नई दिल्ली । सऊदी अरब में तब्लीगी जमात पर प्रतिबंध लगाए जाने को जहां इस्लामिक शिक्षक संस्था दारुल उलूम देवबंद ने अनुचित ठहराया है। वहीं, दरगाह आला हजरत, बरेली से जुड़े संगठन तंजीम उलमा-ए-इस्लाम ने इसकी सराहना की है। लखनऊ के मुस्लिम धर्मगुरु फिलहाल इसे धार्मिक एलान के रूप नहीं देख रहे हैं और कुछ भी बोलने से कतरना रहे हैं। वहीं, जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती-ए-आजम ने कहा कि यह राजनीतिक फैसला है।

दारुल उलूम देवबंद, सहारनपुर के मोहतमिम मुफ्ती अबुल कासिम नौमानी ने कहा कि तब्लीगी जमात अपनी स्थापना के पहले दिन से ही मुसलमानों को मस्जिदों से जोड़ने का काम कर रही है और इसका फैलाव लगभग पूरी दुनिया में है। तब्लीगी जमात और इससे जुड़े लोगों पर दहशतगर्दी का इल्जाम बिल्कुल बेबुनियाद है। दारुल उलूम देवबंद इसकी कड़ी निंदा करता है और सऊदी सरकार से मुतालबा करता है कि वह अपने फैसले पर पुनर्विचार करे।

सऊदी अरब का फैसला दुरुस्त

बरेली में दरगाह आला हजरत से जुड़े संगठन तंजीम उलमा-ए-इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन ने सऊदी अरब सरकार के फैसले को दुरुस्त बताया है। उनका कहना है कि तब्लीगी जमात के लोग कम पढ़े-लिखे मुसलमानों के बीच गांव-गांव जाते हैं। उनको नमाज रोजा की तबलिग करते हैं मगर, इसकी आड़ में धीरे-धीरे जहर घोलने का भी काम करते हैं। आम लोगों का ईमान व आकिदा खराब करते हैं। इनकी गतिविधियों से कट्टरपंथी सोच को बढ़ावा मिलता है। उन्होंने कहा कि दूसरे मुस्लिम देशों को भी अपने मुल्क में जांच पड़ताल करनी चाहिए।

धार्मिक एलान नहीं आया

लखनऊ में ईदगाह ऐशबाग के इमाम मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली कहते हैं कि सऊदी अरब में इस्लामिक मामलों को लेकर बयान जारी होता है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई बयान नहीं आया है। ऐसे में मुझे लगता है कि इस पर कुछ भी बोलना मुनासिब नहीं होगा। अभी हमें इंतजार करना चाहिए। टीले वाली मस्जिद के इमाम मौलाना फजले मन्नान भी कहते हैं कि वहां के वरिष्ठ धर्म गुरु की ओर ऐसा कोई एलान नहीं हुआ और मुझे अभी इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। इस पर अभी हम कोई बयान नहीं दे सकते। काजी-ए-शहर मौलाना अबुल इरफान मियां फरंगी महली भी यही कहते हैं कि सऊदी अरब से जो भी खबरें आ रही हैं, वह अपुष्ट हैं। जब तक वहां के इस्लामिक धर्म गुरु का ऐसा कोई एलान सामने नहीं आता, तब तक कुछ भी बोलना अनुचित है।

यह सऊदी अरब का राजनीतिक फैसला

कश्मीर के मुफ्ती-ए-आजम मुफ्ती नासिर उल इस्लाम ने कहा कि यह सऊदी अरब का आंतरिक मसला है। यह कोई मजहबी फैसला नहीं है, यह एक राजनीतिक फैसला है। सऊदी अरब सरकार ने कोई कमेटी बनाई थी, उस कमेटी ने तबलीगी जमात पर पाबंदी लगाने की सलाह दी और यह फैसला हो गया। रही बात हिंसा और नफरत फैलाने की तो जो लोग इस्लाम को अच्छी तरह समझते हैं, इस्लाम पर चलते हैं वह हिंसक नहीं हो सकते। उन्होंने यह भी कहा कि सऊदी अरब ने मजहबी गतिविधियों पर कोई पाबंदी नहीं लगाई है।

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