अनिल सिंह
पूर्व महाप्रबंधक
पावर ग्रिड
भारत-भूमि सदा से ही ईश्वर को अत्यन्त प्रिय रही है, और प्रभु युगों-युगों से अपने चमत्कार दिखाने के लिए भारत-भूमि को ही चुनते रहे हैं। तभी तो एक से एक अतीन्द्रिय शक्तियों से युक्त चमत्कारी सन्त हर युग में भारत में रहे हैं। वर्तमान युग में अपनी लीला से जनसाधारण को चमत्कृत कर देने वाले ऐसे ही एक सन्त हैं राहुल गाँधी जी। आज से कोई ४०-५० साल पहले तक एक सन्त हुआ करते थे पूज्य देवराहा बाबा। हर साल वह कुछ समय वाराणसी में बिताते थे जहाँ असि घाट पर गंगा के बीचोबीच एक मचान पर रहते थे। वाराणसी वह कब और कैसे आते थे, और कब और कैसे वहाँ से चले जाते थे, आज तक किसी को नहीं पता। राहुलजी भी कब और कैसे भारतवर्ष में आते हैं और कब, कैसे और कहाँ निकल जाते हैं- यह कोई नहीं जानता। भारत में भी वह अकस्मात् कब और कहाँ पहुँच जाएंगे- यह कोई नहीं बता सकता। और यह रहस्यमयी यात्राएं वह क्यों करते हैं- इसके सम्बन्ध में भारत में एक शब्द युगों से चर्चा में रहा है- लीला : राम और कृष्ण जैसे अवतार-पुरुष भारत में जन्म लेकर नरलीला करते रहे हैं: अपने राहुलजी भी यही कर रहे हैं, यद्यपि उनके एक पट्टशिष्य रणदीप सुरजेवाला ने कुछ दिनों पूर्व ऐसा कुछ बताया था कि राहुलजी यह यात्राएं ध्यान के लिए करते हैं। अस्तु।
यूँ तो राहुलजी का पूरा जीवन ही चमत्कारों से भरा रहा है, पर कल उन्होंने जो चमत्कार दिखाया, उसके आगे उनके सारे पिछले चमत्कार फीके पड़ जाते हैं; इसके बाद तो वेटिकन वाले भी उन्हें चमत्कारी सन्त मानने पर विवश हो जाएंगे।
कल उन्होंने दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षरों से युक्त एक ज्ञापन राष्ट्रपति महोदय को इस अनुरोध के साथ दिया कि वह सरकार पर इस बात के लिए दबाव डालें कि वह नये किसान-कानून वापस ले।
वर्षों पहले सन ‘९३-९४ में विश्व हिन्दू परिषद् वालों ने १० करोड़ हस्ताक्षरों से युक्त एक ज्ञापन तत्कालीन राष्ट्रपति को दिया था जिसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि वह सरकार को अयोध्या में रामजन्मभूमि-स्थल पर मन्दिर बनवाने के लिए निर्देशित करें। विहिप वाले हमारे घर भी आये थे। उन्होंने हमें अपने मिशन की जानकारी दी, और हमसे कहा कि यदि हम उनकी माँग अच्छी तरह समझ गये हों, और उससे सहमत हों, तभी उनके दिये गये कागज़ पर हस्ताक्षर करें। इस प्रकार एक परिवार के दो लोगों के हस्ताक्षर लेने के लिए विहिप के दो आदमियों ने १५ मिनट लगाये, और हमारे नाम और पिता के नाम के साथ हमारा पता भी नोट किया: इस प्रकार एक हस्ताक्षर लेने में खर्च हुए ३० मानव-मिनट। इस प्रकार एक कार्यकर्ता औसतन एक दिन में २५ लोगों के ही हस्ताक्षर ले पाता होगा। विहिप का यह हस्ताक्षर एकत्र करने का अभियान अगर एक साल में पूरा हुआ हो, तो विहिप के लगभग ११००० कार्यकर्ता इस कार्य में लगातार लगे रहे होंगे।
