समाजवादी पार्टी की भविष्य की चुनावी रणनीति के लिए जातीय समीकरण बेहद अहम रहेंगे। विरोधी दलों की सामाजिक ध्रुवीकरण की राजनीति को देखते हुए सपा इस दिशा में तेजी से काम कर रही है। जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने के साथ ही समाजवादी पार्टी ने अब जिताऊ प्रत्याशियों की तलाश शुरू कर दी है। अपनी पार्टी में यह अभियान तो पहले से चल रहा है, लेकिन दूसरे दलों पर भी उसने निगाह लगा दी है। बसपा से इसका आगाज हो चुका है। सपा सत्तारुढ़ भाजपा के उन विधायकों को भी साइकिल की सवारी कराने की तैयारी में हैं, जिनके अगले विधानसभा में टिकट कटने तय से माने जा रहे हैं।

मिशन वर्ष 2022 की कामयाबी के लिए सपा इस बार बड़ी संख्या में दलबदलुओं को मैदान में उतारने की तैयारी कर रही है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा ने गठबंधन के चलते कांग्रेस के लिए 111 सीटें छोड़ दी थीं। अब ऐसी स्थिति नहीं है। ऐसे में अब उसके पास अपने लोगों के अलावा बाहर से आए लोगों को टिकट देने के लिए ज्यादा विकल्प होंगे।

यह जगजाहिर है कि भाजपा के रणनीतिकार अपनी सरकार वाले राज्यों में बड़ी संख्या में सीटिंग विधायकों के टिकट काट देते हैं ताकि सत्ताविरोधी रुझान के खतरे को न्यूनतम या नगण्य किया जा सके। अमुमन 20 प्रतिशत तक टिकट कट जाते हैं। यूपी भाजपा खराब परफार्मेंस वालों का टिकट काटने की तैयारी में है। बताया जा रहा है कि कुछ विधायकों को तो खतरे का अहसास होने लगा है। ऐसे में सपा उनसे तार जोड़ने में लगी है ताकि सही वक्त पर उन्हें लाया जा सके। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तो खुल कर कह चुके हैं कि दूसरे दलों के तमाम विधायक उनकी पार्टी में आना चाहते हैं। एक तरह से उन्होंने बागियों व असंतुष्टों को संकेत दे दिया है। हालांकि भाजपा भी पलटवार कर सपा के बागियों को टिकट दे सकती है।

वैसे तो पिछले काफी समय से अलग-अलग मौकों पर बसपा के छोटे बड़े नेता दलबदल कर सपा में शामिल हो चुके हैं। बसपा के बागी विधायक भी सपा के सम्पर्क में हैं। अब दलबदल का यह खेल जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव बाद और जोर पकड़ेगा।

सपा सीटिंग सीटें छोड़कर बाकी 357 सीटों पर टिकट के लिए आवेदन मांगे हैं। सूत्र बताते हैं कि एक सीट पर औैसतन 11 से ज्यादा आवेदन आए हैं। टिकट के लिए सपा मुख्यालय में इन दिनों मजमा लगने लगा है।

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