लाकडाउन में पैसेंजर ट्रेनों के पहिये थम जाने से बहुतेरे किसानों की आमदनी के रास्ते बंद हो गए। कम भाड़े में अपने शहर के अलावा आसपास जिलों और कस्बों की मंडी तक पहुंचने से मुनाफा बढ़ जाता है। ऐसे में पैसेंजर ट्रेनों के साथ किसान स्पेशल ट्रेन मिले तो उनकी आमदनी के रास्ते और खुलें।

शहर से लगे रेलवे के आसपास कई स्टेशन हैं। ये किसानों की पहुंच में हैं। लाकडाउन से पहले पैसेंजर ट्रेनों के माध्यम से हर रोज आसपास गांवों के किसान हर सुबह इन ट्रेनों में अपनी एक-दो बोरी सब्जी आदि भरकर ले जाते थे और शाम को उसी ट्रेन से लौट आते थे।

उदाहरण के तौर पर आगरा के आसपास के जिलों तक इस आवागमन में बमुश्किल 30 से 50 रुपये खर्च होते थे। ऐसे में उनकी बचत ज्यादा होती थी और सब्जी बेचने के स्थान भी बढ़ जाते थे। जिले में अछनेरा, पथौली, कीठम, एत्मादपुर, यमुना ब्रिज, भाड़ई आदि ऐसे स्टेशन हैं, जहां पैसेंजर ट्रेनें रुकती हैं। लाकडाउन से पहले यहां से किसान मथुरा, भरतपुर, पलवल, ग्वालियर आदि शहरों में सब्जी आदि बेचने जाते थे। इतना ही नहीं, इन स्टेशनों से बहुत से किसान और दूधिये आगरा शहर भी आते थे। दरअसल, सड़क मार्ग से आने में उन्हें भाड़ा अधिक देना पड़ता है। सब्जी की एक-दो बोरी के परिवहन में सड़क मार्ग और पैसेंजर ट्रेन के भाड़े में तीन से चार गुने का अंतर पड़ता है। ऐसे में पैसेंजर और किसान स्पेशल ट्रेन चलने से उनकी आय में इजाफा होगा। लाकडाउन से इनका काम बंद है। भाड़ा कम होने की वजह से बचत थोड़ी ज्यादा हो जाती थी। किसान स्पेशल ट्रेन की काफी आवश्यकता है।

  • मोहन सिंह चाहर, प्रांत अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ ने कहा कि सड़क मार्ग से एक-दो बोरी के परिवहन में बहुत ज्यादा खर्च होता है। ऐसे में किसान स्पेशल ट्रेन मिले तो किसानों के लिए तरक्की के रास्ते खुलें। फिर वे अपने ही नहीं, आसपास के जिलों की मंडी
  • में भी कम भाड़ा खर्च कर आसानी से पहुंच सकेंगे।

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