डॉक्टर रजनीकांत दत्ता
पूर्व विधायक, शहर दक्षिणी
वाराणसी ( यूपी )

भारत एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी 3/4 आबादी ग्रामीण मूल की है। भारत की कुल GDP में अधिकांश योगदान शहरों में रहने वाले, CORPORATE जगत के उद्यमियों द्वारा होता है। इनका GDP में योगदान उन बहुत से मुद्दों से प्रभावित होता है, जैसे GOVT. की TAX POLICIES, INFRASTRUCTURE, RAW MATERIALS की उपलब्धता और देश-विदेश के उपभोक्ता की मांग पर। लेकिन गाँव में होने वाला कृषि उत्पादन सामान्यतः किसी भी देश के नागरिकों की वह आधारभूत आवश्कता है, जिस पर उसका स्वस्थ जीवन आधारित है।

इसे हम देश का दुर्भाग्य कहें या और कुछ कहें कि, केवल 1947 से 2014 के बीच प्रथम बार तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी ने इनकी समस्याओ के निराकरण का हल ढूंढने के लिए,
जय-जवान, जय किसान का नारा दिया था (शायद जय जवान इसीलिए की सेना का NON-COMMISIOND सैनिक मुख्यतया गांव से आता है और युवा शक्ति देश का भविष्य है)। उसके बाद की सरकारें 2014 तक किसान भाइयों का दोहन और शोषण तो ज़रूर करते रहीं, लेकिन उनके आधारभूत पालन-पोषण पर ध्यान नहीं दिया और न ही INFRASTRUCTURE पर ताकि गांव इन किसानों को आर्थिक और भावनात्मक रूप से बांध कर रख सकें और वह जीविकोपार्जन हेतु दूसरे प्रान्तों और शहरों को पलायन न कर सके।
इनके पलायन का मुख्य कारण यह था कि, कृषि उत्पादन से मिलने वाली धनराशि कृषि उत्पादन के दौरान लगायी गयी धनराशि से कहीं कम था, यानी घाटे का सौदा। इसके कारण, इनका और इनके परिवार का भविष्य अंधकारमय था।

2014 को सही मायने में जब स्वराज्य और स्वदेशी आये, तो किसानों को वह हक़ दिलाने की कोशिश की गयी, जो संविधान प्रदत्त है। लेकिन 1947 से लेकर 2014 तक का किसानों के खिलाफ किये गये सरकारी पाप का परिमार्जन एक दुरुह कार्य है, जिसके समाधान की शनै:-शनै: पूर्ति हो रही है।

यहाँ मैं अब मूल विषय आपके संज्ञान में लाना चाहूँगा-

किसानों की सम्पूर्ण आय के स्वतंत्र सोत्र जो निम्नवत हैं।

कृषि उत्पादन (और उसे जस का तस बेचने के स्थान पर उससे ही उत्पादित, परिमार्जित बिक्री योग्य END PRODUCTS का निर्माण, जैसे टोमेटो सॉस, आचार, पापड़, मुरब्बा, CORNFLAKES, WHEAT FLAKES आदि का निर्माण, जिसमे मुनाफे का बहुत बड़ा मार्जिन है)।

दूसरा गौ-पालन और उससे संबंधित उद्योग।

तीसरा सब्ज़ी, FLOWERS, बागबानी और TIMBER संबंधित वृक्षों का रोपण।

मछली पालन, मुर्गी पालन, सुअर पालन और उनसे संबंधित उद्योग।

CO-OPERATIVE FARMING।

INFRASTRUCTURE ।

WATER FOR IRRIGATION AND CONSUMPTION ।

भारत की मिट्टी इतनी मुलायम और उपजाऊ है और यहाँ का मौसम, कृषि के इतना अनुकूल है कि, केवल हल और बैल से खेत जोतकर और बीज बोकर धान की रोपनी कर, हम बिना परिश्रम के रबी, खरीफ और जायद की फसल प्राप्त कर सकते हैं।

भारत की स्थिति विश्व के अन्य कृषि उत्पादक देशो की तरह नहीं है, जहाँ की कड़ी भूमि को जोतने के लिए,50-100 HP TRACTOR का इस्तेमाल करना पड़ता है और भूमि की उर्वरता बनाये रखने के लिए, मृदा परीक्षण के बाद FERTILIZERS डालने पड़ते हैं, जो फसलों को तो CONTAMINATE करते ही हैं और कालांतर में अगर FERTILIZERS न डाले जाए, तो ज़मीन भी बंजर कर देते हैं।

भारत के किसानों की सबसे बड़ी समस्या सूखा और बाढ़ की है। श्री विश्वेश्वरैया, बहुत बड़े वैज्ञानिक थे।उनका सिद्धान्त था कि, भू-जल से सिंचाई करने के लिए, आवश्यकता पड़ने पर जितना जल निकाला जाए, उसकी दुगनी मात्रा मे बरसाती जल हमें तालाबों में इकट्ठा कर लेना चाहिए। अर्थात हर ग्रामसभा की भूमि पर आवश्कता से दोगुना जल तालाब में इकट्ठा करना होगा।तालाबों का यह बरसाती पानी
केवल सिंचाई के लिए ही काम नहीं आएगा, बल्कि इसमें मछली पालन भी हो सकता है। सिंघाड़ा,कमलगट्टा की खेती भी हो सकती है।

इसके अलावा भारतीय किसानों को रबी, खरीफ और जायद में जो फसल पैदा होती है, उसे बजाय सरकार द्वारा निर्धारित अधिकतम मूल्य पर बेचने के, उन्हें उनका आटा, बेसन और धुआंस बना कर बेचना चाहिए और दलहन को 1-2-5 किलो के पैकेट में अपने द्वारा निर्मित कॉरपोरेट स्टोर के माध्यम से बिना किसी बिचौलियों के सीधे WHOLESALER और RETAILER को बेचना चाहिए।
यही तिलहन के साथ भी करना चाहिए।

यानी सरसों का तेल आदि-आदि।
इसके अतिरिक्त किसानों को गृहकुटीर उद्योग के तहत सूजी, मैदा, टोमेटो सॉस आदि भी रॉ मटेरियल की जगह FINISHED GOOD की तरह सीधे WHOLESALER और RETAILER को बेचना चाहिए।

और रहा बाढ़ का सवाल,
तो इसके लिए बांध और तटबंध तो बनाये ही जाएं, लेकिन जो बड़ी-छोटी नदियाँ है, उन्हें आपस में जोड़ने का ऐसा वैज्ञानिक प्रयास करना चाहिए, जो पर्यावरण और खेती की आवश्यकता के अनुरूप हो।
अब इस बिंदु के अंतिम निष्कर्ष पर हम आते हैं-

इसके अनुसार गाँव को PITCH ROAD द्वारा NATIONAL HIGHWAY से जोड़ना होगा और अधिकतर गांवों के 15 किलोमीटर तक कोई RAILWAY STATION होना आवश्यक है।
MUNICIPAL ACT के अनुसार जो सुविधाएँ शहरों को मिलती हैं, वही गांव को भी मिलनी चाहिए। जैसे कि पीने का शुद्ध पानी, मल- मूत्र के निकासी की सुविधा, ऊर्जा और स्वास्थ्य सेवाएं और वातावरण, जो पर्यावरण के अनुकूल हो।

शेष अगले एपिसोड में…….

अंत्योदय में ही सर्वोदय है।
यही RENASA या पुनर्जागरण है।
भगवान हमारे कर्णधारों को सद्बुद्धि दे।
लाल बहादुर शास्त्री,
अमर रहें।

वंदे मातरम।
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