अपूरणीय क्षति है——
दो दिनो से लगातार भारतीय हाकी परिवार पर मानो मौत का साया सा मंडरा रहा है एक के बाद एक दुखद समाचारों का आना थम ही नही रहा है । 10 मई को दोपहर लगभग 3:30 बजे हाकी के जादूगर ध्यानचंद के सबसे बड़े सुपुत्र मोहन सिंह हम सबके भाई साहब का राजस्थान के कोटा शहर में अपने निवास स्थान पर दुखद निधन हो गया।

वे कुछ दिन पूर्व ही कोरोना से ठीक होकर स्वस्थ एवं प्रसन्न हॉस्पीटल से घर आ गए थे। आज अचानक ही उनकी सांसो ने उनका साथ छोड दिया। वास्तव मे सच पुछा जाये तो मोहन भाई साहब मेजर ध्यानचंद के परिवार की रीढ की हड्डी थे जिनको पूरा परिवार अपने पिता की तरह मान सम्मान देता था सारे परिवार के बच्चों से उनका अद्भूत लगाव और स्नेह था।बहुत ही सहज सरल स्वभाव के धनी । सभी से प्रेमव्रत व्यवहार।अशोक कुमार की पूरी पढ़ाई और परवरिश करने वाले मोहन भाई साहब ही रहे है। घर मे बड़े होने के नाते सबसे पहले शासकीय सेवा में मोहन भाई साहब ही नौकरी मे लगे।वे राजस्थान सरकार के खेल विभाग मे पदस्थ हुए।मेजर ध्यानचंद सेवा निवृत हो चुके थे। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत नाजुक थी मेजर ध्यानचंद की थोडी-सी पैनशन मे परिवार का गुजारा हो पाना संभव नही था एसी परिस्थति मे मोहन भाई साहब ने ही अपने छोटे भाई बहनो को अपनी छोटे से वेतन संसाधनो मे पढाया लिखाया परवरिश की। मोहन भाई साहब ही अशोक कुमार को उच्च शिक्षा के लिए झांसी से कोटा लेकर आये और ये ही वे पल है मोहन भाई साहब की परवरिश और मार्ग दर्शन का नतीजा है जिसकी वजह से देश और दुनिया को अशोक कुमार जैसा महान हाकी खिलाडी मिल पाया। सच पूछा जाये तो अशोक कुमार की सफलता की कहानी पर्दे के पीछे लिखने वाले मोहन भाई साहब ही रहे है। मेरी अनेको बार मोहन भाई साहब से मुलाकाते हुई घमंड उनके आसपास भी नही आता था बिल्कुल संसारिक जीवन मे सन्त की तरह से निर्मल मन के वयक्ती ।

एक बार मुझे अशोक कुमार और मोहन भाई साहब दोनो को एक ही ट्रेन पर छोड़ने का अवसर मिला अशोक कुमार के पास एसी का टिकट था और मोहन भाई साहब के पास सामान्य दर्जे का टिकट मैने प्लेटफॉर्म पर तैनात रैल्वे टी सी स्टाफ से बात की कि मोहन भाई साहब को भी एसी मे यात्रा करने दी जाये और टी सी स्टाफ ने हामी भर दी किन्तु मोहन भाई साहब सामान्य दर्जे के डिब्बे मे ही बैठे उन्होने एसी क्लास मे बैठने से साफ मना कर दिया फिर अशोक कुमार भी सामान्य डिब्बे मे ही चढ़े और दोनो ने सामान्य डिब्बे से यात्रा की यह उनके सरल स्वभाव का उदहारण जो मैने स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया था।खाने की मेज पर सबका भोजन लग जाये लेकिन तब तक नही खाते जब तक परिवार मे सबके नाम नही पुकार लेते फिर ही भोजन करते।लोगो का मानना रहा है जिनहोने मेजर ध्यानचंद के साथ दिन बिताये हैं स्वभाव मे वे मेजर ध्यानचंद की प्रतिकर्ती थे मेजर ध्यानचंद के स्वभाव की छवि मोहन भाई के स्वभाव मे स्पष्ट झलकती थी।आज वास्तव मे हाकी के जादूगर ध्यानचंद के जीवित स्वभाव ने जिनके स्नेह से हम सब भी अभिसिंचित हुए है हमारा साथ छोड दिया है।मैं कोटा से बैतूल यात्रा कर जब तक घर नही पहुँच जाऊ तब तक फोन लगाकर पूछते रहते बबलू बाबू कहा तक पहुचें वह स्नेह से भरी अभिभावक के अँदाज मे पूछने वाली आवाज ने मेरा सबका साथ छोड दिया ।
मोहन भाई साहेब के निधन से हम सभी शोकाकुल और स्तब्ध है।मोहन भाई साहब का दुनिया को अलविदा कहना हम सभी के लिये अपूरणीय क्षति है।।मोहन भाई साहब के श्री चरणों में मे श्रधान्जली अर्पित है भगवान परिवार को दुख सहन करने की शक्ति प्रदान करें ।

गोपाल जी एवं अनिल शर्मा

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