एक पखवाड़े में तीन देश ऐसे हैं जहां सबसे ज्यादा कोरोना के मामले आये। ये हैं -अमेरिका, रूस और ब्राज़ील। ये दुनिया की सबसे घनी आबादी वाले टॉप-10 देशों की फ़ेहरिस्त में शामिल हैं। करोड़ों की आबादी है, घनी आबादी वाले कई बड़े शहर हैं, और तो और तीनों ही देशों को इस बात पर विश्वास नहीं था कि ये महामारी उनके यहाँ भी फैल सकती है।

लेकिन एक महत्वपूर्ण पहलू रूस को बाकी के दो देशों से अलग करता है और वो है कोविड-19 के मरीज़ों की मृत्यु दर। अमेरिका की जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के डेटा पर नज़र डालें, तो अमरीका में कोविड-19 के मरीज़ों की मृत्यु दर क़रीब 6 प्रतिशत है। वहीं ब्राज़ील में यह क़रीब 7 प्रतिशत है। यूएस पिछले दो महीने से इस महामारी के प्रकोप से लड़ रहा है, जबकि ब्राज़ील में इस संक्रमण ने एक महीने पहले ही अपना रूप दिखाना शुरू किया है।

पश्चिमी यूरोप के देशों की अगर बात करें, तो चाहे इटली हो, फ़्रांस या स्पेन हो या फिर बेल्जियम और ब्रिटेन, इन सभी देशों में मृत्यु दर औसतन 10 प्रतिशत रही है। लेकिन रूस में यह दर एक प्रतिशत से भी कम है। जबकि रूस और ब्राज़ील में इस बीमारी ने लगभग एक ही समय पर दस्तक दी थी।

ऐसा कैसे हो सकता है

रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय में संक्रामक रोग की चीफ़, डॉक्टर एलीना मैलिनिकोवा के पास इसका एक सीधा-साधा जवाब है। उनके अनुसार, “मृत्यु दर इसलिए कम है कि लोगों में इस संक्रमण का सही समय पर पता चल रहा है। रूस में लोग संक्रमण के लक्षण दिखाई देते ही, डॉक्टरों से संपर्क कर रहे हैं और अपना इलाज़ करा रहे हैं।”

रूस के पत्रकारों की रिपोर्ट के अनुसार ‘उनके यहाँ कोरोना वायरस संक्रमण के अब तक जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें से 60 प्रतिशत केस रूस की राजधानी मॉस्को के हैं जहाँ तुलनात्मक रूप से जवान लोगों की आबादी ज़्यादा है, जो स्वस्थ हैं. जबकि ग्रामीण इलाक़ों में ऐसा नहीं है।

इनमें से वजह जो भी हो, लेकिन कोरोना महामारी से इतनी कम मृत्यु दर काफ़ी अप्रत्याशित है। तो यह समझने के लिए कि रूस में आख़िर चल क्या रहा है, कुछ चीजों की तुलना जरूरी है। सवाल यह कि क्या चीन की तरह रूस भी मौत के आंकडे छिपा रहा है ?

रूस और ब्राज़ील में कोविड-19 के टेस्ट करने की दर में भारी अंतर है

डॉक्टर एलीना मैलिनिकोवा और रूस के बड़े नेता इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि उनके यहाँ दस लाख की आबादी में से क़रीब 41,000 लोगों का कोविड-19 टेस्ट किया जा रहा है। जबकि ब्राज़ील में यह संख्या सिर्फ़ 3,459 है।

अमेरिका में भी रूस की तुलना में कम टेस्ट किये गए हैं। सरकारी डेटा के अनुसार अमरीका में हर दस लाख की आबादी में से 30,937 लोगों का ही कोविड-19 टेस्ट हुआ है। यह देखा गया है कि स्विट्ज़रलैंड और जर्मनी जैसे देशों ने, जिन्होंने बहुत अधिक टेस्टिंग की, उनके यहाँ भी मृत्यु दर कम रही है क्योंकि संक्रमण को बहुत शुरुआती दौर में पहचान लिया गया और समय पर दवाएं मिलने से मरीज़ में संक्रमण बढ़ा नहीं।

इसलिए अधिक टेस्टिंग करना बेशक फ़ायदेमंद हो सकता है, लेकिन कुछ और फ़ैक्टर भी हैं जिनकी वजह से कोविड-19 के मरीज़ों में मौत का ख़तरा बढ़ता है। जैसे-पुरुष, अधिक उम्र वाले लोग, दिल के मरीज़, फ़ेफड़े से जुड़ी किसी बीमारी के मरीज़, शुगर के मरीज़ और मोटापे के शिकार लोगों में कोविड-19 की वजह से ख़तरे बढ़ने की आशंका ज़्यादा देखी गई है.
रूस में अनाधिकारिक तौर से पुरुषों में इस महामारी की वजह से ज़्यादा मौतें दर्ज की गई हैं।

ऐसी स्थिति में जब रूस और ब्राज़ील, दोनों देशों में बीमारियों से होने वाले ख़तरे बिल्कुल बराबर नहीं, तो रूस में बहुत कम भी नहीं हैं, फिर कोविड-19 वहाँ कम ख़तरनाक कैसे है?
क्या डॉक्टर एलीना मैलिनिकोवा सही हैं? क्या वाक़ई ये अंतर ज़्यादा टेस्ट करने की वजह से है? या रूस के मेडिकल सिस्टम की क्षमता अधिक है?
वजह इनमें से कुछ भी हो सकती है. या शायद हमें पता ही नहीं है, जैसे – इस बात को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है कि रूस में कोविड-19 से होने वाली मौतों को कैसे दर्ज किया जाता है। अगर कोई शख़्स हार्ट अटैक से मरता है जिसे कोरोना संक्रमण भी था, तो क्या उसकी मौत को ‘कोविड-19’ से हुई मौत माना जाएगा?

मगर सच्चाई ये भी है कि रोग एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं होते हैं। हृदय रोग से पीड़ित किसी व्यक्ति का अगर निमोनिया होनी की वजह से दिल बैठ जाये, तो मृत्यु का सही कारण क्या होगा?
इस महामारी ने दुनिया भर में राजनीतिक टकराव को भी जन्म दिया है। इस वजह से भी चीज़ें जटिल हुई हैं। तो भले ही कोविड-19 की मौतों को गिनने के कुछ अंतरराष्ट्रीय मानक बनाये गए हैं, पर अंत में यह काम करना तो स्थानीय प्रशासन को ही है और यही महत्वपूर्ण है कि वो यह काम कैसे कर रहा है।
सोवियत तानाशाह जोसेफ़ स्टालिन ने एक बार कहा था, “यह महत्वपूर्ण नहीं है कि किसने वोट दिया, बल्कि महत्वपूर्ण ये है कि उन वोटों की गिनती किसने की।

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