उल्कापिंड का एक बड़ा रूप क्षुद्र ग्रह आज बुधवार को पृथ्वी के पास से सुबह गुजरा । खगोलीय घटनाओं के अध्ययन के लिए वैज्ञानिक इसे एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम मान रहे हैं। बुधवार को 19 हजार किमी प्रति घंटा की गति से गुजरने वाला यह ग्रह इसके बाद फिर 59 साल बाद दिखाई देगा। आम आदमी इसे नहीं देख सका, उपकरणों से ही इसे देखा जा सकता था। इसके बारे में जानकारियां एकत्र करने को लेकर वैज्ञानिकों के साथ ही विज्ञान से जुड़े शोधार्थियों में खासी उत्सुकता बनी हुई थी।
आर्यभट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एरीज) के वरिष्ठ खगोल वैज्ञानिक डॉ. शशि भूषण पांडे के अनुसार बुधवार को पृथ्वी के करीब से गुजरे इस क्षुद्र ग्रह की प्रक्रिया एक बड़ी खगोलीय घटना है।
पांडे ने बताया कि 1998 ओआरटू नाम से प्रचलित यह उल्कापिंड हवाईद्वीप समूह पर नीट नामक प्रोग्राम के तहत खोजा गया था। पृथ्वी के पास से गुजरने की इसकी प्रक्रिया खासी रोचक होती है। इससे खगोल से जुड़ी कई जानकारियां और अनुसंधान की विषयवस्तु एकत्र की गयी। क्षुद्र ग्रह पृथ्वी तथा चंद्रमा के बीच की दूरी के 16 गुना अधिक दूरी से गुजरा। पांडे ने बताया कि इसके बाद ये ग्रह 2079 में आएगा। तब यह पृथ्वी के सबसे करीब होगा।
तीन साल पहले पृथ्वी के बेहद पास आया था क्षुद्रग्रह
प्रो. पांडे के अनुसार इससे पहले भी ऐसी स्थिति बनी है। अप्रैल 2017 में पृथ्वी के काफी नजदीक से एक क्षुद्र ग्रह गुजर चुका है। इसलिए इसमें घबराने की जरूरत नहीं है। हालांकि इस बार गुजरने वाला उल्कापिंड काफी दूर से गुजर रहा है। उन्होंने बताया कि इसके पृथ्वी से टकराने की बिलकुल भी आशंका नहीं है।
पृथ्वी से टकराने की संभावना नहीं
नासा के सेंटर फॉर नियर-अर्थ स्टडीज के अनुसार, बुधवार 29 अप्रैल को सुबह 5:56 बजे ईस्टर्न टाइम में उल्कापिंड के पृथ्वी के पास से होकर गुजरा। वैज्ञानिकों के अनुसार इसके धरती से टकराने की संभावना कम ही थी और वैसा ही हुआ।
अरेकिबो वेधशाला एक राष्ट्रीय विज्ञान फाउंडेशन की सुविधा है, जिसे सेंट्रल फ्लोरिडा विश्वविद्यालय द्वारा संचालित किया जाता है। यह वेधशाला नासा के नियर-अर्थ ऑब्जेक्ट ऑब्जर्वेशन प्रोग्राम द्वारा समर्थित है और 90 के दशक के मध्य से खगोलीय पिंडों का विश्लेषण कर रही है।