंदिर तोड़े जाने के बाद इन्दौर की महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने वर्तमान श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण किया।
इसके पूर्व लंबे संघर्ष के बाद परम पूज्य आदि शंकराचार्य की पहल पर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर की पूजा हजारों साल से सनातन धर्मी समाज करता चला आ रहा था।
काशी विश्वनाथ मंदिर का सनातन धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने मात्र से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य के अलावा सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं। यहीं पर सन्त एकनाथजीने वारकरी सम्प्रदाय के महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत की रचना की थी।
काशीनरेश तथा विद्वतजनो ने तब इस ग्रन्थ को हाथी पर रख कर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली थी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।
वक्त के साथ मंदिर के आसपास भारी आबादी बस गई, जिससे यहां आने जाने का मार्ग काफी संकरा हो गया। मार्ग सुगम न होने से देश विदेश से आने वाले शिव भक्तों को भारी कठिनाई हो रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब यहां के सांसद चुने गए तो यहां का नजारा तेजी से बदलने लगा। तमाम कठिनाइयों को देखते हुए मां वैष्णो देवी के तर्ज पर काशी विश्वनाथ धाम बनाने का फैसला हुआ । वाराणसी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर अब इसे मूर्त रूप ही नहीं दिया जा रहा बल्कि 70 फीसदी से ज्यादा काम हो भी चुका है। काशी में यह ऐतिहासिक कार्य 24 घण्टे तीव्र गति से चल रहा है। आसपास के सभी भवनों को सरकार ने सर्किल रेट से चार गुना ज्यादा मुआवजा देकर खरीद लिया और नियमानुसार एक बोर्ड बनाकर काशी विश्वनाथ धाम को कानूनी दायरे में ला दिया है। यह मंदिर विश्व का अनोखा और गंगा के तट पर शान से विद्यमान है। गंगा घाट से मंदिर तक आने जाने के लिए सुगम रास्ता और श्रद्धालुओं के लिए संसाधन उपलब्ध कराने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ की सरकार दिन रात काम कर रही है।
आने वाले वक्त में यह मंदिर विश्व का अनोखा और सबसे शानदार धार्मिक पर्यटन केंद्र बनने जा रहा है। देश की सांस्कृतिक-धार्मिक राजधानी काशी को जब चार चांद लग रहे तो काशी के पर्यटन व्यवसाय को भी पंख लगने वाले हैं।