कोरोना वायरस के संक्रमण से हॉस्पिटल्स में मरते लोग, डेडबॉडी से भरे श्मशानघाट, एंटी वायरल ड्रग रेमडेसिविर के लिए संघर्ष करते लोग, वैक्सीन के लिए भटकता देश अब टूट चुका है। उसे कोरोना से निपटने का केवल एक उपाय ही नजर आ रहा है पूर्ण लॉकडाउन। आपको याद होगा कि अभी 3 हफ्ते पहले तक जिस देश की जनता पिछले साल सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन को सबसे बड़ा मूर्खतापूर्ण फैसला मानती थी, अब उसे लगता है कोरोना से निपटने का लॉकडाउन को छोड़कर अन्य कोई उपाय नहीं है। ऑनलाइन सर्वे कराए जा रहे हैं जिसमें ज्यादातर लोगों का मानना है कि देश में फिर से लॉकडाउन लगाया जाना चाहिए।
आम आदमी ही नहीं व्यापारियों के संगठन जिन्हें शायद लॉकडाउन से सबसे अधिक नुकसान हुआ था, अब सबसे पहले वह लोग ही यह डिमांड कर रहे हैं। लाभ हानि से ऊपर उठकर व्यापारी वर्ग सबसे पहले यह बोलने को तैयार हुआ है कि जान है तो जहान है। इसलिए जल्दी से पूर्ण लॉकडाउन का फैसला करो। पर केंद्र या राज्य सरकारें जिसमें बीजेपी, आम आदमी पार्टी , कांग्रेस सभी की सरकारें शामिल हैं कोई भी पूर्ण लॉकडाउन का फैसला नहीं कर पा रही हैं। मुंबई से दिल्ली तक, पंजाब से राजस्थान तक किसी भी सरकार की हिम्मत नहीं हो रही है कि वो पूर्ण लॉकडाउन का फैसला करे।
व्यापारियों की मांग हो पूर्ण लॉकडाउन
नई दिल्ली में व्यापारियों के संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने कोरोना वायरस से मुकाबले के लिए दिल्ली सरकार से कम से कम 10 दिन का पूर्ण लॉकडाउन लगाने की मांग की है। हालांकि दिल्ली में कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राजधानी दिल्ली में वीकेंड लॉकडाउन और कुछ अन्य तरह के प्रतिबंधों की घोषणा पहले ही कर दी है। इसी तरह यूपी की राजधानी लखनऊ में कोरोना के बढ़ते संक्रमण को देखते हुए, यहां व्यापारियों ने खुद कई बाजारों को बंद रखने का फैसला किया है। सामान की किल्लत न हो, लोगों को नुकसान न हो और छोटे लोगों की रोजी-रोजगार पर असर न हो, इसलिए बाजार अलग-अलग दिन बंद रखा जाएगा। लखनऊ के पांडेयगंज, नाका हिंडोला, चौक सर्राफा बाजार समेत कई जगह व्यापारियों ने गुरुवार से शनिवार तक स्वैच्छिक बंदी का फैसला किया है। ये कहानी सिर्फ दिल्ली या लखनऊ की नहीं है। देश के दूसरे हिस्सों से भी इस तरह की मांग उठ रही हैं। लेकिन सवाल यह है कि जब लोग खुद डिमांड करने लगे हैं कि लॉकडाउन किया जाए तो सरकारें क्यों इंट्रेस्ट नहीं ले रही है।
हर्ड इम्यूनिटी डिवेलप होने की संभावना
लॉकडाउन तभी तक कारगर होता है जब तक लोग घरों में कैद रहते हैं। पर सवाल यह उठता है कि कब तक लोग घरों में कैद रहेंगे? कभी तो घर से बाहर निकलेंगे। ज्यों निकलेंगे फिर से कोरोना वायरस का खतरा पैदा हो जाएगा। हर्ड इम्युनिटी के समर्थक कहते हैं कि कोरोना वायरस से छुपने की नहीं बल्कि मुकाबले की जरूरत है। जितने ज्यादे लोग इससे संक्रमित होंगे मनुष्य का शरीर उससे लड़ने की क्षमता उतनी ही जल्दी विकसित कर पाएगा।
