नई दिल्ली ( एजेंसी )। कोरोना का टीका लगने के बाद भी मास्क का इस्तेमाल जारी रखना पड़ेगा। पिछले कुछ समय से डाक्टर यह बात लोगों को समझाते रहे हैं। इसी बीच हरियाणा के मंत्री अनिल विज को तीसरे चरण के ट्रायल में टीके की पहली डोज लगने के बावजूद रिपोर्ट पाजिटिव होने की सूचना के बाद वैक्सीन की विश्वसनीयता पर नए सिरे से चर्चाएं शुरू हो गई है।
आइए जानते हैं इस बारे में क्या कहते है विशेषज्ञ…
टीका लगने के तुरंत बाद बचाव संभव नहीं
ट्रायल में शामिल विशेषज्ञ व अन्य डॉक्टरों का कहना है कि कोई यह समझता है कि टीका लगने के तुरंत बाद कोरोना के संक्रमण से बचाव हो सकेगा तो ऐसा बिल्कुल नहीं है। टीके की पहली डोज लगने के दो माह तक संक्रमण का जोखिम बना रहेगा। बूस्टर डोज लगने के 28 दिन बाद और कुल मिलाकर दो माह में इम्युनिटी विकसित होगी।
बचाव के नियमों का करते रहना होगा पालन
विशेषज्ञों का मानना है कि कोई भी वैक्सीन किसी बीमारी के खिलाफ 100 फीसद सुरक्षा नहीं दे सकती है।शनिवार को एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्रा ने कोरोना के स्वदेशी टीके के तीसरे चरण के ट्रायल में स्वेच्छा से पहली डोज लेने के बाद कहा कि टीका उपलब्ध होने के बाद भी लोगों को बचाव के नियमों का पालन करते रहना होगा।
कोई वैक्सीन नहीं दे सकती 100 फीसद सुरक्षा
सर गंगाराम अस्पताल के मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर एसपी ब्योत्रा (SP Byotra) ने कहा कि लोगों में आम धारणा है कि एक बार जब किसी व्यक्ति को टीका लगाया जाता है तो वह किसी भी संक्रमण से प्रतिरक्षित हो जाता है लेकिन यह एक तरह का एंटीजन होता है जो एक निर्धारित समय के भीतर एंटीबॉडी पैदा करता है। ऐसे में किसी को टीका लगने के बाद भी संक्रमण हो जाता है तो इसे वैक्सीन की विफलता नहीं माना जाना चाहिए।
टीका लगने के दो माह बाद ही बचाव संभव
एम्स में टीका ट्रायल के मुख्य इन्वेस्टिगेटर डॉ. संजय राय का कहना है कि कोरोना वैक्सीन की दूसरी डोज 28 दिन बाद दी जाती है। इसलिए पहली डोज लेने के करीब दो माह बाद ही व्यक्ति इस स्थिति में पहुंचता है जब संक्रमण से बचाव हो सकता है। इस अवधि के दौरान बचाव के उपायों पर ही भरोसा करना होगा।
पहली के बाद दूसरी डोज इसलिए जरूरी
विशेषज्ञों का कहना है कि अधिकांश वैक्सीन के दो डोज दिए जाते हैं। पहली डोज इंसान के शरीर में एंटीबॉडी के उत्पादन को उत्तेजित करने का काम करती है जबकि दूसरी डोज शरीर में एंटीबॉडी के उच्च स्तर को बनाए रखती है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में जेरियाट्रिक मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रसून चटर्जी ने कहा कि वैक्सीन की एक डोज संक्रमण से आंशिक सुरक्षा प्रदान करती है। बेहतर सुरक्षा के लिए बुस्टर डोज लेनी जरूरी है।
कोवैक्सीन का चल रहा है ट्रायल
वहीं डॉ. एमसी मिश्रा ने कहा कि मैंने वॉलेंटियर के तौर पर एम्स में टीका लगवाया है। डॉक्टरों ने उनसे पहले सहमति पत्र पर हस्ताक्षर कराया। इसके बाद ब्लड प्रेशर जांच की और आरटीपीसीआर जांच के लिए सैंपल भी लिए। इसके बाद एक इंजेक्शन दिया। यह भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के सहयोग से भारत बायोटेक द्वारा विकसित टीके (कोवैक्सीन) के ट्रायल का हिस्सा है।
किया जा रहा डबल ब्लाइंड रैंडमाइज ट्रायल
डॉ. मिश्रा ने कहा कि इंजेक्शन में उन्हें टीके की डोज दी गई या प्लेसिबो, यह नहीं मालूम, क्योंकि यह डबल ब्लाइंड रैंडमाइज ट्रायल है। 50 फीसद वालेंटियर को वास्तविक टीका लगता है और 50 फीसद को प्लेसिबो की डोज दी जाती है। ट्रायल करने वाले डाक्टरों को भी नहीं मालूम होता कि किसे टीका दे रहे हैं और किसे प्लेसिबो। उन्हें दूसरी डोज 28 दिन बाद दो जनवरी को लगेगी। इसके बाद ही पता चल सकेगा कि उन्हें वास्तविक टीका दिया गया था या नहीं।
अनिल विज को दूसरी डोज दी ही नहीं गई
हरियाणा सरकार के मंत्री अनिल विज को कोरोना होने के मामले पर डॉ. एमसी मिश्रा ने कहा कि उन्हें टीके की दूसरी डोज नहीं दी गई है। पहली डोज भी टीका था या नहीं यह बता पाना मुश्किल है, लेकिन पहला टीका लगने के 28 दिन बाद बूस्टर डोज लगने के बाद ही प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो पाती है। तीसरे फेज का ट्रायल पूरा होने पर पता चलेगा कि टीका संक्रमण से बचाव में कितना सक्षम है।