डॉक्टर रजनी कान्त दत्ता पूर्व विधायक, शहर दक्षिणी वाराणसी ( यूपी )

संसद के दोनों सदनों में वैधानिक रूप से पारित कृषि कानून, किसानों के हित में तो है ही, साथ ही देश की अर्थव्यवस्था और हम देशवासी जो किसान द्वारा उत्पादित रबी, ख़रीफ, जायद और नकदी फसलों के उपभोक्ता हैं, उसी अनुपात में उनके यानी हमारे हित में भी है। इससे केवल बिचौलियों का ही एकाधिकार समाप्त होता है।

रबी की फसल मध्य अक्टूबर से लेकर मध्य दिसंबर तक लगभग पूरी तरह बोई जाती है। देशभर के हम उपभोक्ताओं को जानना चाहिए कि, रबी की फसल में ही प्याज़, आलू, मूली, अधिकतर साग आदि के साथ मसूर की दाल, सरसों, गेहूं, चना, जौ, मटर, और गन्ना भी बोया जाता है। ऐसे में अगर अपने निहितस्वार्थों के लिए ये बिचौलिए, तथाकथित विपक्षी राजनीतिक दलों, अर्बन नक्सलियों और तथाकथित वामपंथी दलों की शह पर किसानों को बरगला कर इस Bill के विरोध में लामबंद कर रेल और सड़क मार्ग अवरुद्ध करते हैं और कुछ गुमराह किसान, जिन्हें इस समय अपने इन खेतों की फसलों की सिंचाई, गुड़ाई, मड़ाई और रखवाली में लगाना चाहिए था, उसकी जगह भ्रमित होकर खुले आसमान के नीचे इस देशद्रोही ड्रामे में प्राणायाम करते हैं, तो उससे न केवल फसल उत्पादन पर असर पड़ेगा, बल्कि आने वाले समय में अनुपलब्धता और हद से पार महंगाई के कारण हमारी भोजन की थाली से तरकारियां तो नदारद होंगी ही, साथ ही भोजन पकाने के मुख्य माध्यम सरसों का तेल, हरा चना, मटर गेहूं और जौ की रोटी भी गायब हो जाएंगी। इसके अलावा न तो हमें पीने के लिए गन्ने का रस मिलेगा और न ही चीनी मिल और शराब के कारखानों को गन्ना।

किसान आंदोलन में शामिल अधिकतर बिचौलिए या विपक्षी कार्यकर्ता

Covid19 की महामारी के कारण पूरा देश भयंकर मंदी और आर्थिक संकट से गुजर रहा है। LAC और LOC पर आतकंवाद के युद्ध के बादल मंडरा रहे हैं। मैं दावे के साथ कहता हूं कि, यदि इन आंदोलनकारियों का आधार कार्ड और PAN कार्ड का क्षेत्रीय सत्यापन किया जाए, तो इनमें से 90% वह वेस्टेड इंटरेस्ट होगा, जो या तो बिचौलिया है या गैर भाजपा प्रांतीय सरकारों का दलाल, या मोटी रकम के एवज में लाये गये किसान बहुरुपिये।

मैं पंजाब सरकार से जानना चाहूँगा कि, यह सही है या नहीं कि, APMC के तहत मंडियों में किसानों से उपज खरीदते समय अढ़तिया प्रति 100 रुपये की खरीद पर 8.5 रुपया मंडी टैक्स काट कर किसान को 100 रुपये की जगह 91.5 रुपया देता है। और जो 8.5 रुपया वह कमीशन के तौर पर लेता है, उसमें से 2.5 रुपया उसका और 6 रुपया पंजाब सरकार का होता है। यही नहीं जब सरकारी purchase centers पर किसान अपनी फसल बेचने जाता है तो MSP पर खरीदने की जगह यह कह कर, यहां भंडारण की जगह नहीं है, या उपज भरने के लिए बोरे नहीं हैं या तुम्हारी उपज मानकों के अनुसार नहीं है, उसे वापस कर देता है। तब यही किसान अपनी उपज, जिसकी केंद्र सरकार ने MSP 100 तय की होती है, उसे मंडी के बाहर इन्हीं अढ़तियों को 80 रुपये या उससे भी कम दामों पर बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इस मुनाफे की रकम में purchase center के लोगों की भी भागीदारी होती है। इन बिचौलियों का नेटवर्क कितना बड़ा और मजबूत है, इसका अनुमान इस बात से ही लगाया जा सकता है कि, अभी पिछले साल भारत सरकार को देश में खाद्यान्नों की खरीद पर उन्हें साढ़े छह हजार करोड़ रुपये की दलाली देनी पड़ी थी।

कहाँ तक गिनाऊँ किताब बन जाएगी।
इस कृषि बिल का गिरोहबंद होकर विरोध करने वालों के बारे में,
मैं आपके सामने रामायण का एक उद्धरण रखना चाहूँगा-
जानि न जाये निशाचर माया,
कालिनेमि केही कारण आया।

यानी कि, यह भाजपा विरोधी रावणरूपी वे विपक्षी दल हैं, जिन्होंने मेघनाद रूपी छल द्वारा आर्थिक दृष्टि से मूर्छित लक्ष्मणरूपी किसान की प्राण रक्षा के लिए जो कृषि बिल किसानों के लिए संजीवनी बूटी है।
उसका लाभ किसानों को न मिल पाये, इसके लिए वे श्री हनुमान जी रूपी भारत सरकार के प्रयासों में बाधा पहुंचा रहे हैं।

जय किसान,
जय हिंदुस्तान।
मेरे देशवासी और मेरे देश के किसान महान है।

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