हर्ड इम्युनिटी की चर्चा करते हुए स्वीडन का जिक्र जरूरी है। हालांकि स्वीडन एक छोटा और सुविधा संपन्न देश है उससे भारत की तुलना ठीक नहीं है। पर स्वीडन के उदाहरण को देखकर एक उम्मीद तो बंधती ही है। स्वीडन ने कोविड-19 के शुरूआत में ही अपने यहां कॉलेज और हाई स्कूल बंद कर दिए, लेकिन 9वीं कक्षा तक के स्कूल को खुला रखा। इतना ही नहीं, यहां रेस्त्रां, स्टोर, पब, बार और अन्य कारोबार कभी बंद नहीं किए गए।
हालांकि सोशल डिस्टेंसिंग गाइडलाइंस का कड़ाई से पालन किया गया। लोगों को घरों से काम करने के लिए प्रोत्साहित किया और गैर-जरूरी यात्रा करने से बचने की सलाह दी गई। पाबंदी के नाम पर 70 साल से ऊपर के बुजुर्गों को घर से निकलने पर रोक और 50 से ज्यादा लोगों के एक साथ इकट्ठा होने से रोक को कड़ाई से लागू किया गया। स्वीडन की यह स्ट्रैटिजी काम कर गई। वहां संक्रमण फैलने की दर घटने लगी। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह रहा कि स्वीडन में कोविड-19 मरीजों की मृत्यु दर 12% से ज्यादा रही।
कोरोना का यह अंतिम वेव नहीं है
कोरोना का यह अंतिम वेव नहीं है। भारत अभी दूसरे वेव का सामना कर रहा है। कोरोना के हर रोज नए स्ट्रेन मिल रहे हैं, जिन्हें डॉक्टरों के लिए समझना मुश्किल हो रहा है। हर नया स्ट्रेन अपने पहले वाले भाई से कई गुना ताकतवार हो कर आ रहा है। ये भी अभी तय नहीं हो सका है कि जो वैक्सीन हम ले रहे हैं क्या कोरोना के दूसरे स्ट्रेन के सामने वो टिक सकेंगे. कोरोना के बदलते रूप से लड़ने के लिए अभी विश्व तैयार नहीं दिख रहा है। अमेरिका और यूरोप भी अभी समझ नहीं सका है कि कोरोना से स्थाई रूप से कैसे निपटा जाए। इसलिए लॉकडाउन कोरोना से लड़ने का सबसे कमजोर हथियार है। शायद इस बार सभी सरकारों को ऐसा ही लग रहा है। इसलिए कोई भी राज्य या केंद्र लॉकडाउन की तैयारी में नहीं दिख रहा है।
महान देशों से सीख लेने की जरूरत
पिछले साल जब कोरोना अपने चरम पर था तब भी ब्रिटेन और अमेरिका जैसे महान देशों ने अपने यहां पूर्ण लॉकडाउन कभी नहीं लगाया। इन देशों में जितनी मौतें हुई हैं अगर जनसंख्या के रेशियो में भारत से तुलना किया जाए तो हमारे यहां नगण्य ही समझा जाएगा। इन देशों में लाशें गिरती रहीं पर कभी पूर्ण लॉकडाउन जैसे फैसले नही दिए गए। शायद इस बार देश के नीति नियंता इन देशों में अपनाए गए तरीके ही अपनाने पर जोर दे रहे हैं। स्वीडन जैसे देश में कभी भी पूर्ण लॉकडाउन नहीं लगा हालांकि फैटलटी रेट इंडिया की तुलना में ज्यादा रहा।
दिल्ली जैसे छोटे राज्यों के पास तो कर्मचारियों को देने के लिए सैलरी भी नहीं बची थी
महाराष्ट्र में अन्न अधिकार अभियान के सर्वे में यह बात सामने आई की लॉकडाउन की मार के चलते राज्य के करीब 96 प्रतिशत लोगों की आमदनी में कमी आई। हर पांचवें व्यक्ति को भूखा रहने पर मजबूर होना पड़ा। कोरोना महामारी की मार केवल लोगों पर ही नहीं राज्यों पर भी पड़ी। देश की राजधानी दिल्ली की हालत इतनी बिगड़ी की उसके पास अपने कर्मचारियों को तनख्वाह देने तक के पैसे नहीं बचे थे। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा था कि, दिल्ली सरकार के सामने सबसे बड़ा संकट है कि अपने कर्मचारियों की सैलरी कैसे दी जाए। मनीष ने आगे कहा था कि हमने इसके लिए वित्त मंत्री जी को पत्र लिखा है और उनसे 5,000 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता की मांग की है।