किसान आंदोलन से सुर्खियों में आए हरियाणा के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी लंबे अरसे से राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं, 1979 से अब तक कई बार केस हो चुके हैं, 3 मामलों में सजा भी मिल चुकी है। केजरीवाल की आप से पत्नी को चुनाव लड़वा चुके हैं और खुद भी जमानत जब्त करवा चुके हैं। अब किसान आंदोलन के जरिए हरियाणा और पंजाब की राजनीति में छाने की तैयारी में हैं।
गुरनाम सिंह चढ़ूनी का राजनीतिक और अदालती सफर
किसान आंदोलन के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी का नाम तब मीडिया की सुर्खियां बना जब दस जनवरी को हरियाणा करनाल में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की किसान सभा में उत्पात हुआ और इस सरकार के इस विरोध की जिम्मेदारी गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने ली। हरियाणा में किसान आंदोलन के नाम पर ये पहला वाक्या था जब आंदोलनकारियो ने न सिर्फ कार्यक्रम का विरोध किया, बल्कि टेंट, स्टेज के साथ साथ हेलिपेड भी क्षतिग्रस्त कर दिया। इस हिंसात्मक विरोध के कारण हरियाणा के मुख्यमंत्री को मजबूरन रैली रद्द करनी पड़ी।
कौन हैं गुरनाम सिंह चढ़ूनी ?
आखिर ऐसा नेता कौन है जिसके इशारे पर हरियाणा के सीएम की रैली ही रुकवा दी गई ? गुरनाम सिंह चढ़ूनी के बारे में जानकारियां जुटाने पर पता चला कि चढ़ूनी हरियाणा की राजनीति के सिरमोर बनने की चाहत रखते हैं और लंबे समय से राजनीतिक कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं, मौजूदा सरकार किसी की भी रही हो, विरोध में चढ़ूनी कभी पीछे नहीं हटे। गुरनाम सिंह चढ़ूनी के बारे में पुख्ता ब्यौरा उनके चुनावी ब्यौरे में ही मिलता है। कृषि मंडी कमीशन एजेंट(Arhatiya) हैं गुरनाम सिंह चढ़ूनी कम ही लोग जानते हैं कि किसान आंदोलन के जरिए सुर्खियों में आए किसानों के नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी खेतीबाड़ी से जुड़े हैं, लेकिन उनका ज्यादा जुड़ाव एक कमीशन एजेंट के तौर पर ही रहा है।मंडी में आढ़ती और कमीशन एजेंट के तौर पर गुरनाम सिंह चढ़ूनी लंबे अरसे से काम करते आ रहे हैं।
भारतीय किसान युनियन से जुड़े चढ़ूनी
बतौर किसान और मंडी व्यापारी होने के साथ साथ गुरनाम सिंह चढ़ूनी भारतीय किसान यूनियन से भी लंबे अरसे से जुड़े रहे हैं और उनके खाते में कई उपलब्धियां भी आती हैं, वो हरियाणा की भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भी रहे हैं
2014 लोकसभा चुनावों में कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद केजरीवाल ने चढ़ूनी का साथ दिया आम आदमी पार्टी के वजूद में आने के बाद से ही गुरनाम सिंह चढ़ूनी केजरीवाल के संपर्क में रहे, और इसी का फायदा उन्हें केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनावों में दिया, स्थानीय कार्यकर्ताओं के तमाम विरोध के बावजूद गुरनाम सिंह चढ़ूनी की पत्नी बलविंदर कौर को हरियाणा के कुरुक्षेत्र से आम आदमी पार्टी का चुनावी प्रत्याशी बनाया गया। लेकिन मोदी की लहर में पार्टी का सुपड़ा साफ हो गया, चढ़ूनी की पत्नी चुनाव हार गईं। 2019 में लाडवा, कुरुक्षेत्र से चुनाव हारे गुरनाम सिंह चढ़ूनी 2014 में भले ही पत्नी की जमानत जब्त होने की नौबत, लेकिन गुरनाम सिंह चढ़ूनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं हारी थी, उन्होंने अपने ही क्षेत्र कुरुक्षेत्र के लाडवा से चुनाव लड़ने की ठानी, लेकिन यहां भी हालात इतने बदतर हुए कि गुरनाम सिंह चढ़ूनी को करारी हार का सामना करना पड़ा। किसान आंदोलन से चमका चढ़ूनी का नाम, अब सीएम बनने की चाहत ? लंबे राजनीतिक सफर के बाद अब गुरनाम सिंह चढ़ूनी सुर्खियों में आ चुके हैं, संयुक्त किसान मोर्चा जितनी बार उन्हें बर्खास्त करता है, उससे उनका नाम एक बार फिर सुर्खियों में आ जाता है और हरियाणा में लगभग हर जिले में उनके कार्यकर्ता बीजेपी पर हमलावर हो चुके हैं। ऐसे में अब गुरनाम सिंह चढ़ूनी अपनी सियासी महत्वाकांक्षा को सिरे चढ़ाने की फिराक में हैं और इतने बड़े सरकार विरोधी कार्यक्रम को अंजाम देकर अब उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा हिचकौले खा रही है। हरियाणा ही नहीं, पंजाब, यूपी की राजनीति में छाने की तैयारी में हैं और कार्यकर्ताओं समर्थकों का मानना है कि चढ़ूनी अब सिर्फ विधायक ही नहीं, मुख्यंत्री मेटिरियल के तौर पर तैयार हो चुके हैं। किसानों के नाम पर आंदोलन तक बात ठीक है, लेकिन सवाल उठने लाजमी हैं कि राजनीतिक अखाड़े में आएंगे तो कमीशन एजेंट के तौर पर किए काम,हैं। और पिछली कानूनी अपराधों की छाया उनपर छाई रहेगी। विरोधी ही नहीं, जनता भी सवाल पूछ लेगी कि कमीशन एजेंट और आढ़ती होते हुए किसान नेता कैसे बन गए ? क्यों कई बार अदालत से सजा हुई? ये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब किसान आंदोलन में तो भले ही ना देना पड़ा हो, लेकिन राजनीति में उतरते ही ये सवाल सारी बनी बनाई इमेज को धुल सकते हैं।