डॉक्टर रजनीकांत दत्ता, पूर्व विधायक,शहर दक्षिणी वाराणसी ( यूपी )

Covid19 महामारी चीन द्वारा भारत पर किया गया बायोलॉजिकल अटैक है। जिसकी रणनीति कुछ ऐसी है कि, बजाय काउंटर अटैक करने के हम उसके विरुद्ध डिफेंसिव होने को बाध्य हैं और डैमेज कंट्रोल हमारी मजबूरी है। इसके प्रतिकूल बहुआयामी प्रभावों का सामना जनता के सहयोग से नेशनलिस्ट राजनीतिक दल ही कर सकते हैं।

ऐसा करने में राष्ट्रीय ताकतों को अपनों में ही छिपे हुए गद्दारों को चिह्नित ही नहीं कठोर से कठोरतम दंड देना होगा, ताकि वह एक ऐसी नज़ीर बन जाए कि कोई भी राजनीतिक दल या समूह या व्यक्ति ऐसा करने की सपने में भी हिम्मत न कर सके।

• LOC पर पाकिस्तान की आतंकवादी गतिविधियों और पूर्व की भांति भारत पर UNPROVOKED अटैक को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता।

LAC पर चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ सामरिक तैयारी जरूरी है, क्योंकि विश्वासघात होने की पूरी आशंका है।यानी कि अगर भविष्य में कभी युद्ध होगा, तो हमे उसे 2 मोर्चो पर लड़ना होगा – पाकिस्तान और चीन के खिलाफ।

इन तीनों आपदाओं से निबटने के लिए भारतीय आर्मी, एयरफोर्स और नेवी को आधुनिक और सक्षम बनाने के लिए भारत सरकार करोड़ों रुपया रोज़ खर्च कर रही है, जिसका पूरा प्रभाव हमारे आर्थिक ढांचे और सामाजिक सुविधाओं पर पड़ रहा है।
ऐसी ही स्थिति उस समय भी आयी थी, जब नेता जी सुभाष चंद्र बोस ने कहा था कि, ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा’ और स्वर्गीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने ‘जय जवान, जय किसान’ का नारा देते हुए हफ्ते में एक दिन उपवास करने के लिए हम भारतवासियों से कहा था। यानी कि, देशहित में हमने बड़े से बड़ा बलिदान दिया है, क्योंकि जननी जन्म भूमि से बढ़ कर दूसरा कुछ भी नहीं है, जिससे हमारी अस्मिता और भविष्य प्रभावित होते हैं।

भारत एक ethinic कंट्री है। यानी की डेमोग्राफी विभिन्न कौमों और सम्प्रदायों की है। जिनकी आस्था के केंद्र, धर्मग्रंथ, उनके दिशानिर्देश, कर्मकांड, रीति-रिवाज, रहन-सहन चाल-चलन एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न हैं। यानी कि, प्रजातंत्र जिसमें सत्ता के हस्तांतरण का निर्णय निर्वाचन में डाले गये वोटों के बहुमत के आधार पर होता है। यह भारतवर्ष के लिए अव्याहवारिक ही नहीं विनाशकारी भी है। और फिर भारत का बहुदलीय संसदीय प्रजातंत्र जिसका आधार अखिल भारतीय पार्टियों के साथ-साथ छोटी-छोटी पार्टियां भी हैं, जो क्षेत्रीयता, जातीयता, बाहुबल, धनबल, तुष्टीकरण आदि समीकरणों तक ही सीमित हैं।

ऐसे राजनीतिक दल अपने निहित स्वार्थों के सिवा, हमारे बारे में और देश के बारे में क्या सोचेंगे? अगर इतने वर्षों की ग़ुलामी के बाद भी हमने शिक्षा नहीं ली, तो क्या इसे हम उसी ग़ुलामी की ओर पुनर्वापसी का निमंत्रण समझें?

भाई नरेंद्र मोदी सबका विकास तो संभव है, लेकिन सबका साथ और विश्वास की कल्पना स्वयं को तो धोखा देना है ही है, देश के भविष्य के खिलवाड़ भी है।

कहते हैं कि, IDENTITY से बड़ा FATHE होता है, तो आप किसपर विश्वास करिएगा और किसका साथ दीजिएगा? जो गज़वा-ए-हिन्द की बात करते हैं और हुमा की? या काफिरों को तलवार के बल पर शलवार पहनने वाले बुतशिकनों या अंतोनियो मायनो सोनिया गांधी जैसी ITALIAN का, राउल विंसी का, मणिशंकर अय्यर का, शशि थरूर का, दिग्विजय सिंह का, खुर्शीद अहमद का, महबूबा मुफ़्ती का, फारूक अब्दुल्ला का, ममता बनर्जी का या लालू यादव जैसे चारा घोटाला करने वालों का?

भाई नरेंद्र मोदी, इस समय SHINING INDIA से ज़्यादा जरूरी SURVIVING INDIA है। और SECULAR INDIA से ज़्यादा जरूरी SECURED INDIA है। और सब्सिडी देने, कर्ज़ माफी करने, साइकिल और लैपटॉप बांटने से कहीं अच्छा है कि, नौजवानों को अपने पैर पर खड़ा होने और खून पसीने की कमाई करने का अवसर दिया जाए। भारतीय संस्कार और संस्कृति की रक्षा करने की भी ज़रूरत है।

अब लार्ड मैकाले की जगह हमें चाणक्य की नीतियां चाहिए। गीता और कुरान मजीद में भी लिखा है,
‘या मेरे बंदों मैंने तुम्हें दुनिया की,
हर नियामतें दी हैं, अगर तुम उनका गलत इस्तेमाल करोगे, तो मैं तुम्हें सही रास्ते पर लाने के लिए अपना ऐसा बन्दा भेजूंगा जो तुम्हें अंधेरे से रोशनी की तरफ और बुराई से अच्छाई की तरह ला सके।’ हमें वह बन्दा आप ही लगते हैं। समय की कसौटी आपको परखेगी कि, हमने सही सोचा है या गलत।

मां तुझे सलाम।
जय हिंद।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

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