अब इसकी तुलना राहुलजी के दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षर लेने के चमत्कार से करें। मुश्किल से दो दिन पहले उनके खेमे से घोषणा हुई कि वह दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षरों से युक्त ज्ञापन राष्ट्रपति को सौंपेंगे, और दो दिनों के अन्दर उन्होंने यह हस्ताक्षर करा भी लिये। साधारण मनुष्यों के लिए इसका हिसाब लगाना असम्भव है कि इस काम के लिए कितने कांग्रेसी लगे होंगे।
अब कहा जा रहा है कि उन्होंने लोगों के केवल हस्ताक्षर लिये, उनके नाम-पते, मोबाइल नम्बर या आधार नम्बर नहीं, तब भी दो करोड़ लोगों के हस्ताक्षर या अँगूठे के निशान दो दिन में ले लेना किसी दैवी चमत्कार से कम नहीं है, जो राहुलजी जैसे सन्त के लिए ही सम्भव है, पर असली चमत्कार यह नहीं है कि उन्होंने इतनी जल्दी दो करोड़ हस्ताक्षर एकत्रित कर लिये: असली चमत्कार तो यह है कि वह इतने हस्ताक्षरों से युक्त कागज़ राष्ट्रपति को सौंप भी आये।
अगर मान लिया जाय कि यह हस्ताक्षर ए4 साइज़ के कागज़ पर कराये गये, और एक कागज़ पर १०० लोगों के हस्ताक्षर लिये गये- यद्यपि यह अपने आप में ही एक अद्भुत चमत्कार है, तो दो करोड़ हस्ताक्षर लेने के लिए कम से कम दो लाख A4 साइज़ के पन्ने या चालीस हज़ार रीम लगे होंगे। सबसे हलके ए4 साइज़ के कागज़ का वज़न होता है- ४.६९ ग्राम: इस प्रकार दो लाख पन्नों का वज़न हुआ लगभग १ मेट्रिक टन। तो राहुलजी कम से कम एक टन कागज़ लेकर राष्ट्रपति भवन गये, और उन्हें राष्ट्रपति को सौंप भी दिया। अब राष्ट्रपति जानें और उनका काम जानें।
राहुलजी ने तो अपना चमत्कार दिखा दिया, पर बेचारे राष्ट्रपति क्या करें? अमेरिका में ट्रम्प इस बात के लिए बवाल खड़े किये हुए हैं कि नवम्बर में राष्ट्रपति-पद के लिए हुए चुनाव के नतीजे घोषित करने से पहले मेल-इन पद्धति से वोट डालने वालों के हस्ताक्षरों का मिलान किया जाय जिससे यह निश्चित हो सके कि केवल वैध वोटरों के वोट ही गिने गये हैं। यहाँ राष्ट्रपति महोदय को भी राहुलजी के ज्ञापन पर कोई कार्रवाई करने से पहले यह तो सुनिश्चित करना ही होगा कि उन्हें सौंपे गये हस्ताक्षर मनुष्यों के ही हैं- राहुलजी के मित्र देवताओं, यक्षों, गन्धर्वों या किन्नरों के नहीं। राष्ट्रपति महोदय यह कैसे सुनिश्चित करेंगे? क्या वह सारे कागज़ राहुलजी को वापस कर देंगे कि वही इस अमानवीय कार्य को करने के बाद कागज़ दुबारा जमा करें, या इस काम के लिए वह सरकार पर भरोसा करेंगे? हम तो यही कर सकते हैं कि राष्ट्रपति महोदय की मुसीबतें राष्ट्रपति महोदय के लिए ही छोड़कर राहुलजी की दैवी शक्तियों के समक्ष नतमस्तक हो जायँ। बोलो सन्त राहुलजी की – जय!!