के.एन. गोविन्दाचार्य
हमारे अभिभावक आदरणीय यशवंत राव केलकर जी “नानी तीन बार हँसी” आख्यान सुनाते थे| बात गहरी थी| उस कथा का अर्थ समझने मे जिन्दगी निकल जाय ऐसी भी स्थिति बनती है|
एक नानी थी| वह साइकिल रिक्शे से अपनी दो नतनियों के आग्रह पर सिनेमा देखने गई| सिनेमा मे हँसी का एक प्रसंग आया| पूरे हॉल मे ठहाका गूंज उठा| नतनियाँ भी जोर से हंस पड़ी| नानी को विनोद समझने मे तो नहीं आया| चूँकि पूरा हॉल हँस रहा था नानी भी हँस पड़ी| पर बात उसे समझ में नही आई थी| जानने की उत्सुकता बनी रही| सिनेमा ख़तम हुआ| तीनों जन रिक्शे से लौट रही थीं| नानी ने नतनियों से वह प्रसंग दोहराने को कहा| सुनाते समय नतिनी की हंसी रुकी नहीं| नानी को फिर समझ मे नही आई बात| फिर भी नतनियों के आगे नासमझ न लगे इस लिये वह भी हँस पड़ी| परन्तु दिल में बात अटकी रही| वह प्रसंग और उसे ठीक से समझ लेने की इच्छा बनी रही| तीनों घर लौट आई| खाना खाकर एक कमरे मे सो रही थीं तभी रात 2 बजे अचानक नानी अकेले ही जोर-जोर से हँसने लगी| नतिनी लोगों की भी नींद खुल गई| उन्होने नानी से हँसने का कारण पूछा नानी कारण बताते हुए फिर जोर से हँस पड़ी| अब समाधानित होकर तीनों नींद में डूब गई|
यशवंत राव यह प्रसंग सुनाते हुए कहते थे! नानी तो तीन बार के प्रयास में प्रसंग समझ कर हँस तो पड़ी पर हम कई बार बिना समझे हंस लेते है बात समझ मे नही आई रहती है| भला ऐसे स्वयं के द्वारा आरोपित अज्ञान से किसका क्या सधेगा?
ऐसी हँसी से एक साक्षात्कार हुआ| विद्यार्थी परिषद् मे कार्य करते हुए एक अनुभव आया| कार्यकर्ता रमेश हिमाचल का था| परिवार मे फौजियों की परंपरा थी। | अनेक पुरस्कार जीतने वालों का खानदान था| काम करते हुए सात-आठ वर्षों में उस कार्यकर्ता के बारे मे दो प्रश्न उठते रहे पर उत्तर मिला नहीं|
रमेश को किडनी का कष्ट हुआ| ऐसी स्थिति बनी कि ट्रेन मे 24 घंटे की यात्रा मुंबई तक करना था| मुंबई मे अस्पताल मे भर्ती होना था| अकेले यात्रा वह कर नहीं सकता था| इसलिये सामान्य स्लीपर मे अ.भा. संगठन मंत्री ने यात्रा मे उसका साथ दिया| शेष सह यात्री तकलीफ न पावे इसकी चिन्ता थी|
बीमार कार्यकर्ता को बार बार दस्त हो रही थी| परिचारक साथी बर्थ के नीचे जमीन पर बैठकर मरीज की सेवा कर रहे थे| जमीन की सफाई, पोंछा पूरी रात करते रहे| अगले दिन मुंबई सुबह मे पहुँच गये| उसे अस्पताल मे दाखिल कर दिया गया| रमेश का इलाज चलने लगा|
कुछ दिनों बाद अ.भा. टीम की बैठक मुंबई मे आयोजित थी| रमेश ने स्थानिक कार्यकर्ताओं से कहा – गोविन्दजी आयेंगे ही उन्हे मुझसे मिलने को कहियेगा| बहुत जरुरी बात उनसे करनी है| मुंबई में पहुंच कर स्वाभाविक था कि अस्पताल जाकर रमेश जी से मिलता| अस्पताल मे रमेश जी बहुत अस्वस्थ थे| फिर भी बात करने के आग्रही थे|
उन्होने कहा गोविन्दजी ! अब मुझे शब्दों का अर्थ समझ मे आया है इसीलिये आपसे बात करने के लिये आपको बुलाया है । मुझे अब उस ट्रेन यात्रा के बाद कुछ शब्दों का अर्थ समझ मे आया है| हम सुनते थे कि “ALL FOR ONE AND ONE FOR ALL” पर अर्थ नही समझता था| आप लोग कहते थे जो जैसा है वैसा ही स्वीकार करो अपने अनुरूप ढालो, आपलोग कहते थे कि अभिभावक को लॉकर जैसा होना चाहिये| जो उस लॉकर मे जमा कुछ करेगा, वही उस लॉकर मे अपनी इच्छा से निकालने का हकदार है| जिस बैंक मे जमा किया है उसका मैनेजर चाहे तब भी लॉकर खोलने का मैनेजर हकदार नहीं है|
मदन जी के साथ मेरे फ्रंटियर मेल से मुंबई की यात्रा ने मुझे इन शब्दों का अर्थ समझाया है| मुझे मालूम था कि आपके दिमाग मे मेरे बारे में दो सवाल रहते थे| एक सवाल था कि मै कार्यक्षेत्र से 15-20 दिन बीच-बीच मे गायब हो जाता हूँ बिना किसी को बताये| पूछने पर भी कारण मै नही बताता था| टाल जाता था| दूसरा सवाल था कि हिन्दी, अंग्रेजी मे जनसभा मे प्रभावी भाषण तो कर लेता हूँ पर प्रस्ताव बनाने की बैठक मे सदस्य होने पर भी बैठकों से गायब हो जाता हूँ| आज दोनों सवालों का उत्तर देने मैने आपको बुलाया है|
आपको मालूम है कि हमारा खानदान फौजियों का है और यशस्वी रहा है| फ़ौज मे अपवाद रूप आंतरिक गुटबाजी के कारण मेरे अत्यंत निकट संबंधी पर खुफियागिरी का आरोप लग गया| इन-कैमरा ट्रायल हो रहा था| बचाव के लिये सबूत, गवाही जुटाने के लिये दौड़-धूप करनी थी। उसके लिये मेरे सिवा कोई नही था| इन कैमरा ट्रायल की चर्चा बाहर गई होती तो मेरे खानदान की प्रतिष्ठा पर आंच आती इसलिये मै बिना बताये भाग जाया करता था| मुझे आप लोगों को उस समस्या मे साथ लेने की हिम्मत नही होती थी| समस्या दो माह पूर्व समाप्त हुई| इज्जत के साथ मेरे संबंधी छूट गये हैं|
उसी प्रकार मैं बैठकों से गायब हो जाता था क्योंकि मेरी पढाई जहाँ हुई थी वहां मै उर्दू और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ा हूँ| हिंदी मैं स्कूल कॉलेज में पढ़ा ही नहीं हूँ| समझना बोलना भाषण करना तो हिन्दी मे आता है पर हिंदी लेखन मे मै बहुत कच्चा हूँ| मै सोचता था मेरे अज्ञान के बारे में बताउंगा तो आप लोग क्या सोचेंगे, इसलिये गायब रहता था|
उस ट्रेन यात्रा ने मुझे जो जैसा है वैसा ही स्वीकार का अर्थ समझा दिया है कि अज्ञान अपराध नही है| उस यात्रा ने #ALL FOR ONE AND ONE FOR ALL भी समझा दिया है| उस यात्रा ने मुझे नानी की तरह तीसरी बार मे हँसना सिखा दिया है| अस्तु !