सनातन धर्म की लोक मान्यतानुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मां सरस्वती को समर्पित बसंत पंचमी का त्योहार इसलिए मनाया जाता है कि सृष्टि अपनी प्रारंभिक अवस्था में मूक, शांत और नीरस थी। चारों तरफ मौन देखकर भगवान ब्रह्मा जी अपनी इस सृष्टि के सृजन से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का और इससे अद्भुत शक्ति के रूप में मां सरस्वती प्रकट हुईं। मां सरस्वती ने वीणा पर मधुर स्वर छेड़ा जिससे संसार को ध्वनि और वाणी मिली। इसलिए बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा का विधान है। 

मान्यता है कि इस दिन आराधना करने से माता सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती हैं और ज्ञान का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव-माता पार्वती के विवाह की लग्न लिखी गई। विद्यार्थी और कला साहित्य से जुड़े हर व्यक्ति को इस दिन मां सरस्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इस दिन सच्चे मन से की गई पूजा कभी विफल नहीं जाती। मां सरस्वती की पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस दिन घर में मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर अवश्य स्थापित करें। घर में वीणा रखने से घर में रचनात्मक वातावरण निर्मित होता है। घर में हंस की तस्वीर रखने से मन को शांति मिलती है और एकाग्रता बढ़ती है। मां सरस्वती की पूजा में मोर पंख का बड़ा महत्व है। घर के मंदिर में मोर पंख रखने से नकारात्मक ऊर्जा का अंत होता है। कमल के फूल से मां का पूजन करें। बसंत पंचमी के दिन विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य संपन्न कराए जाते हैं। बसंत पंचमी के दिन शिशुओं को पहली बार अन्न खिलाया जाता है। इस दिन बच्चों का अक्षर आरंभ भी कराया जाता है। बसंत पंचमी में पीले रंग का विशेष महत्व है। पूजा विधि में पीले रंग की वस्तुओं का प्रयोग करें। पीले रंग के व्यंजन बनाए जाते हैं।

बसंत पंचमी के दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की भी पूजा की जाती है। 

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