भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान दादासाहेब फाल्के अवॉर्ड हर साल उन खास लोगों को दिया जाता है जो एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में अपना योगदान देते हैं। बीते 5 दशकों से साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत को ये अवॉर्ड मिल रहा है। पर क्या आप जानते हैं कौन हैं ये दादासाहेब फाल्के जिनके नाम पर ये पुरस्कार दिया जाता है। आज दादासाहेब की बर्थ एनिवर्सरी पर आपको बताते हैं कौन है ये महापुरुष जिन्हें सिनेमा इंडस्ट्री में पूजा जाता है।
भारतीय सिनेमा के पितामह कहे जाने वाले दादासाहेब फाल्के का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था। उनका जन्म 30 अप्रैल 1870 को हुआ था। वह एक बेहतरीन डायरेक्टर के साथ स्क्रीन राइटर भी थी। उन्होंने अपने 19 साल के फिल्मी करियर में 95 से ज्यादा फिल्में बनाई थीं।
दादासाहेब फाल्के की रुचि हमेशा से कला में थी। वह इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते थे। उन्होंने 1885 में जे जे कॉलेज ऑफ आर्ट में एडमिशन ले लिया था। इसके साथ ही उन्होंने वडोदरा के कलाभवन से भई कला की शिक्षा ली थी। साल 1890 में दादासाहेब वडोदरा शिफ्ट हो गए थे जहां उन्होंने कुछ समय के लिए बतौर फोटोग्राफर काम किया। अपनी पहली पत्नी और बच्चे के निधन के बाद उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी थी।
इस तरह लिया था फिल्म बनाने का फैसला
दादासाहेब फाल्के ने उसके बाद अपनी प्रिंटिंग प्रेस शुरू कर दी थी। भारतीय कलाकार राजा रवि वर्मा के साथ काम करने के बाद वह पहली बार देश से बाहर जर्मनी गए थे। जहां उन्होंने पहली फिल्म द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखी और पहली फिल्म बनाने का फैसला लिया था। पहली फिल्म बनाने के लिए उन्हें बहुत मशक्कत करनी पड़ी थी। इसे बनाने में उन्हें छह महीने लगे थे।
पत्नी और बेटे की सहायता से दादासाहेब ने पहली फिल्म राजाहरिश्चंद्र बनाई थी। इस फिल्म को बनाने में 15 हजार रुपये लगे थे। उन दिनों यह बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राजा हरिश्चंद्र में दादासाहेब ने खुद एक्टिंग की थी। उनकी पत्नी ने कॉस्ट्यूम का काम मैनेज किया था और उनके बेटे ने हरिश्चंद्र के बेटे का किरदार निभाया था। दादासाहेब की फिल्म में फीमेल लीड का किरदार भी एक पुरुष ने निभाया था क्योंकि कोई भी महिला काम करने के लिए राजी नहीं थी।
3 मई 1913 को यह फिल्म मुंबई के कोरनेशन सिनेमाघर में रिलीज हुई थी। इस फिल्म को दर्शकों का ढेर सारा प्यार मिला था और यह सुपरहिट साबित हुई थी।