वाराणसी। कोरोना संक्रमण ने बाजार के रंग को एक बार फिर बेरंग कर दिया है। हर साल की तरह इस साल भी व्यापारियों ने होली के रंगों को और चटख करने की तैयारी की थी, लेकिन खरीदारों की कमी की वजह से वाराणसी के बाजारों में रौनक विशेष नहीं है। इस होली नई बात ये भी है कि भारतीय रंग-गुलाल और पिचकारी के सामने चीन के रंगों का हाल फीका है।

पूरी दुनिया में फिलहाल दहशत का पर्याय बन चुका कोरोना वायरस का असर होली त्यौहार के बाजार में नजर आ रहा है। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में चाइना को लेकर फैली दहशत के चलते इस बार बाजार में होली के त्यौहार में छाए रहने वाले चाइना आइटम गायब हैं। होली के अवसर पर चाइना पिचकारी, रंग गुलाल से लेकर मास्क और अन्य फैंसी सामान की जगह देशी सामान नजर आ रहे हैं।

दुकानों पर 99 फीसदी देसी पिचकारी

वाराणसी में गत वर्ष 70 फीसद से अधिक चीन की पिचकारी का कब्जा था, लेकिन इस बार 99 फीसद सिर्फ भारतीय पिचकारी ही है। चीन की जो पिचकारी 400 रुपये में बिकती थी वही हूबहू भारतीय पिचकारी मात्र 250 रुपये में बिक रही है। इस साल बच्चों को लुभावने वाली नई तरह की पिचकारी आई है। छोटा भीम, पेंसिल, कार, भूत वाली पिचकारी बच्चे पसंद कर रहे हैं। रंग के मामले में भी हर्बल गुलाल व रंग बाजार में हैं। कई दुकानदार तो पिछले होली के स्टॉक की ही इस साल भी बिक्री कर रहे है।

कलर फॉग की सबसे अधिक मांग

इस बार बाजार में पटाखे की तरह कलर फॉग आया है। इसे जलाने पर उसमें से लाल, गुलाब, पीला, हरा सहित पांच रंग का धुंआ निकलता है। होलसेल में एक डिब्बे की कीमत 90 रुपये व एक का भाव 18 रुपये है। इसे बच्चे पसंद कर रहे हैं।

काशी में पिचकारी का कारोबार

काशी में हड़हा सराय एवं बेनियाबाग की होल सेल दुकानों से पूर्वांचल के साथ ही बिहार के भी कुछ हिस्सों में पिचकारी की आपूर्ति की जाती है। यहां दर्जनों थोक दुकानें हैं। होली के समय करीब पांच करोड़ की पिचकारी बिक जाती है। हालांकि इस साल कोरोना का इस पर भी कुछ असर है। पूरे पूर्वांचल की गुलाल की मंडी भी वाराणसी में ही है। बताया जा रहा है कि पिछले साल 60 लाख रुपये तक गुलाल व रंग का कारोबार हुआ था। वहीं कोरोना के भय से इस वर्ष कारोबार प्रभावित हुआ है। इस बार हर्बल गुलाल की मांग बढ़ी है।

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