नई दिल्ली। ‘दिल नाउम्मीद तो नहीं, नाकाम ही तो है। लंबी है गम की शाम, मगर शाम ही तो है।’राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने बेहद भावुक अंदाज में अपना विदाई भाषण देते हुए यह शेर पढ़ा। यह शेर उन्होंने जम्मू-कश्मीर में बदले हुए हालात के बारे में पढ़ा था, पर यह उनके राजनीतिक सफर पर भी सटीक बैठता है। क्योंकि राज्यसभा में वापसी के लिए उनकी शाम लंबी हो सकती है। पार्टी के पास उन्हें राज्यसभा भेजने के लिए कोई सीट नहीं है। लेकिन कल की राज्यसभा में पीएम मोदी की गुलम नबी आजाद को लेकर की गई आंसुओ से लबरेज स्पीच बहुत कुछ कह गई। मोदी जी का यह कहना कि हम आपको खाली नही बैठने देंगे और आपकी सेवाएं लेते रहेगें। आपके लिए मेरे दरवाजे हमेशा खुले है। यह बताता है कि आजाद कश्मीर के लिए मुफीद हो सकता हैं।

वैसे गुलाम नबी आजाद कांग्रेस के उन गिने चुने पार्टी नेताओं में है, जिन्हें गांधी परिवार की तीन पीढ़ियों के साथ काम करने का अनुभव है। आजाद लगभग सभी प्रदेशों और केंद्र शासित राज्यों के प्रभारी रहे हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल के निधन के बाद कांग्रेस में वह इकलौते ऐसे नेता हैं, जिनके कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर राजनीतिक दल में उनके मित्र हैं। ऐसे में पार्टी उन्हें संगठन में जिम्मेदारी सौंपकर उनके अनुभवों का लाभ ले सकती है।

कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि वह चाहकर भी गुलाम नबी आजाद को जल्द राज्यसभा नहीं भेज सकती। यूं तो गुजरात में एक मार्च को राज्यसभा की दो सीट के लिए चुनाव है, पर अलग-अलग चुनाव होने की वजह से दोनों सीट पर भाजपा की जीत तय है। केरल में अप्रैल में राज्यसभा के चुनाव हैं। पर केरल कांग्रेस किसी बाहरी व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बनाती है। इसके साथ विधानसभा के भी चुनाव होने हैं, ऐसे में उम्मीद कम है। मगर कौन जानता है कि आजाद गुजरात से भाजपा के उम्मीदवार हो सकते है। कल एनडीए सरकार में मंत्री राम दास आठवले ने गुलाम नबी आजाद को ‘उधर से इधर’ आने का निमंत्रण राज्य सभा मे दे भी दिया था । हालाकि यह फिलहाल दूर की कौड़ी है मगर असंभव भी नहीं कि आजाद को कश्मीर की कमान मोदी जी सौंप सकते हैं।

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